काहे मुरली श्याम बजाये |
सांझ सवेरे बजे मुरलिया अति ही रस बरसाए |
रस बरसे मेरा तन मन भीगे अंतरघट सरसाये |
रस भीजै चूल्हे की लकड़ी आग पकड़ नहीं पाए |
फूंक फूंक मेरा जियरा धड़के चूल्हा बुझ बुझ जाए |
सास ननद सब ताना मारें, देवर हंसी उडाये |,
सजन प्रतीक्षा करे खेत पर भूखा पेट सताए |
श्याम' बने कैसे मेरी रसोई श्याम उपाय बताये |
बैरिन मुरली श्याम अधर चढ़ तीनों लोक नचाये ||
वाह बहुत ही मनभावन अभिव्यक्ति ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ||
मनभावन पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.com
mohak post hae.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद...पल्लवी जी, रितु जी, सन्गीता जी व रविकर ......
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