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सोमवार, 16 अप्रैल 2012

डा श्याम गुप्त के.....दो अगीत.....

                 ( अगीत - पांच से दस  पक्तियों तक-- की अतुकान्त कविता-काव्य-गीत है  जो गति, लय व प्रवाह युक्त होनी चाहिये)
 
  अर्थ  

अर्थस्वयं ही एक अनर्थ है;
मन में भय  चिंता  भ्रम की -
उत्पत्ति में समर्थ है |
इसकी  प्राप्ति, रक्षण एवं उपयोग में भी ,
करना पडता है कठोर श्रम ;
आज है, कल होगा या होगा नष्ट-
इसका नहीं है कोई निश्चित क्रम |
अर्थ, मानव के पतन में समर्थ है ,
फिर भी, जीवन के -
सभी अर्थों का अर्थ है ||
अर्थ-हीन अर्थ 
अर्थहीन  सब अर्थ होगये ,
तुम जबसे राहों में खोये
शब्द  छंद  रस व्यर्थ होगये,
जब  से तुम्हें भुलाया मैंने |
मैंने  तुमको भुला दिया है ,
यह  तो -कलम यूंही कह बैठी ;
कल  जब तुम स्वप्नों में आकर ,
नयनों  में आंसू भर लाये ;
छलक  उठी थी स्याही मन की |

10 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद रितु जी....एवं शुक्ला जी....

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  2. चरफर चर्चा चल रही, मचता मंच धमाल |
    बढ़िया प्रस्तुति आपकी, करती यहाँ कमाल ||

    बुधवारीय चर्चा-मंच
    charchamanch.blogspot.com

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  3. ---धन्यवाद माई वे जी...स्वागत है...
    ---धन्यवाद शिखा जी...एवं रविकर जी...

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  4. अर्थ, मानव के पतन में समर्थ है ,
    फिर भी, जीवन के -
    सभी अर्थों का अर्थ है ||

    ...एक कटु सत्य....दोनों रचनायें बहुत सुन्दर और सार्थक...

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  5. धन्यवाद निधि जी एवं कैलाश जी...आभार..

    --अगीत के बारे में...मेरा नया ब्लोग...अगीतायन..देखें..
    --- http://ageetayan.blogspot.com

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