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शनिवार, 7 मार्च 2020

तुम्हारे और मेरे बीच की
दूरी में
पसरा हुआ ग़म
कब्ज़ा किये रहता है
मेरी
पनीली आँखों के
कोरों पर..
क्षीण होते हुये
मन के सामने
बिछा देता है
तुम्हारी यादों का
इंद्रजाल
कि .. उलझती रहूँ
उदासियों के दरवाज़े को
खोलकर
लगा देता है
सपनों के अंबार
कि.. विचरती रहूँ ..
पकड़कर
मेरी कलाइयों को
चलना सिखाने लगा है
तुम्हारे और मेरे बीच की
दूरी में
पसरा हुआ ग़म
मुझे
पहचानने लगा है ..

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