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सोमवार, 14 मई 2012

उपन्यास इन्द्रधनुष का लोकार्पण-सम्पन्न ... डा श्याम गुप्त...



                              

            
                       

इन्द्रधनुष का लोकार्पण--श्री देवगिरी, रामचंद्रराव, श्री अजय श्रीवास्तव , लेखक  डा श्याम गुप्त, सुषमा जी व  प्रोफ ललिताम्बा ज
      कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति, जय नगर बेन्गलूरू के तत्वावधान में डा श्याम गुप्त के हिन्दी       "उपन्यास  इन्द्रधनुष" का लोकार्पण-1212 मई,2012 ई. शनिवार को समिति के सभा भवन में समारोह के मुख्य-अतिथि श्री अजय कुमार  श्रीवास्तवउपनिदेशक  (कार्यान्वन ) गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग बेंगलूर के कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ | समारोह की अध्यक्षता श्री एच वी रामचंद्र राव पूर्व निदेशक दूरदर्शन एवं आकाशवाणी  ने कीविशिष्ट अतिथि  प्रोफ. बी.वे . ललिताम्बा सेवा निवृत्त आचार्य अहल्या वि.वि. इंदौर थीं संचालन समिति के सचिव डा वि रा देवगिरी  ने किया |
श्रोता गण

वेद-पाठ करते हुए डा गणेश किनी 
डा श्याम गुप्त उपन्यास के बारे में बोलते हुए
           समारोह का प्रारम्भ ईश प्रार्थना से हुआ | तत्पश्चात समिति की विशेष नीति-क्रम के अनुसार डा गणेश किनी द्वारा सस्वर वेद-पाठ किया गया|  डा देवगिरी जी ने डा श्याम गुप्त के व्यक्तित्व व कृतित्व का  परिचय देते हुए उपन्यास की विशेषताओं का उल्लेख किया | लोकार्पण पूर्व -प्रोफ़. ललिताम्बा ने उपन्यास  बारे में विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की | श्रीमती सुषमा गुप्ता ने डा श्याम गुप्त व उपन्यास के कुछ विशिष्ट पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इन्द्रधनुष में उपन्यास के साथ-साथ शेरो-शायरी व कविता भी चलती है जो इसकी अपनी विशिष्टता है | मुख्य-अतिथि श्री अजय श्रीवास्तव व उपन्यास के लेखक डा श्याम गुप्त का शाल व प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मान किया गया।
        

        डा श्याम गुप्त ने  उपन्यास के विषय पर विवेचना करते हुए कहा कि नारी के विषय पर साहित्य को प्राय: साहित्यकार व हम सब “नारी-विमर्श” का नाम देते हैं जो उनके विचार से अपूर्ण शब्द है वास्तव में स्त्री व पुरुष कभी पृथक-पृथक देखे, सोचे, समझे, कहे व लिखे नहीं जा सकते , अतः यह वे इसे   “स्त्री-पुरुष विमर्श “  का नाम देते हैं |
उपन्यास के बारे में बोलते हुए श्रीमती सुषमा गुप्ता
           श्री अजय कुमार श्रीवास्तव जी ने इंगित किया कि अंग्रेज़ी व  अंग्रेजियत-रहन-सहन का प्रभाव सिर्फ हिन्दीभाषा को ही नहीं अपितु कन्नड़ एवं देश की सभी क्षेत्रीय भाषाओं के प्रभाव को भी नष्ट कर रहा है| हमारी आगे की युवा पीढ़ी हमारी पीढ़ी की तरह अपनी स्थानीय-मातृभाषा को भी ठीक प्रकार से नहीं जानती | 

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