पेज

शनिवार, 7 मार्च 2020

अंतरराष्ट्रीय दिवस बनाम शाहीन बाग......



कल इंंडिया टीवी पर अनायास ही शाहीन बाग दिख गया. अनायास यूँ कि आजकल समाचार चैनल , अखबार आदि विशेष स्थिति में ही देखती हूँ. फेसबूक के पत्रकारों की संगति में उसकी अधिक आवश्यकता भी नहीं होती क्योंकि यहाँ पक्ष / विपक्ष दोनों ही प्रभावी रूप से उपस्थित एवं मुखर भी हैं. अधिकांश वाट्सएप विडियो भी मैं देखे बिना ही डिलीट करती हूँ. स्मार्ट टीवी पर  यूट्यूब विडियो देखते हुए जब नेट कनेक्टिविटी बाधित होती है तब अपने आप टीवी चैनल पर सेट होने  के कारण ही अनायास दिख पड़ा समाचार चैनल.

तो आती हूँ मैं शाहीन बाग के समाचारों पर. अनूठा दृश्य था. दो लड़कियां रिपोर्टिँग कर रही थीं छिटपुट सी भीड़ में. रिपोर्टिंग करती लड़कियों ने उपस्थित स्त्रियों से बातचीत करनी चाही. उसने कम भीड़ का कारण पूछा तो एक का जवाब था कि हमारी हेड नहीं आई हैं. उनके आने के बाद हम इकट्ठी होती हैं.  दूसरी स्त्री से पूछा कि आपकी हेड कौन है तो जवाब आया हमारी कोई हेड नहीं है.अन्य स्त्रियों से बात करने पर वे जवाब दे ही रही थीं कि एक आदमी आया और उनमें से एक बुजुर्ग स्त्री के मुँह को उसकी चुन्नी से ढ़कने लगा चुप रहो के इशारे करते हुए. तभी हूटर बजने लगा और बहुत से युवक एकत्रित हो गये.  चुप रहो सब , कोई कुछ नहीं बोलेगा करते हुए अपने मुँह पर अँगुलियाँ रखते हुए चुप रहने का इशारा करते हुए. वहाँ उपस्थित सभी स्त्रियाँ अब चुप थीं. कोई जवाब नहीं दे रही थीं. कुछ दिन पहले ही किसी प्रबुद्ध स्त्री की वाल पर पढ़ा था कि अपने अधिकार के लिए जाग चुकी हैं, स्वतः प्रेरणा आदि आदि....
उन संवाददाता लड़कियों ने युवकों से कहा भी कि आप इन्हें बोलने क्यों नहीं दे रहे हैं. इस पर उपस्थित लड़कों की भीड़ की ताली बजा बजाकर चिढ़ाने जैसी आवाजें आती रहीं और उन आत्मनिर्भर साहसी लड़कियों की आवाजें - बदतमीजी न करें, कैमरे को हाथ न लगायें,  कैमरा क्यों बंद करवा रहे हैं आदि आदि....

वहाँ उपस्थित स्त्रियों के हुजूम में से कोई भी स्त्री उन युवकों को टोकते , उन लड़कियों के वहाँँ से सुरक्षित निकल जाने का कोई प्रयास करती दिखीं नहीं मुझे. हालांकि बैकग्राउंड में एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति की झलक अवश्य दिखी मुझे जो कुछ लड़कों को डाँट रहा था....

उसी समाचार के बीच में पुलिस फोर्स पर पत्थर बरसाती स्त्रियों का  विडियो भी दिखा. उसके अलावा भी यहीं फेसबूक पर भी बहुत तस्वीरें भरी पड़ी थीं हाथों में पत्थर लिये. इनमें से अधिकांश तो वही रही होंगी न जो कुछ समय पहले ट्रिपल तलाक के फैसले पर आजादी का जश्न मना रही थी.

अंतरराष्ट्रीय दिवस पर अधिकांश प्रबुद्ध स्त्रियों की वाल पर पढ़ने को मिलेगा- स्त्रियों की जात कुछ नहीं होती आदि आदि. और मैं सोच रही हूँ कि क्या वाकई ऐसा ही है....

फिर भी मैं अपने योगदान का उत्तरदायित्व वहन करते हुए सभी स्त्रियों को अंतरराष्ट्रीय स्त्री दिवस की ढ़ेरों शुभकामनाएं देती हूँ और प्रार्थना भी करती हूँ कि हम अपनी स्वतंत्रता को सही मायने में समझें और उसका रचनात्मक उपयोग करें....

http://vanigyan.blogspot.com/2020/03/blog-post.html
तुम्हारे और मेरे बीच की
दूरी में
पसरा हुआ ग़म
कब्ज़ा किये रहता है
मेरी
पनीली आँखों के
कोरों पर..
क्षीण होते हुये
मन के सामने
बिछा देता है
तुम्हारी यादों का
इंद्रजाल
कि .. उलझती रहूँ
उदासियों के दरवाज़े को
खोलकर
लगा देता है
सपनों के अंबार
कि.. विचरती रहूँ ..
पकड़कर
मेरी कलाइयों को
चलना सिखाने लगा है
तुम्हारे और मेरे बीच की
दूरी में
पसरा हुआ ग़म
मुझे
पहचानने लगा है ..