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मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

हम सब की माएं


हम सब की माएं


ये ऐसा बंधन है कभी टूट नहीं सकता ,
ये ऐसी दौलत है कोई लूट नहीं सकता ,
जीवन भर देती हम सबको दुआएं 
हम सब की माएं ;हम सबकी माएं.

वो अपना निवाला बच्चे  को दे देती ,
बदले में बच्चे  से भला माँ है क्या लेती ?
अपने पर ले लेती वो सारी बलाएँ ,
हम सबकी माएं,हम सब की माएं 

जो भटके कभी हम वो राह दिखाती,
जीने का सलीका माँ ही तो सिखाती 
ममता के मोती बच्चों पे लुटाएं ,
हम सबकी माएं.हम सबकी माएं .

जो गोद में लेकर रोते को हँसाती;
जो ऊँगली पकड़कर चलना है सिखाती ,
जो खुद जगती रहकर बच्चे को सुलाएं 
हम सब की माएं ,हम सबकी माएं .  
                                                      शिखा कौशिक 

5 टिप्‍पणियां:

  1. शिखा जी ,नमस्कार आपकी रचना आपकी आवाज में सुनकर अच्छा लगा | दरअसल माँ का स्थान है ही ऐसा जितना लिखा जाये या कहा जाये तब भी ऐसा महसूस होता है जैसे बहुत कुछ छूट गया है |

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  2. शिखा जी अभिवादन,
    माँ की सुन्दर अभिव्यक्ति। आपने माँ और मेरा
    बचपन याद दिया। बधाई एवं धन्यवाद।

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