(तेजाब हमले के पीड़िता की व्यथा)
कैसा तेरा प्यार था ?
कुंठित मन का वार था,
या बस तेरी जिद थी एक,
कैसा ये व्यवहार था ?
माना तेरा प्रेम निवेदन,
भाया नहीं जरा भी मुझको,
पर तू तो मुझे प्यार था करता,
समझा नहीं जरा भी मुझको ।
प्यार के बदले प्यार की जिद थी,
क्या ये कोई व्यापार था,
भड़क उठे यूँ आग की तरह,
कैसा तेरा प्यार था ?
मेरे निर्णय को जो समझते,
थोड़ा सा सम्मान तो करते,
मान मनोव्वल दम तक करते,
ऐसे न अपमान तो करते ।
ठान ली मुझको सजा ही दोगे,
जब तू मेरा गुनहगार था,
सजा भी ऐसी खौफनाक क्या,
कैसा तेरा प्यार था ?
बदन की मेरी चाह थी तुम्हे,
उसे ही तूने जला दिया,
आग जो उस तेजाब में ही था,
तूने मुझपर लगा दिया ।
क्या गलती थी मेरी कह दो,
प्रेम नहीं स्वीकार था,
जीते जी मुझे मौत दी तूने,
कैसा तेरा प्यार था ?
मौत से बदतर जीवन मेरा,
बस एक क्षण में हो गया,
मेरी दुनिया, मेरे सपने,
सब कुछ जैसे खो गया ।
देख के शीशा डर जाती,
क्या यही मेरा संसार था,
ग्लानि नहीं तुझे थोड़ा भी,
कैसा तेरा प्यार था ?
अब हाँ कह दूँ तुझको तो,
क्या तुम अब अपनाओगे,
या जो रूप दिया है तूने,
खुद देख उसे घबराओगे?
मुझे दुनिया से अलग कर दिया
जो खुशियों का भंडार था,
ये कौन सी भेंट दी तूने,
कैसा तेरा प्यार था ?
दोष मेरा नहीं कहीं जरा था,
फिर भी उपेक्षित मैं ही हूँ,
तुम तो खुल्ले घुम रहे हो,
समाज तिरस्कृत मैं ही हूँ ।
ताने भी मिलते रहते हैं,
न्याय नहीं, जो अधिकार था,
अब भी करते दोषारोपण तुम,
कैसा तेरा प्यार था ?
क्या करुँ अब इस जीवन का,
कोई मुझको जवाब तो दे,
या फिर सब पहले सा होगा,
कोई इतना सा ख्वाब तो दे ।
जी रही हूँ एक एक पल,
जो नहीं नियति का आधार था,
करती हूँ धिक्कार तेरा मैं,
कैसा तेरा प्यार था ?
-प्रदीप कुमार साहनी
wah..samaj ke niyam or purush ki swechhachari ko dhikkarti rachna..
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