जिसने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा, वह स्कूल की किताबों में
ज्यादातर की पढ़ाई-लिखाई बीच में ही छूट गई। आर्थिक मजबूरियों की वजह से उनको घर-गृहस्थी में उनको जुटना पड़ा। पर उन्होंने कुछ समय में ऐसा कर दिखाया कि दुनिया के सामने मिसाल बन गईं। ऐसी दो छत्तीसगढ़ मातृ शक्ति फूलबासन बाई व शमशाद बेगम की कहानी भी अब स्कूलों में पढ़ाई जाएगी।
राज्य के 92 ख्यातिनाम लोगों पर पाठ्य पुस्तक निगम चित्र कथाएं तैयार करने जा रहा है। पद्मश्री तीजन बाई और हॉकी खिलाड़ी सबा अंजुम भी ऐसी हस्तियों में शामिल हैं। जुलाई-अगस्त तक स्कूलों में इन चित्र कथाओं की सप्लाई शुरू हो जाएगी, ताकि बच्चे इसे पढ़ सकें। 20 हस्तियों के बारे में चित्र कथाएं लगभग तैयार हो चुकी हैं। इन्हें जुलाई-अगस्त 2012 तक स्कूलों में भेज दिया जाएगा। शमशाद बेगम, फूलबासन यादव, तीजनबाई व सबा अंजुम को छोड़कर इस सूची में शामिल कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं है।
यह पहला मौका होगा जब चार जीवित लोगों पर चित्रकथा तैयार कर स्कूलों में भेजी जा रही है। इसमें साहित्यकार, रंगकर्मी, स्वतंत्रता सेनानी, शहीद पुलिस अधिकारी, राजनीतिज्ञ आदि इनमें शामिल हैं। सबा अंजुम व तीजन बाई को पहले ही चित्र कथाओं में शामिल करने का फैसला लगभग हो गया था। अब इनके साथ फूलबासन यादव व शमशाद बेगम का नाम भी जुड़ गया है। पाठ्य पुस्तक निगम के अधिकारियों का कहना है कि इनकी जीवनियों पर स्क्रिप्ट लिखने का काम चल रहा है। जल्द ही चित्र कथाएं तैयार हो जाएंगी।
शम्मू बन गई शमशाद बेगम :
बालोद जिले के गुंडरदेही में 1962 में शमशाद बेगम का जन्म हुआ था। घर में इनका नाम शम्मू है। शुरुआत से ही परिवार की आर्थिक स्थिति दयनीय रही। जैसे-तैसे करके उन्होंने स्कूल की पढ़ाई की। अभावों में पूरा बचपन बीता। बचपन से ही कुछ अलग करने की चाह रही। दुर्ग जिले में 1990 में साक्षरता अभियान शुरू हुआ। अभियान में शमशाद बेगम बिना मानदेय के जुड़ गईं।
गुंडरदेही ब्लॉक में 12 हजार महिलाएं निरक्षर निकलीं। देखते ही देखते दस सालों में 12 हजार में से 10 हजार से ज्यादा महिलाएं साक्षर बन गईं। आज इनके साथ 40 हजार महिलाएं जुड़ी हैं। उपलब्धियों और मेहनत की वजह से ही शमशाद बेगम को मिनी माता अवार्ड, राज्य महिला आयोग का सम्मान, नाबार्ड के अवार्ड सहित ढेरों सम्मान मिले। इस साल इन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। अवार्डो की इस झड़ी से गांव की शम्मू अब शमशाद बेगम हो गईं हैं।
फूलबासन आज भी चराती है गाय-बकरियां
पद्मश्री फूलबासन के जीवन की कहानी प्रेरणा देने वाली है। राजनांदगांव के छुरिया ब्लॉक में एक गरीब परिवार में उनका जन्म हुआ। घर में इन्हें बासन नाम से पुकारा जाता है। अभावों में उनका बचपन बीता। 10 वर्ष की आयु में शादी हो गई। 13 साल की उम्र में ये ससुराल गईं।
वहां की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। बच्चों का पेट भरने के लिए दूसरों की गाय-बकरी को चराया और घरों में काम किया लेकिन इनका विश्वास कहीं नहीं डिगा। गांव की कुछ महिलाओं को साथ जोड़कर गरीब बच्चों को पढ़ाने और खिलाने का जिम्मा उठाया। देखते ही देखते दो लाख से ज्यादा महिलाओं का सहायता समूह बनाया। स्वास्थ्य, शिक्षा सहित अन्य पर इन्होंने कई काम किए। फूलबासन बाई को अपने इसी जज्बे के लिए स्त्री शक्ति पुरस्कार, नाबार्ड की ओर से राष्ट्रीय पुरस्कार, अमोदनी अवार्ड, चेन्नई में सदगुरू ज्ञानानंद अवार्ड, मिनीमाता पुरस्कार मिला। इस साल उन्हें राष्ट्रपति ने पद्मश्री अवार्ड से भी सम्मानित किया।
संकल्प लें और सपने जरूर देखें
मन में दृढ़ संकल्प और उद्देश्य को लेकर काम करेंगे तो सफलता जरूर मिलेगी। -पद्मश्री शमशाद बेगम
जिंदगी में सपने जरूर देखें और अपनी इच्छाशक्ति से पूरा करने की कोशिश करें, सफलता जरूर मिलेगी। -पद्मश्री फूलबासन यादव
चित्र कथाओं में जीवित लोगों को शामिल करने के लिए कमेटी ने सहमति दे दी है। पद्मश्री फूलबासन यादव, शमशाद बेगम, तीजनबाई और सबा अंजुम प्रदेश की धरोहर हैं। इन पर लेखन का काम शुरू किया जा रहा है। इनकी जीवनी को पढ़कर निश्चित रूप से बच्चे प्रेरित होंगे। - सुभाष मिश्रा, महाप्रबंधक, पाठ्य पुस्तक निगम
सारपूर्ण..प्रारम्भ...
जवाब देंहटाएं---हम प्रारम्भ तो करें कहीं से भी...
bahut achchhi shruaat .sarthak post prastut ki hai aapne .is blog par prastut sabse achchhi post me se ek hai ye .hardik dhnyvad .
जवाब देंहटाएंsundar v sarthak prastuti.नारियां भी कम भ्रष्ट नहीं.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप सभी का
जवाब देंहटाएं@डॉ. श्याम गुप्त जी
@शिखा कौशिक जी
@शालिनी कौशिक जी
जो आपने इस लेख को इतना सराहा और शिखा जी आपने इसे ब्लॉग कि सबसे अच्छी पोस्ट में से एक कहकर सम्मानित किया.