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शुक्रवार, 12 मई 2017

सूखे गुलाब ---ग़ज़ल---डा श्याम गुप्त


सूखे गुलाब ---ग़ज़ल---डा श्याम गुप्त

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ग़ज़ल----
इन शुष्क पुष्पों में आज भी जाने कितने रंग हैं |
तेरी खुशबू, ख्यालो-ख्वाब किताबों में बंद हैं |

न गुलाब पुस्तकों में अब, न अश्रु-सिंचित  पत्र,
यादों को संजोयें वो दरीचे ही बंद हैं |

क्या ख्वाबो-ख्याल का फायदा, इस हाथ ले और दे,
किताबों में गुलाब, इश्क का ये भी कोइ ढंग है |

फसली है इश्क, रंग, खुशबू, पुष्प भी नकली,
ये आज की दुनिया भी कितनी हुनरमंद है |

कल की न सोच, न कल को सोच, बस आज पर ही चल,
है प्यार वही आज, अब जो तेरे संग है |

जो है सामने उसे याद रख, जो नहीं उसे तू भूल जा,
इस युग में इश्क की राह श्याम’ कैसी तंग है ||

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1 टिप्पणी:

  1. मानवीय ह्रदय में कितनी कोमल भावनायें हिलोरें लेती रहती हैं...... बहुत सुंदर भावों को अभिव्यक्ति प्रदान की है आपने इस रचना के माध्यम से. हार्दिक आभार

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