बेटियो से
मधु मिश्रित ध्वनि से पुछा
कहाँ से लाती हो,
ये मेआर
ये मेआर
नाशातो की सहर
हुनरमंद तह.जीब,और तांजीम
सदाकत,शिद्दतो की मेआर,
जी..
मैने हँस कर कहाँ
मेरी माँ ने संवारा..
उसी ने बनाया है
स्वयं को कस कर
हर पलक्षिण में
इक नई कलेवर के लिए
शनैः शनैः पोशाक बदल कर
औरो को नहीं
बस..
इल्म इस बात की
कमर्जफ हम नहीं
हमी से जमाना है...
© पम्मी
© पम्मी
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 01 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंलिंंक में शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंWELCOME PAMMI JI ON THIS BLOG .VERY NICE BLOG POST .THANKS TO SHARE WITH US .
जवाब देंहटाएंJi, dhanywad..
जवाब देंहटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंJi, dhanyawad..
जवाब देंहटाएंकल और ख़ुदा था तो, आज और खु़दा है।
जवाब देंहटाएंइस राहे-सियासत के, मेआर जुदा है।।
#पुष्कर 'गुप्तेश्वर'