दुनिया की भीड़ में,
इस जीवन की भागदौड़ में
तुम कहीं दूर आगे निकल गये हो
मेरा हाथ तुमसे छूट गया है
जैसे कोई अपना मुझसे रूठ गया है
शायद ग़लती मेरी थी
मैं ज़्यादा ही आपेक्षाएँ कर बैठी थी तुमसे
मुझे समझना चाहिए
तुम्हारा रास्ता तो पहले से ही अलग था
मैं जिसमें अपना अक्स देखती रही
वो तुम नही थे,ना ना कभी हो भी नही सकते
शायद तुम्हारी परीछाई के पीछे भाग रही थी
अब मैने अपने चंचल मन को समझा दिया है
उदासी में भी हँसना उसे सिखा दिया है
पहले एक दिन में
तुम्हारे इंतज़ार में बेचैन हो जाती थी
देखो अब मन स्याना हो चला है
और मैं भी,
देखो एक सप्ताह हो चला है
तुम्हारा कोई पैगाम आए
और मैं अभी तक साँस ले रही हूँ
बिल्कुल वैसे ही जैसे तुम व्यस्त हो,
सब काम जल्दी से निपटाने में
बिना अपनी पगली की चिंता किए,
है ना.......
अच्छी रचना है
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंbahut sundar bhavon ko ukera hai aapne .aabhar
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और मजबूत लेखन .......बहुत बढ़िया .
जवाब देंहटाएंbahut mushkil hai mn ko samjhana ....badi khubsurti se samjhaya aapne ...badhai ...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंविचारणीय भावनात्मक अभिव्यक्ति आभार . बाबूजी शुभ स्वप्न किसी से कहियो मत ...[..एक लघु कथा ] साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंसभी दोस्तों का तहदिल से शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.....
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