'मुझे ऐसे न खामोश करें '
आ ज मुंह खोलूंगी मुझे ऐसे न खामोश करें ,
मैं भी इन्सान हूँ मुझे ऐसे न खामोश करें !
तेरे हर जुल्म को रखा है छिपाकर दिल में ,
फट न जाये ये दिल कुछ तो आप होश करें !
मुझे बहलायें नहीं गजरे और कजरे से ,
रूमानी बातों से न यूँ मुझे मदहोश करें !
मेरी हर इल्तिजा आपको फ़िज़ूल लगी ,
है गुज़ारिश कि आज इनकी तरफ गोश करें !
मेरे वज़ूद पर ऊँगली न उठाओ 'नूतन' ,
खून का कतरा -कतरा यूँ न मेरा नोश करें !
शिखा कौशिक 'नूतन'
आ ज मुंह खोलूंगी मुझे ऐसे न खामोश करें ,
मैं भी इन्सान हूँ मुझे ऐसे न खामोश करें !
तेरे हर जुल्म को रखा है छिपाकर दिल में ,
फट न जाये ये दिल कुछ तो आप होश करें !
मुझे बहलायें नहीं गजरे और कजरे से ,
रूमानी बातों से न यूँ मुझे मदहोश करें !
मेरी हर इल्तिजा आपको फ़िज़ूल लगी ,
है गुज़ारिश कि आज इनकी तरफ गोश करें !
मेरे वज़ूद पर ऊँगली न उठाओ 'नूतन' ,
खून का कतरा -कतरा यूँ न मेरा नोश करें !
शिखा कौशिक 'नूतन'
जवाब देंहटाएं...मुझे ऐसे न खामोश करें .....सुन्दर, सामयिक व अर्थपूर्ण गजल ....
नोश करो ! = नोश करें !
aabhar
जवाब देंहटाएंbhavpoorn v sundar abhivyakti badhai
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जवाब देंहटाएंकल 09/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत खूब .... अपनी आवाज़ बुलंद करें
जवाब देंहटाएंwah.....bahut bhavpurn abhivyakti...har line ki apni hi alag baat
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
टिप्पणी हेतु आभार .. हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण ...ऐसे ही लिखती रहें ...
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