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बुधवार, 31 अगस्त 2011

अर्धांगनी

अश्रुनयनों में भर लाती है,
ह्रदय प्रेम का कर के समावेश,
युग युग हो सुहाग अमर,
सिंदूर का कराती है माँग में प्रवेश।
पलक पावड़े राहों में बिछा के,
ईश्वर से करती है प्रार्थना,
प्रियतम मेरे युग युग जिये,
माँगती है मन से ये दुआ।

न्योछावर करती है अपना सम्पूर्ण जीवन,
चिर संरक्षित कौमार्यता यौवन।

पति परमेश्वर के हर्षोल्लास हेतु,
सति करती है यज्ञ का तिरस्कार,
स्वआहुति देकर तन की,
निभाती है अर्धांगनी का संस्कार।

पाषाण अहिल्या बन जाती है,
प्रियतम होते है जब रुष्ट,
सति अनुसुया के सतित्व से प्रेरित,
यमराज भी करते है अर्धांगनी को संतुष्ट।

उपवास,वर्त और पूजा,
पति ना हो मुझसे जुदा,
तेरे आँगन की तुलसी मै,
महकूँ तेरे घर में हर क्षण सदा।

ये तीज वर्त,ये प्यार तुम्हारा,
पावन गंगा सा रिश्ता हमारा।

फूलों की बगिया सजती रही,
दो फूल जो बगियाँ में खिले।

मेरी उम्र सारी तुमको लगे,
तन मेरा सुहागिन मरे,
प्रियतम मै रहूँ ना रहूँ कल,
तुम्हारा यश फैले सदा।

अस्तित्व तुम्हारा ही दिलाता है,
मेरी आत्मा को तन में जिंदा।

अर्धांगनी पत्नी तुम्हारी,
तेरे प्रेम की मतवाली है,
अब बाट ना जोह सकेगी,
अधीर,अकुलाई तेरी बावली है।

फलिभूत होगा हर वर्त,पूजा,
जब प्राण पखेड़ु छुटेंगे,
तेरी गोद में मिलेंगे सौ स्वर्गो का सुख,
स्व नैना से जो तुमको देख लेंगे।

सोलह सोमवारी,करवा चौथ,तीज,
का चाँद मुझे यूँ दृश्य होगा,
अंतिम क्षण हो जब श्वास विहीन,
प्रियतम मेरा जो समीप होगा।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सोलह सोमवारी,करवा चौथ,तीज,
    का चाँद मुझे यूँ दृश्य होगा,
    अंतिम क्षण हो जब श्वास विहीन,
    प्रियतम मेरा जो समीप होगा।
    bahut sundar bhavpoorn abhivyakti badhai satyam ji

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