अधूरे प्रेम की प्सास के दस्तावेजों की सर्जक अमृता!भाग 6
पिछले माह जुलाई में जब भारतीय नारी ब्लाग पर अमृमा प्रीतम के बारे में लिखने की श्रंखला प्रारंभ की थी तो मेरी यह योेजना थी कि प्रति सप्ताह औसतन दो पोस्ट लिखते हुये अमृता जी के जन्म दिवस 31 अगस्त को इसका समापन करूँगा परन्तु कुछ कारणों के चलते ऐसा संभव नहीं हो न सका। एक तो यह पूरा महीना स्वतंत्र भारत के इतिहास में भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना हजारे की गांधीवादी लडाई के चलते इस विषय से संबंधित आलेखों के सामयिक महत्व का रहा और दूसरे भारतीय नारी ब्लाग पर संस्थापको द्वारा अगस्त महीने के लिये बहन विषय नियत कर दिया गया।
वहरहाल , बहन विषय पर तो अमृताजी के संबंध में भी कुछ सामग्री जुटा पाया जिसे आपके साथ साझा भी किया, इसी विषय पर अमृता जी से जुडी कुछ सामग्री और है जिसे व्यवस्थित न कर पाने के कारण नहीं प्रस्तुत कर सका अब इसे भैया दूज या ऐसे ही किसी अन्य अवसर पर साझा करूंगा। इसके अतिरिक्त अन्य विभूतियों के जीवन से जुडी बहन विषयक सामग्री को भी प्रस्तुत करने का प्रयास करता रहा। आज जब इस माह का अंतिम दिन है और साथ ही अमृता प्रीतम जी का जन्म दिवस भी है तो इस अवसर पर अपनी पूर्व योजनानुसार भारतीय नारी ब्लाग पर उन्हे याद करने के अवसर को चूकना नहीं चाहता सो यह पोस्ट प्रस्तुत कर रहा हूँ।
अमृता प्रीतम जी की कलम उन विषयों पर चली जो सामान्यतः भारतीय नारी के सामाजिक सरोकारों से इतर थे। जहाँ अमृता जी के अन्य समकालीन लेखकों द्वारा भारतीय नारी की तत्कालीन सामाजिक परिवेश में उनकी व्यथा और मनोदशा का चित्रण किया है वहीं अमृता जी ने अपनी रचनाओं में इस दायरे से बाहर निकल कर उसके अंदर विद्यमान ‘स्त्री’ को मुखरित किया है। ऐसा करते हुये अनेक अवसरों पर वे वर्जनाओं को इस सीमा तक तोडती हुयी नजर आती हैं कि तत्कालीन आलोचकों की नजर में अश्लील कही जाती थीं।
चित्र 1 पत्रकार मनविन्दर कौर द्वारा जागरण ग्रुप की पत्रिका सखी के अप्रैल 2003 में लिखा गया लेख
अमृता जी ने अपना जीवन वर्जनाओं का न मानते हुये वेलौस जिया, और जो कुछ किया उस पर पक्के रसीदी टिकट की मुहर लगाकर सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी कर लिया। वह भले ही सामाजिक परिवेश में ग्राह्य रहा हो या न रहा हो। उन्होंने अपने जीवन के चालीस वर्ष साहिर लुधियानवी की किताबों के कवर डिजायन करने वाले चित्रकार इमरोज के साथ बिताये। नई दिल्ली के हौजखास इलाके का मकान के-25 इन दोनो के सहजीवन के 40 वर्षो का मौन साक्षी रहा है। अपने जीवन के अंतिम पडाव में भी अमृताजी इमरोज के साथ ही थीं।
इमरोज के अमृता से लगाव की कल्पना आप इस छोटे सक तथ्य से लगा सकते हैं कि इमरोज की नजरों में वे आज भी गुजरे कल की बात (पास्ट) नहीं हैं। वर्ष 2003 में जब अमृता जी जीवित थीं तो जागरण ग्रुप की पत्रिका सखी के लिये पत्रकार मनविन्दर कौर द्वारा उनके घर नई दिल्ली के हौज खास जाकर उनसे और इमरोज से बातचीत की गयी थी जो सखी के अप्रैल 2003 में प्रकाशित हुई थी। कालान्तर में जब अमृता जी नहीं रहीं तो 2008 में लेखिका मनविन्दर कौर ने पुनः हौज खास जाकर यह टोह लेने का प्रयास किया कि अमृता के न रहने के बाद उनके बगैर इमरोज कैसा अनुभव कर रहे है तो इमरोज का उत्तर उनके लिये हैरत में डालने वाल था। इमरोज ने कहा था किः-
‘ अमृता को पास्ट टेन्स मत कहो, वह मेरे साथ ही है, उसने जिस्म छोडा है साथ नहीं।’
चित्र 2 अमृता जी नई दिल्ली के हौज खास इलाके में रहती थी (घर का चित्र रंजना रंजू भाटिया के ब्लाग ‘अमृता प्रीतम की याद में.......’ से साभार) इस घर के प्रवेश द्वार पर आज भी इमरोज द्वारा डिजायन की गयी अमृता प्रीतमजी के नाम की ही पट्टिका लगी है। इमरोज यह बखूबी जानते थे कि अमृता का प्यार साहिर लुधियानवी थे लेकिन उन्होंने अपनी और अमृता की दोस्ती में इस बात को कभी भी किसी अडचन या अधूरेपन के रूप में नहीं देखा। साहिर लुधियानी के बारे में उनका कहना हैः-
‘साहिर के साथ अमृता का रिश्ता मिथ्या और मायावी थ जबकि मेरे साथ उसका रिश्ता सच्चा और हकीकी, वह अमृता को बेचैन छोड गया और मेरे साथ संतुष्ट रही।’
पिछले वर्ष रंजना (रंजू भाटिया) जी ने अपने ब्लाग ‘अमृता प्रीतम की याद में.......’ पर बरसों पहले इमरोज से हुयी बातचीत का एक हिस्सा प्रस्तुत किया था जिसमें उन्होंने यह सवाल किया था इस घर में अमृता का कमरा बाहर तथा इमरोज का कमरा अंदर क्यों है? इस पर इमरोज के द्वारा दिया गया उत्तर अमृता के प्रति इमरोज के लगाव का जो चित्र खींचता है वह अद्वितीय हैः-
‘मैं एक आर्टिस्ट हँू और वह एक लेखिका पता नहीं कब वो लिखना शुरू कर दे और मैं पेंटिंग बनाना। इतना बडा घर होता है फिर भी पति पत्नी ऐक ही बिस्तर पर क्यों सोते हैं ? क्योंकि उनका मकसद कुछ और होता है। हमारा ऐसा कुछ मकसद नहीं था इसलिये हम अलग सोते थे। सोते वक्त अगर मैं हिलता तो उसे परेशान होती और अगर वह हिलती तो मुझे । हम एक दूसरे को कोई परेशानी नहीं देना चाहते थे। आज शादियां सिर्फ औरत का जिस्म पाने के लिये होती हैं । मर्द के लिये औरत सिर्फ सर्विग वोमेन है कयांेकि वह नौकर से सस्ती होती है। एसे लोगों को औरत का प्यार कभी नहीं मिलता। आम आदमी को औरत सिर्फ जिस्म तक ही मिलती है प्यार तो किसी किसी को ही मिलता है। औरत जिस्म से बहुत आगे है , पूरी औरत उसी को मिलती है जिसे वो चाहती है।’
चित्र 3 इमरोज जिन्होने 40 वर्षो तक उनके साथ जीवन बिताया और आज भी उनके ही साथ रहते हैं ।
अमृता के प्रति इमरोज के इस गहरे भावनात्मक लगाव की तह में जाकर उस दिन की पडताल करने पर रंजना (रंजू भाटिया) जी को वह दिन भी दिखलाई पडा जब इमरोज ने अपना जन्मदिवस अमृता जी के साथ मनाया था। इस दिन को याद करते हुये इमरोज ने कहाः-
‘ वो तो बाइ चांस ही मना लिया। उसके और मेरे घर में सिर्फ एक सड़क का फासला था । मै उससे मिलने जाता रहता था। उस दिन हम बैठे बातें कर रहे थे तो मैने उसे उसे बताया कि आज के दिन मैं पैदा भी हुआ था। वो उठकर बाहर गयी और फिर आकर बैठ गई। हमारे गांव में जन्मदिन मनाने का रिवाज नहीं ,अरे पैदा हो गये तो हो गए, ये रिवाज तो अंग्रेजो से आया है। थोडी देर के बाद उसका नौकर केक लेकर आया। उसने केक काटा थोडा मुझे दिया और थोडा ख्ुाद खाया । ना उसने मुझे हैप्पी बर्थडे कहा और ना ही मैने उसे थैक्यू। बस दोनो एक दूसरे को देखते और मुस्कुराते रहे ।’
बस इसी तरह एक दूसरे को देखकर मुस्कुराना और बिना कुछ भी कहे सब कुछ कह जाने वाली भाषा के साथ जीने वाली अमृताजी आज हमारे बीच न हों लेकिन इस बात से इमरोज को कोई फर्क नहीं पडता क्योकि उनका मानना है कि वे उनके साथ तो आज भी हैं ना।
amrita ji bare me aapne hame bahut achchhi jankari di hai aabhar.
जवाब देंहटाएंआया खुशियों का पैगाम -ईद मुबारक
happy birthday to AMRITA PREETAM JI .very nice post .thanks
जवाब देंहटाएंआदरणीय अमृमा प्रीतम जी
जवाब देंहटाएंआपकी मनोकामना पूर्ण हो .. जनमदिन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!
आद.अशोक कुमार शुक्ला जीएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ.
आदरणीय महोदय यह समस्या शास्वत है आज ही मैने अमृता जी के बारे में एक पोस्ट लगाई जिसमें इस्तेमाल किये गये चित्र और सामग्री के साथ उस ब्लागर का नाम सम्मान सहित उल्लेख किया परन्तु भारतीय नारी ब्लाग पर प्रकाशित मेरे ही लेखों की कापी पेस्टिंग करके कुछ अन्य लोगों ने भी अमृता जी को याद किया परन्तु मेरे नाम या ब्लाग का उल्लेख करना उचित नहीं समझा । क्या करेंगें इसी व्यवस्था के साथ ही ब्लाग करना होगा। आमीन मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि उस ब्लागर को बधाई दूँ या उलाहना । काश! नाम या ब्लाग का उल्लेख करन मे भी थोडी सी तत्परता दिखातीं तो .... बहरहाल कोई बात नहीं मेरी शुभकामनाऐं हैं गुड लक
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