न माँ की सेहत की चिंता , ना बाप के झुकते कन्धों की ,
तादाद बहुत है इस जग में अक्ल के ऐसे अंधों की !
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ये घंटों यारों संग जाकर चौराहों पर बैठे रहते ,
न फ़िक्र पढ़ाई की इनको न किसी काम और धंधें की !
तादाद बहुत है इस जग में अक्ल के ऐसे अंधों की !
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मित्रों की बाइक पर अक्सर ये मौज मनाते फिरते हैं ,
घरवालों को है नहीं खबर इनके इन गोरखधंधों की !
तादाद बहुत है इस जग में अक्ल के ऐसे अंधों की !
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महंगा मोबाइल लेंगें ये वरना सुसाइड कर लेंगें ,
दहला देते माँ-बाप का दिल क्या कहिये इन हथकंडों की !
तादाद बहुत है इस जग में अक्ल के ऐसे अंधों की !
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ये आसमान में उड़ते हैं नहीं पैर ज़मी पर ये रखते
ठोक-पिटाई वक्त पे हो नए नए इन गुंडों की !
तादाद बहुत है इस जग में अक्ल के ऐसे अंधों की !
शिखा कौशिक 'नूतन'
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया -
महंगा मोबाइल लेंगें ये वरना सुसाइड कर लेंगें ,
जवाब देंहटाएंदहला देते माँ-बाप का दिल क्या कहिये इन हथकंडों की !
सच का समर्थन करती कविता ...... आभार
ठोक पिटाी होसमय पर इन नए नए गुडों की।
जवाब देंहटाएंएकदम सही कहा। सुंदर सामयिक प्रस्तुति।