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शनिवार, 3 जून 2017

प्रियंका और प्रधानमंत्री जी


    भारतीय संस्कृति ,जिसका हम इस विश्व में बहुत बढ़-चढ़ कर गुणगान करते हैं अब लगता है उसकी तरफ से मुंह फेरने का वक़्त नज़दीक आ गया है .कहने को यहाँ मेरी सोच को पुरातनवादी कहा जायेगा ,पिछड़ी हुई कहा जायेगा ,बहनजी सोच कहा जायेगा किन्तु क्या यही आप सब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून की पत्नी सामंथा के लिए भी कहेंगे जिन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के भारतीय होने के सम्मान में भारतीय परिधान साड़ी को अपनाया और नरेंद्र मोदी जी के सामने उपस्थित हुई जिसकी नाममात्र की भी अक्ल भारतीय अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा में नहीं दिखाई दी.
       जहाँ तक भारतीय संस्कृति की बात है उसमे अपने बड़ों के सामने ऐसी बचकानी हरकतों से बचा जाता है जिन्हें हम अपने हमउम्र साथियों के साथ करते रहते हैं लेकिन यहाँ तो स्थिति उलटी ही दिखाई दी ,प्रियंका ने न केवल विदेशी परिधान पहने बल्कि खुली टांगों में अपने पैरों को एक दूसरे के ऊपर रख प्रधानमंत्री के ठीक सामने बैठ गयी जो कि पूरी तरह से भारतीय संस्कृति के विपरीत हरकत थी .
        देखने में आ रहा है कि आने वाली भारतीय पीढ़ी तरक्की के नाम पर सबसे पहले जिस तरफ तरक्की कर रही है वह तरक्की है ही कपड़ों का शरीर पर कम  करना और इसकी शुरुआत फिल्मे तो बहुत पहले कर चुकी हैं लेकिन राष्ट्रीय पुरुस्कारों में जिस नामचीन शख्सियत ने ये शुरुआत की वह भी दुर्भाग्य से प्रियंका चोपड़ा ही हैं .राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल जी के सामने प्रियंका जिस वेशभूषा में पुरुस्कार लेने गयी ,चेहरे पर शर्म का लेशमात्र भी नहीं था जबकि देश के सर्वोच्च पद पर आसीन प्रतिभा जी जिन वस्त्रों में भारतीय संस्कृति को गौरवान्वित कर रही थी उन्हें देख बेशर्मी को भी स्वयं पर शर्म आ जाती .
     

     प्रियंका की ही पहल थी कि पिछले राष्ट्रीय पुरुस्कार समारोह में कंगना रनौत ने भी शर्म को आइना दिखा दिया और ऐसी वेशभूषा में इतनी बेशर्मी से वहां आई कि राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी तक को पुरुस्कार देते हुए आँखें झुकानी पड़ी .
     क्या यही है नारी सशक्तिकरण जो नारी के शरीर के वस्त्रों के कम होने पर ही दिखाई दे देता है .ये बात सही है कि कहीं कहीं शरीर पर कम कपड़ों की आवश्यकता होती है जैसे सानिया मिर्जा के टेनिस में शरीर पर खेल के लिए निश्चित वस्त्रों की ही आवश्यकता होती है ,एक पहलवान शरीर पर पूरे कपडे पहनकर पहलवानी नहीं कर सकता लेकिन जहाँ आप किसी के साथ औपचारिक रूप से बातचीत कर रहे हैं वहां ऐसे अंगदिखाऊ कपड़ों की क्या आवश्यकता है ?
    इस तरह से ये प्रसिद्द अभिनेत्री भारतीय नारियों के लिए समाज में रहने लायक माहौल समाप्त कर रही हैं क्योंकि समाज में शिष्टता का जो माहौल है वह इनका अनुसरण करने वालियों द्वारा निश्चित समाप्त कर दिया जायेगा क्योंकि आज ये या इनका अनुसरण करने वाली ही तरक्की वाली हैं बाकि सबकी नज़रों में ''बहनजी '' हैं ,''पिछड़ी हुई '' हैं और हर कोई तो नहीं लगभग अधिकांश  अपनी वाली में इन्हें ही ढूंढता है अब ये तो समाज में हर किसी से मिलेंगी नहीं और हर कोई अपनी मिलने वाली में इन्हें ढूंढेगा और जब ये नहीं मिलेंगी तो उसे जहाँ ये मिलेंगी वहां फिसल जायेगा मतलब हो गया न समाज का भी सशक्तिकरण ,घर टूटेगा और घर परिवार बढ़ेगा ''लिव-इन '' की तरफ.अब और पता नहीं क्या क्या होगा ?
    ऐसे में सर्वोच्च पद पर विराजमान हमारे प्रधानमंत्री जी की जिम्मेदारी बढ़ जाती है वे अपने इस देश को संभालें और इन देशवालियों को भी जो इस पूरे देश में अराजकता फ़ैलाने में जुटी हैं .

शालिनी कौशिक
     [कौशल ]

5 टिप्‍पणियां:

  1. ये हर व्यक्ति को हक है कि वो अपने पसंद के कपड़े पहने पर जब अवसर हो देश के प्रधानमंत्री के समक्ष उपस्थित होने का तब गरिमा का ख्याल रखना उचित ही है. सार्थक पोस्ट हेतु आभार

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  2. सहमत हूँ आपसे. प्रतिक्रिया हेतु आभार शिखा कौशिक जी

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  3. सहमत हूँ आपसे. प्रतिक्रिया हेतु आभार शिखा कौशिक जी

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