पेज

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

मैं नारी

 मैं नारी  

 मैं नारी
जन्म से बंधी
उस डोर से
जिसके अनेकों सिरे
फिर भी
उलझते-सुलझते
मैं तल्लीन रहती
एक-एक रिश्तों को
सहेजने  में 
पीड़ा - व्यथा अन्तर्निहित
 लेकिन अनवरत प्रत्न्शील
जीवन पथ पर
अपनों के लिए समर्पित
कभी न थकती
हजारों सपने गढ़ती
फिर जीती भरपूर
उन सपनों  में
 एकांत के क्षणों में
टूटने पर भी
विचलित नहीं
पुनः प्रयत्नशील
गतिमान जीवन में उलझती
स्वयं की भी तलाश में
मैं नारी ।                                    

4 टिप्‍पणियां: