( अगीत - पांच से दस पक्तियों तक-- की अतुकान्त कविता-काव्य-गीत है जो गति, लय व प्रवाह युक्त होनी चाहिये)
अर्थ
अर्थ, स्वयं
ही एक अनर्थ है;
मन में भय चिंता भ्रम
की -
उत्पत्ति में समर्थ है |
इसकी प्राप्ति,
रक्षण एवं उपयोग में भी ,
करना पडता
है कठोर
श्रम ;
आज है, कल होगा या होगा नष्ट-
इसका नहीं
है कोई निश्चित क्रम |
अर्थ, मानव
के पतन में समर्थ है ,
फिर भी, जीवन के -
सभी अर्थों
का अर्थ
है ||
अर्थ-हीन अर्थ
अर्थहीन सब अर्थ होगये ,
तुम जबसे राहों में खोये |
शब्द छंद रस व्यर्थ होगये,
जब से तुम्हें भुलाया मैंने |
मैंने तुमको भुला दिया है ,
यह तो -कलम यूंही कह बैठी ;
कल जब तुम स्वप्नों में आकर ,
नयनों में आंसू भर लाये ;
छलक उठी थी स्याही मन की |
बहुत सुन्दर ..!
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
dono geet bahut sundar, sarthakata liye huye,abhar
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रितु जी....एवं शुक्ला जी....
जवाब देंहटाएंWelcome
जवाब देंहटाएंhttp://www.islamhouse.com/p/208559
sundar ...badhai
जवाब देंहटाएंचरफर चर्चा चल रही, मचता मंच धमाल |
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति आपकी, करती यहाँ कमाल ||
बुधवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
---धन्यवाद माई वे जी...स्वागत है...
जवाब देंहटाएं---धन्यवाद शिखा जी...एवं रविकर जी...
अच्छे हैं,दोनों गीत.
जवाब देंहटाएंअर्थ, मानव के पतन में समर्थ है ,
जवाब देंहटाएंफिर भी, जीवन के -
सभी अर्थों का अर्थ है ||
...एक कटु सत्य....दोनों रचनायें बहुत सुन्दर और सार्थक...
धन्यवाद निधि जी एवं कैलाश जी...आभार..
जवाब देंहटाएं--अगीत के बारे में...मेरा नया ब्लोग...अगीतायन..देखें..
--- http://ageetayan.blogspot.com