कब लब होंगे आज़ाद कब लेंगें खुलकर साँस ?
शोषित पीड़ित नारी ये सोच रही है आज !
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कब तक बनकर सीता अग्नि परीक्षा देंगी ?
कब तक शुचिता -प्रमाणन की आज्ञा पूर्ण करेंगी ?
कब मूक कंठ से अपने भी निकलेगी आवाज़ ?
शोषित पीड़ित नारी ये सोच रही है आज !
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कब तक वस्तु की भाँति इसको दाँव लगाओगे ,
चीर -हरण करवाकर लज्जित करवाओगे ,
फूल सी देह के भीतर कब दिल होगा फौलाद !
शोषित पीड़ित नारी ये सोच रही है आज !
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कब तक बेटी के होने पर शोक मनाओगे ,
तुम दहेज़ की खातिर उसको आग लगाओगे ,
कभी तो दुर्गा बनकर वो भी देगी गर्दन काट !
शोषित पीड़ित नारी ये सोच रही है आज !
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इंद्र छल का फल कब तक भोगे अहिल्या ,
दुष्यंत के धोखे में क्यों आती हैं शकुन्तला ,
कब भावों पर बुद्धि कर पायेगी राज !
शोषित पीड़ित नारी ये सोच रही है आज !
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चूड़ी ,बिंदी ,बिछुआ ,सिन्दूर के श्रृंगार ,
पति तो रुतबे वाली पति ही जीवन का आधार ,
कब पति करेंगें पत्नी -हित कोई उपवास !
शोषित पीड़ित नारी ये सोच रही है आज !
शिखा कौशिक 'नूतन '
bilkul sahi kaha shikha ji .nice expression of truth .
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