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रविवार, 4 अगस्त 2013

शक्ति और संभावना के साझे का नाम दुर्गा


-प्रेम प्रकाश
एकदम सामान्य सा पहनावा। आंखों पर चश्मा। कंधे तक कटे बाल। देखने में किसी आम पढ़ी-लिखी भारतीय युवती की तरह। न कोई बड़बोलापन। न दंभ। न ही अपनी शख्सियत को लेकर कोई मुगालता। दरअसल, हम बात कर रहे हैं उस निर्भीकता और कर्तव्य परायणता की, जिसका मिसाल बन गई हैं आज दुर्गा शक्ति नागपाल की। दुर्गा महज एक आईएएस भर नहीं है। भ्रष्टाचार और माफियागिरी पर महज आक्रोषित ही नहीं हुआ जा सकता, उस पर नकेल भी कसी जा सकती है। देश की इस बहादुर बेटी ने यह करके दिखाया है। अपने पूरे करियर में ऊंची से ऊंची तरक्की पाकर भी लोग उतनी चर्चा में आते जितनी चर्चा में दुर्गा है। अपने निलंबन के बावजूद। 
अवैध खनन माफिया के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली इस महिला आईएएस के निलंबन का फैसला उत्तर प्रदेश सरकार के लिए नैतिक और सियासी दोनों तरह की मुसीबत लेकर आया है। दिलचस्प है कि इस पूरे घटनाक्रम में हर तरफ से जुबानी तीर चल रहे हैं। कुछ सरकार के बचाव में तो कुछ सरकार के खिलाफ। इन सबके बीच कोई अविचलित और शांत है तो वह है दुर्गा। दुर्गा को यह धीरता विरासत में मिली है और आज यही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। 
25 जनवरी 1985 को आगरा में जन्मी दुर्गा पढ़ने में शुरू से अच्छी थी। उसने कंप्यूटर साइंस में बी.टेक की शिक्षा पूरी करने के बाद सिविल सेवा में आने का फैसला किया। उसके लिए यह महज करियर का फैसला भर नहीं था। उसके लिए तो यह फैसला अपनी आगे की जिंदगी को जीने के तरीके को तय करने जैसा था। उसने यह दृढ़ मानस कैसे बनाया होगा यह उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि से समझा जा सकता है। दुर्गा के पिता रक्षा सेवा में रहे। उनके दादाजी पुलिस सेवा में थे। कह सकते हैं कि दुर्गा ने अपनी पारिवारिक विरासत को ही अपनी लीक माना। 
2००9 में जब वह सिविल सेवा के लिए चुनी गई तो उसका नाम चोटी के 2० नामों में शामिल था। उसे पंजाब कैडर मिला और उसकी शुरुआती पोस्टिंग मोहाली में हुई। पिछले साल उसका तब उत्तर प्रदेश में तबादला कर दिया गया जब उसकी 2०11 बैच के आईएएस अभिषेक सिंह से शादी हुई। 2०13 के जुलाई में पहली बार दुर्गा के बारे में लोगों ने तब जाना जब उसने यमुना और हिंडन नदी के किनारे अवैध खनन करने वालों की खबर लेनी शुरू की। देखते-देखते उसका कहर इतना बढ़ा कि उसने इस अवैध धंधे में लगे 24 डंपरों और 3०० ट्रालियों को जब्त कर लिया। जब्ती में इसके अलावा भी बहुत कुछ शामिल था। इसके अलावा उसने एक दर्जन से ज्यादा गिरफ्तारियां भी की। पर खनन माफिया की आंखों को चुभने वाली यह दबंग आईएएस राज्य सरकार की आंखों में भी चुभने लगी। रातोंरात उसे निलंबित कर दिया गया। आरोप लगासांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का, जिसकी पुष्टि न तो स्थानीय लोग करते हैं और न प्रशासकीय रिपोर्ट। 
दुर्गा के पक्ष में जन समर्थन को देखते हुए सरकार की मुश्किल तो बढ़ ही रही है लेकिन एक खतरा और भी है। अपने पक्ष में बन रहे माहौल को देखकर कोई भी अधिकारी प्रशासकीय मर्यादा को ताक पर रख सकता है। दुर्गा इस मामले में सचेत है। उसे अपने कहने और करने की सीमा का पता है। यही समझ उसे और सशक्त बनाती है। एक-दो चर्चित कार्रवाइयों के बाद गुमनामी में खोेए अधिकारियों की देश में कमी नहीं है। पर दुर्गा उस कतार में खड़ी होने वाली नहीं। उसे अभी बहुत कुछ अपने देश और समाज के हासिल करना है और वह भी तमाम तरह की दुश्वारियों के बीच। लिहाजा, दुर्गा शक्ति और संभावना के साझे का नाम है। 

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