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शनिवार, 7 जनवरी 2012

अदा तेरी क्या है......डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल ...

जलती शमा का ये कहना वज़ा है|
की परवाना खुद को समझता ही क्या है |       


यही  कह रहा है परवाना जलकर ,
जला जो नहीं उसका जीना भी क्या है |


जो जल जल के करते कठिन साधना-तप,
भला इससे बढ़कर के सज़दा ही क्या है |


यूं जल कर शमा पर शलभ पूछता है,
बताये की कोई खता मेरी क्या है |


पिघलती शमा कह  रही  है सभी से,
तिल तिल न पिघला वो जीवन ही क्या है |


तड़पता हुआ एक परवाना बोला,
मेरी प्रीति है ये अदा तेरी क्या है |


वो बुझती हुई शम्मा बोली चहक कर,
जिए ना मरे साथ जीना ही क्या है |


तभी पास बैठा  पियक्कड़ यूं बोला,
नहीं साथी कोई तो पीना भी क्या है |


यही प्रीति की रीति है श्याम' न्यारी,
नहीं प्रीति जीवन में जीना भी क्या है ||

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