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सभी धर्मों में इसे पाप माना जाता है । इस्लाम में तो इसके लिए सख्तसज़ा का प्रावधान है ।
अब कुछ सवाल उठते हैं आम आदमी के लिए : * क्या इस मामले में स्त्री पुरुष में भेद भाव करना चाहिए ? * यदि पति की रज़ामंदी से उसकी पत्नी से रखे गए सम्बन्ध गैर कानूनी नहीं हैं तो क्या वाइफ स्वेपिंग जायज़ है ? * क्या इस कानून में बदलाव की ज़रुरत है ?
पति पत्नी के सम्बन्ध आपसी विश्वास पर कायम रहते हैं । कानून भले ही ऐसे मामले में पत्नी को दोषी न मानता हो , लेकिन व्यक्तिगत , पारिवारिक , सामाजिक और नैतिक तौर पर ऐसे में दोनों को बराबर का गुनहगार माना जाना चाहिए ।
हमारा स्वस्थ नैतिक दृष्टिकोण ही हमारे समाज के विकास में सहायक सिद्ध हो सकता है ।
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हमने इस पोस्ट पर कहा है कि
आपने कहा है कि
♥ 'जहाँ तक मैं समझता हूँ , हिन्दू धर्म में इसे पाप समझा जाता है लेकिन सज़ा के लिए कोई प्रावधान नहीं है ।'
के बारे में
@ डा. टी. एस. दराल जी ! जिस बात को धर्मानुसार पाप कहा जाता है उसके लिए धार्मिक व्यवस्था में दण्ड का विधान भी होता है।
यह बात आपको जाननी चाहिए कि मनु स्मृति में बलात्कार और अवैध यौन संबंधों के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था है।
मनु स्मृति में अवैध यौन संबंध के लिए दंड
भर्तारं लंघयेद्या तु स्त्री ज्ञातिगुणदर्पिता ।
तां श्वभिः खादयेद्राजा संस्थाने बहुसंस्थिते ।।
-मनु स्मृति, 8, 371 जो स्त्री अपने पैतृक धन और रूप के अहंकार से पर पुरूष सेवन और अपने पति का तिरस्कार करे उसे राजा कुत्तों से नुचवा दे। उस पापी जार पुरूष को भी तप्त लौह शय्या पर लिटाकर ऊपर से लकड़ी रखकर भस्म करा दे।
मनु स्मृति के इसी 8 वें अध्याय में जार कर्म और बलात्कार आदि के लिए दंड का पूरा विवरण मौजूद है।
...सवाल है विवाहित पुरुष और स्त्री में अवैध- यौन सम्बन्ध उचित या अनुचित , उस पर कठोर दंड व्यवस्था ........हर देश के अलग अलग कानून हैं पर भारत में धार्मिक तौर पर इसे सभी धर्मों पर पाप माना गया है क्यों ?? ये मनु स्मृति भी तो किसी पुरुष का ही लिखा है और भी जितने धार्मिक ग्रन्थ हैं उसे लिखनेवाले भी पुरुष हैं . पर ऐसे किसी भी सम्बन्धों पर नारी को समाज में ज्यादा जलालत मिलती है पुरुषों को कम ,समाज में विवाह का बंधन बना रहे, नैतिकता के तौर पर समाज स्वच्छ बना रहे इसीलिए ऐसे धार्मिक विधान बने ,फिर भी ऐसे कई उदहारण हैं जिसमे कठोर दंड न्यायिक हो या सामाजिक उसका डर और भुगतान नारी को ही मिलता है , सहमती हो तब भी असहमति हो तब भी . पर ऐसे सम्बन्ध क्यों पनप जाते हैं ये ना तो हम सोंचते हैं ना समाज ,जब दो लोगों से बनी जीवन की गाड़ी में कुछ खराबी आ जाये जिससे एक से दूरी किसी और से नजदीकी का कारण बन जाती है , जब समाज ये विधान तय करता है पति-पत्नी में ही सम्बन्ध हो ,तो फिर ये तय क्यों नहीं करता कि आपस में बंधने के बाद अपने व्यवहार से,अधिकार से सामनेवाले पक्ष को आहट ना करें ,उसे अपने समान ही मने तभी ये गाड़ी ठीक से आगे चलेगी, क्योंकि आज सचमे समाज बदल रहा पुरुषों कि तरह स्त्रियाँ भी अपने आप को सम्मानित और प्यार से पोषित देखना चाहती हैं, कभी समय था जब उसे पाठ पढ़ाया जाता था वो पुरुष कि जरखरीद गुलाम है और वैवाहिक जीवन में आये उतार चढ़ाव, तनाव को अकेले हँस कर झेल जाती थी, पर जहाँ भी ऐसे सम्बन्ध बनते सुने गए हैं वहा सबसे पहली कमी विवाहित जीवन में एक दुसरे के ओर से आई संवेदनाओं कि कमी है ,और जब ऐसे रिश्ते फिसल जाते हैं तो धार्मिक न्याय, दंड कानून और समाज अपने तर्कों पर तौलने लगते हैं ............
वैयक्तिक जीवन में शुचिता ही सात्विक सार्वजनिक जीवन की नींव हो सकती है। कानून और धर्मग्रंथ गलत के लिए सज़ा का प्रावधान करें न करें अथवा वह कितना ही एकपक्षीय क्यों न हो,स्वविवेक का सहारा लेना ही सम्यक।
चाहिये से पहले देना सीखना चाहिये , तभी समस्या का हल खोज पायेंगे... ----यह नर-नारी हैं...ग्यान का फ़ल खाया गया है तो यह सब चलता रहेगा ...जिसकी लाठी उसी की भेंस....बहुत से समाजों व क्षेत्रों में स्त्री -राज था व है...वहां उनके नियम चलते हैं/थे... ---अतः उभय् पक्षीय व्यक्तिगत शुचिता ही निकटतम समाधान है...
...सवाल है विवाहित पुरुष और स्त्री में अवैध- यौन सम्बन्ध उचित या अनुचित , उस पर कठोर दंड व्यवस्था ........हर देश के अलग अलग कानून हैं पर भारत में धार्मिक तौर पर इसे सभी धर्मों पर पाप माना गया है क्यों ?? ये मनु स्मृति भी तो किसी पुरुष का ही लिखा है और भी जितने धार्मिक ग्रन्थ हैं उसे लिखनेवाले भी पुरुष हैं . पर ऐसे किसी भी सम्बन्धों पर नारी को समाज में ज्यादा जलालत मिलती है पुरुषों को कम ,समाज में विवाह का बंधन बना रहे, नैतिकता के तौर पर समाज स्वच्छ बना रहे इसीलिए ऐसे धार्मिक विधान बने ,फिर भी ऐसे कई उदहारण हैं जिसमे कठोर दंड न्यायिक हो या सामाजिक उसका डर और भुगतान नारी को ही मिलता है , सहमती हो तब भी असहमति हो तब भी . पर ऐसे सम्बन्ध क्यों पनप जाते हैं ये ना तो हम सोंचते हैं ना समाज ,जब दो लोगों से बनी जीवन की गाड़ी में कुछ खराबी आ जाये जिससे एक से दूरी किसी और से नजदीकी का कारण बन जाती है , जब समाज ये विधान तय करता है पति-पत्नी में ही सम्बन्ध हो ,तो फिर ये तय क्यों नहीं करता कि आपस में बंधने के बाद अपने व्यवहार से,अधिकार से सामनेवाले पक्ष को आहट ना करें ,उसे अपने समान ही मने तभी ये गाड़ी ठीक से आगे चलेगी, क्योंकि आज सचमे समाज बदल रहा पुरुषों कि तरह स्त्रियाँ भी अपने आप को सम्मानित और प्यार से पोषित देखना चाहती हैं, कभी समय था जब उसे पाठ पढ़ाया जाता था वो पुरुष कि जरखरीद गुलाम है और वैवाहिक जीवन में आये उतार चढ़ाव, तनाव को अकेले हँस कर झेल जाती थी, पर जहाँ भी ऐसे सम्बन्ध बनते सुने गए हैं वहा सबसे पहली कमी विवाहित जीवन में एक दुसरे के ओर से आई संवेदनाओं कि कमी है ,और जब ऐसे रिश्ते फिसल जाते हैं तो धार्मिक न्याय, दंड कानून और समाज अपने तर्कों पर तौलने लगते हैं ............
जवाब देंहटाएंवैयक्तिक जीवन में शुचिता ही सात्विक सार्वजनिक जीवन की नींव हो सकती है। कानून और धर्मग्रंथ गलत के लिए सज़ा का प्रावधान करें न करें अथवा वह कितना ही एकपक्षीय क्यों न हो,स्वविवेक का सहारा लेना ही सम्यक।
जवाब देंहटाएं@ Rajni Ji !
जवाब देंहटाएं@@ Kumar Ji !
मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए"
जिंदगी चाहिए मुझको मानी भरी,
चाहे कितनी भी हो मुख्तसर, चाहिए।
... लाख उसको अमल में न लाऊँ कभी,
शानोशौकत का सामाँ मगर चाहिए।
जब मुसीबत पड़े और भारी पड़े,
तो कहीं एक तो चश्मेतर चाहिए।
हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए,
मैं परिंदा हूं उड़ने को पर चाहिए।
मैंने मांगी दुआएँ, दुआएँ मिलीं
उन दुआओं का मुझपे असर चाहिए।
जिसमें रहकर सुकूं से गुजारा करूँ
मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।
--कन्हैयालाल नंदन
चाहिये से पहले देना सीखना चाहिये , तभी समस्या का हल खोज पायेंगे...
जवाब देंहटाएं----यह नर-नारी हैं...ग्यान का फ़ल खाया गया है तो यह सब चलता रहेगा ...जिसकी लाठी उसी की भेंस....बहुत से समाजों व क्षेत्रों में स्त्री -राज था व है...वहां उनके नियम चलते हैं/थे...
---अतः उभय् पक्षीय व्यक्तिगत शुचिता ही निकटतम समाधान है...
ak achhi prvishti ke liye abhar ...avidh ko vaidh banane wali bahas pr viram hona chahiye .
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