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शनिवार, 26 नवंबर 2011
यह व्यथा कैसे सुनाउॅ?
क्यों बहा आंसू छलककर यह व्यथा कैसे सुनाउॅ?
रागिनी से राग गाकर क्या विरह का गान गाउॅ?
मैं अगर गा भी सका तो वह विरह का गान होगा।
छेड कर कोई गजल मैं क्यों समां बोझिल बनाउॅ?
सोचता हू दूर जाकर इस जहॉ को भूल जाउॅ।
याकि अपने ही हृदय का खून कागज पर बहाउॅ।
जानता हू कुछ लिखूगा वह प्रिये संवाद होगा।
क्यों निरर्थक स्याह दिल को कागजों में फिर लगाउॅ।
तिमिर की इस कालिमा में अरुण को कैसे भुलाउॅ?
जबकि खारा हो जहॉ प्रिय ! प्यास को कैसे बझाउॅ?
जिन कंटको से हृदय बेधित क्या उन्हें प्रियवर कहाउॅ?
जानता हू कुछ लिखूगा वह प्रिये संवाद होगा।
जवाब देंहटाएंक्यों निरर्थक स्याह दिल को कागजों में फिर लगाउॅ।..
सुन्दर भाव ..ह्रदय स्पर्शी अभिव्यक्ति....शुभ कामनायें !!
सुन्दर भाव ...!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना के लिए आपको बधाई । आप हमेशा सृजनरत रहें और मेरे ब्लॉग पर आपकी सादर उपस्थिति बनी रहे । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंshiprakash ji
जवाब देंहटाएंshashi purwar ji
prem sarowar ji
aapkaa aabhar ki aapne utsaah badhaya