बेग़म ग़म मत देना do not copy |
दिल बहलाने को लाया हूँ बेग़म ग़म मत देना ,
खिदमत करवाने लाया हूँ बेग़म ग़म मत देना !
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सजने और सँवरने की है बेग़म तुम्हें आजादी ,
खुली जुबान पर गुर्राया हूँ बेग़म ग़म मत देना !
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नज़रों के तुम तीर चलाकर कर लो मुझको घायल ,
देख बगावत घबराया हूँ बेग़म ग़म मत देना !
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फ़र्ज़ निभाओ मगर कभी तुम हक़ की बात न करना ,
तानाशाह बन इतराया हूँ बेग़म ग़म मत देना !
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'नूतन' औरत की किस्मत में सारे ग़म पी जाना ,
कई दफा ये फ़रमाया हूँ बेग़म ग़म मत देना !!
शिखा कौशिक 'नूतन'
bahut sateek abhivyakti .
जवाब देंहटाएंbahut khoob nari ke bhavon ka sunder chitran
जवाब देंहटाएंrachana
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (28-07-2013) को त्वरित चर्चा डबल मज़ा चर्चा मंच पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
व्यंगात्मक सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंlatest post हमारे नेताजी
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हां अच्छी रचना, बात कहने का ये भी अंदाज
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना .मेरे ब्लॉग पर आकर अनुग्रहित करे
जवाब देंहटाएंsundar rachna....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....
जवाब देंहटाएंसही वस्तुस्थिति, कहने का अंदाज भी निराला ।
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