आज कल शहरो में फेमिनिज्म की आवाज बड़ी तेजी स्वर पकड़ रही है, सोशल मीडिया साइट्स पर मुहिमे चलायी जा रही है , महिलाएं खासकर युवा यानि हमारी हमउम्र ,महिलाओ के मुद्दों पर खुल कर सामने आ रही है फिर चाहे वह मुद्दा बीते दशक से उठ रहा समान वेतमान का हो या फिर मासिक धर्म और सेनेटरी पैड्स के उपयोग जैसे मुद्दा | जिसका उल्लेख भी आज से कुछ वर्ष पहले तक किया जाना अपवित्र माना जाता था ।
गाँव की नारी ,सब पर भारी
यह तो हो गयी शहरों की बात अब बात करते है भारतीय समाज के उस तबके की जिसकी व्याख्या अंग्रेजी के शब्द "underated" से की जा सकती है वह है "ग्रामीण महिला" जिसका उल्लेख न तो रोज रोज अखबारों में होता है, न ही यह तबका टीवी पर खिड़कियों में बैठा बहस करता दिखेगा पर है तो यह भारतीय समाज का सबसे अहम तबका जो इस आधुनिकता के दौर में जहाँ पश्चिम की तरफ से चल रही हवा हमारे रहन सहन में मिलावट कर रही है उसी दौर में ग्रामीण महिलाएं आज भी नैतिकता और सरलता का झंडा उठाए झूझ रही है और जिस बराबरी के हक़ की आवाज को आज लोग फेमिनिज्म की उपमा दे रहे है यह महिलाएं सदियों पहले से उसके लिए संघर्षरत है,
स्त्रियों को काम करने की आजादी देना जो आज के इस सोशल मीडिया के महिला शसक्तीकरण की सबसे बड़ी मांग है उसमे ग्रामीण महिलाएं शुरू से अग्रसर रही है ग्रामीण भारत के प्रमुख व्यवसाय कृषि में देखा जाये तो महिलाएं पुरुषों से कंधे से कन्धा मिलाये चल रही है और जब बात शिक्षा की आती है तो इस वक्त लड़कियों की शिक्षा दर में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है और अगर राजनितिक क्षेत्र में देखा जाये तो ग्राम पंचायत में 50% आरक्षण ने महिलाओं को इस मोर्चे पर भी मजबूती प्रदान की है ।
शहरी और ग्रामीण महिला
अब अगर तुलनात्म बात की जाये तो यह तो मानना पड़ेगा की भारत में दो अलग देश बसते है शहरीय भारत और ग्रामीण भारत जिनका लक्ष्य एक है पर जरूरते अलग अलग है और किसी भी मुद्दे पर विश्लेषण करने के लिए सिक्के के दोनों पहलु देखना जरूरी है | एक जगह जहाँ शहरीय इलाको में महिला शक्तिकरण बहुत आगे निकल गया है पर उसके साथ ही इसमें कही कही एक नकलीपन भी नजर आता है नशीले पदार्थो के सेवन ,पुरुषों के प्रति कट्टरपन भी आदि भी इसमें आ चुके है ,जिसका उदहारण हाल फिलहाल में बॉलीवुड में शुरू हुए एक सम्मानीय कदम #metoo है जो भी अंत में जाते जाते पब्लिसिटी के ढोंग की भेंट चढ़ गया और जो झूठे आरोपो की भीड़ में सच्चे खुलासों पर से भी लोगो का विश्वास उठ गया | वही दूसरी और ग्रामीण भारत में इसकी गति धीमी जरूर है पर वहाँ यह भोंडापन और नकलीपन नहीं है परन्तु समस्याएं यहाँ भी है रफ़्तार बहुत धीमी अपनी आवाज बुलंद करने में और समस्याएं कहने में हिचकिचाहट है कुछ और भी पहलू है जैसे जिन गांवों में महिला सरपंच है उनमे से ज्यादातर में ताकत आज भी सरपँच पति, पिता या परिवार के किसी पुरुष के पास है ।
सीधा लेखक के दिल से :
बस यही था भारत में दो तरह के महिला शक्तिकरण पर छोटा सा लेख जितनी समझ है दोनों जगहों की उतना ही लिखा है ,
माना उम्र कम है , अनुभव ज्यादा नहीं है इसीलिए कुछ चीजो में परिपक्वता की कमी हो सकती है इसीलिए आपके सुझाव और स्वस्थ बहस के लिए आप सब कमेंट बॉक्स में आमंत्रित है
मेरी जिंदगी में दखल रखने वाली सभी महिलाओं को मेरा शत शत नमन 🙏
जय हिंद🙏
-आपका
✍️शुभम जाट
लेखक पर्सनल ब्लॉग : युवा भारत
लेखक पर्सनल ब्लॉग : युवा भारत
शुभम बहुत बहुत स्वागत है आपका भारतीय नारी ब्लॉग पर। पहली ही पोस्ट से नारी के सन्दर्भ में आपने अपनी गहरी समझ का परिचय दिया है। अपवाद हर जगह हैं हैं पर मूल स्थिति लगभग वही है जो आपने लिखी है। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद शिखा जी मुझे "भारतीय नारी" के मंच पर अपने विचार साँझा करने देने के लिए🙏
हटाएंप्रशंसनीय
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर🙏
हटाएंबहुत सार्थक तुलनात्मक अध्ययन, बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महोदया🙏
जवाब देंहटाएंVery good write-up. I certainly love this website. Thanks!
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