''आदमी वो नहीं हालत बदल दें जिनको ,
मैं अपने विचारों में उसमे जो खूबियाँ पाई हैं वे मैं आज आप सभी से शेयर कर रही हूँ.
स्वाभिमान मेरी बहन में कूट कूट कर भरा है ये हमारे स्नातक कॉलेज की बात है जब उसका एडमिशन हुआ तभी मैं समझ गयी थी कि कॉलेज वाले हम दोनों बहनों को ''बेस्ट'' का अवार्ड देने से रहे और इसी कारण मैंने दोनों के सालभर के सभी पुरुस्कारों की सूची तैयार कर ली थी और जब साल के अंत में आया पुरुस्कारों का नंबर तो मेरा विचार सही साबित हुआ और मुझे तीन साल की बेस्ट का अवार्ड देते हुए उन्होंने मेरी बहन का एक साल की बेस्ट का अवार्ड उसके कुछ अवार्ड काटते हुए एक और लडकी को देने का प्रयत्न किया जो मेरे लिए सहन करने की सीमा से बाहर था क्योंकि मेरे कहने पर ही उसने इतनी प्रतियोगिताओं में पक्षपात सहते हुए भी भाग लिया था और इस तरह मेरे आक्षेप पर उन्होंने मेरे अवार्ड को भी काटा और आरम्भ हुआ न्यायिक कार्यवाही का सिलसिला और साथ ही मेरी बहन को नीचा दिखाने का सिलसिला [मुझे क्या दिखाते मैं तो बी. ए. के बाद दूसरेकॉलेज में चली गयी थी]और यही वजह थी कि कॉलेज की हर प्रतियोगिता में भाग लेने योग्य होते हुए भी मेरी बहन जो वहां लगातार तीन साल तक कैरम चैम्पियन रही थी ,कहानी कविता लिखना जिसकी उलटे हाथ का काम था ने एम्.ए. में किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया क्योंकि अपने स्वाभिमान पर कोई चोट वह बर्दाश्त नहीं कर सकती थी.
आदमी वो हैं जो हालत बदल देते हैं.''
पूरी तरह से खरी उतरती हैं ये पंक्तियाँ मेरी छोटी किन्तु मुझसे विचारों और सिद्धांतों में बहुत बड़ी मेरी बहन ''शिखा कौशिक पर .
कोई नहीं सोचता था कि ये छोटी सी लड़की इतने महान विचारों की धनी होगी और इतनी मेहनती.जब छोटी सी थी तो कहती थी भगवान् के पास रहते थे उन्होंने हमारा घर दिखाया और उससे यहाँ रहने के बारे में पूछा और उसके हाँ करने पर उसे यहाँ छोड़ गए .सारे घर में सभी को वह परम प्रिय थी और सभी बच्चे उसके साथ खेलने को उसेअपने साथ करने को पागल रहते किन्तु हमेशा उसने मेरा मान बढाया और मेरा साथ दिया .
छोटी थी तो कोई नहीं सोचता था कि ये लड़की नेट परीक्षा पास करेगी या डबल एम्.ए. और पी.एच.डी.करेगी .कोई भी परीक्षा पास कर घर आती तो सभी से कहती फर्स्ट आई हूँ सातवाँ आठवां नंबर है.छुट्टियों में बाबाजी से कहती क्या बाबाजी जरा से पेपर और सारे साल पढाई.सारे समय गुड्डे गुड़ियों से खेलने में लगी रहने वाली ये लड़की कब पढाई में जुट गयी पता ही नहीं चला और आज ये हाल हैं कि कोई भी वक़्त जब वह खाली हो उसके हाथों में कोई न कोई किताब मिल जाएगी.
स्वाभिमान मेरी बहन में कूट कूट कर भरा है ये हमारे स्नातक कॉलेज की बात है जब उसका एडमिशन हुआ तभी मैं समझ गयी थी कि कॉलेज वाले हम दोनों बहनों को ''बेस्ट'' का अवार्ड देने से रहे और इसी कारण मैंने दोनों के सालभर के सभी पुरुस्कारों की सूची तैयार कर ली थी और जब साल के अंत में आया पुरुस्कारों का नंबर तो मेरा विचार सही साबित हुआ और मुझे तीन साल की बेस्ट का अवार्ड देते हुए उन्होंने मेरी बहन का एक साल की बेस्ट का अवार्ड उसके कुछ अवार्ड काटते हुए एक और लडकी को देने का प्रयत्न किया जो मेरे लिए सहन करने की सीमा से बाहर था क्योंकि मेरे कहने पर ही उसने इतनी प्रतियोगिताओं में पक्षपात सहते हुए भी भाग लिया था और इस तरह मेरे आक्षेप पर उन्होंने मेरे अवार्ड को भी काटा और आरम्भ हुआ न्यायिक कार्यवाही का सिलसिला और साथ ही मेरी बहन को नीचा दिखाने का सिलसिला [मुझे क्या दिखाते मैं तो बी. ए. के बाद दूसरेकॉलेज में चली गयी थी]और यही वजह थी कि कॉलेज की हर प्रतियोगिता में भाग लेने योग्य होते हुए भी मेरी बहन जो वहां लगातार तीन साल तक कैरम चैम्पियन रही थी ,कहानी कविता लिखना जिसकी उलटे हाथ का काम था ने एम्.ए. में किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया क्योंकि अपने स्वाभिमान पर कोई चोट वह बर्दाश्त नहीं कर सकती थी.
बाहर से कठोर दिखने वाली मेरी ये बहन अन्दर से कितनी कोमल ह्रदय है ये मैं ही जानती हूँ.मेरी जरा सी तबियत ख़राब हुई नहीं कि उसके माथे पर चिंता की रेखाएं उभर आती हैं .मेरे बेहोश होने पर वह बेहोश तक हो जाती है जबकि कहने को हमारे में कोई जुड़वाँ वाला सम्बन्ध नहीं है.और जब तक मुझे ठीक नहीं कर लेती तब तक चैन की एक साँस तक वह नहीं लेती.
माता-पिता के हर कार्य को पूर्ण करने में वह सदा तत्पर रहती है और जहाँ तक हो सके ये काम वह अपने हाथ में ही रखती है और उनकी सेवा करने में दिन रात का कोई ख्याल उसके मन में कभी नहीं आता है.
हम जहाँ रहते हैं वहां पर जब नेट परीक्षा की बात आई तो कहीं से कोई जानकारी हमें उपलब्ध नहीं हुई पर ये उसकी ही दृढ इच्छा थी कि उसने स्वयं न केवल जानकारी हासिल की बल्कि बिना किसी कोचिंग की मदद के पहले ही प्रयास में हिंदी विषय में नेट परीक्षा पास कर दिखाई.
आज भाई भतीजावाद का युग है और ऐसे में हम सभी अपने अपने को बढ़ाने में लगे हैं किन्तु जहाँ तक उसकी बात है वह इस सब के खिलाफ है और इसका एक जीता जगता उदहारण ये है कि आज 13 अगस्त को मैं यह पोस्ट लिखने की आज्ञा शिखा से ले पाई हूँ और पहले इसे इसी कारण अपने ब्लॉग पर डाल रही हूँ कि कहीं कोई और पोस्ट उसके भारतीय नारी ब्लॉग पर आ जाये और उसका विचार पलट जाये.
मैं उसकी इन भावनाओं का दिल से सम्मान करती हूँ क्योंकि आज कोई तो है जो मुझे सही राह दिखा सके.उसके विचार मुझे बहुत कुछ ''कलीम देहलवी ''के इन विचारों से मिलते लगते हैं-
''हमारा फ़र्ज़ है रोशन करें चरागे वफ़ा,
हमारे अपने मवाफिक हवा मिले न मिले.''
शालिनी कौशिक
शिखा कौशिक जी के बारे में जानकारी मिली, अच्छा लगा। वह आपकी एक अच्छी बहन हैं और आप उनकी अच्छी बहन हैं और आप दोनों हमारी भी अच्छी ही बहन हैं।
जवाब देंहटाएंआपके शायरी के ज़ौक़ को देखते हुए भेंट के तौर पर आज आपको एक ऐसी वेबसाइट पर लिए चलते हैं जहां आपकी हिंदी जानने वाली बहन को कुछ अच्छा मिलेगा, ऐसी आशा है।
हमारी तरफ़ से आप दोनों बहनों को बहुत बहुत शुभकामनाएं,
जीवन में आप दोनों को हरेक सफलता मिले।
दुम हिलाता फिर रहा वो चन्द वोटों के लिए।
इसको जब कुर्सी मिलेगी, भेड़िया हो जाएगा।
बधाई हो आपको , ऐसी बहन होने पे :)
जवाब देंहटाएं________________________________
बहना को देता आशीष नज़र आऊँ :)
Bahut khoobsoorat bhaavanaayen,dono bahano kaa yah pyaar hameshaa bana rahe .
जवाब देंहटाएंभारतीय स्वाधीनता दिवस पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं .
Hamaari dono honhaar bahne ko
जवाब देंहटाएंhaarfik shubhkamnaye.
Iswar aap dono ke liye safalta ke naye manak banaaye.
Shubhashish.
बधाई हो आपको , ऐसी बहन होने पे
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं
शिखा कौशिक जी के बारे में जानकारी पा कर बहुत प्रसन्नता हुई.
जवाब देंहटाएंवे सदा प्रगति करें, यही कामना है...
बहनों का ऐसा प्यार यूँ ही बना रहे ...
जवाब देंहटाएंशिखा जी के बारे में आपसे जानकर अच्छा
जवाब देंहटाएंलगा । परमार्थिक भावना ही अलौकिक जगत
में प्रवेश दिलाती है । अलौकिकता से संग कराती
है । सुन्दर भावनात्मक पोस्ट । धन्यवाद शालिनी जी