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मंगलवार, 26 जनवरी 2016

कैसा तेरा प्यार था

(तेजाब हमले के पीड़िता की व्यथा)

कैसा तेरा प्यार था ?
कुंठित मन का वार था,
या बस तेरी जिद थी एक,
कैसा ये व्यवहार था ?

माना तेरा प्रेम निवेदन,
भाया नहीं जरा भी मुझको,
पर तू तो मुझे प्यार था करता,
समझा नहीं जरा भी मुझको ।

प्यार के बदले प्यार की जिद थी,
क्या ये कोई व्यापार था,
भड़क उठे यूँ आग की तरह,
कैसा तेरा प्यार था ?

मेरे निर्णय को जो समझते,
थोड़ा सा सम्मान तो करते,
मान मनोव्वल दम तक करते,
ऐसे न अपमान तो करते ।

ठान ली मुझको सजा ही दोगे,
जब तू मेरा गुनहगार था,
सजा भी ऐसी खौफनाक क्या,
कैसा तेरा प्यार था ?

बदन की मेरी चाह थी तुम्हे,
उसे ही तूने जला दिया,
आग जो उस तेजाब में ही था,
तूने मुझपर लगा दिया ।

क्या गलती थी मेरी कह दो,
प्रेम नहीं स्वीकार था,
जीते जी मुझे मौत दी तूने,
कैसा तेरा प्यार था ?

मौत से बदतर जीवन मेरा,
बस एक क्षण में हो गया,
मेरी दुनिया, मेरे सपने,
सब कुछ जैसे खो गया ।

देख के शीशा डर जाती,
क्या यही मेरा संसार था,
ग्लानि नहीं तुझे थोड़ा भी,
कैसा तेरा प्यार था ?

अब हाँ कह दूँ तुझको तो,
क्या तुम अब अपनाओगे,
या जो रूप दिया है तूने,
खुद देख उसे घबराओगे?

मुझे दुनिया से अलग कर दिया
जो खुशियों का भंडार था,
ये कौन सी भेंट दी तूने,
कैसा तेरा प्यार था ?

दोष मेरा नहीं कहीं जरा था,
फिर भी उपेक्षित मैं ही हूँ,
तुम तो खुल्ले घुम रहे हो,
समाज तिरस्कृत मैं ही हूँ ।

ताने भी मिलते रहते हैं,
न्याय नहीं, जो अधिकार था,
अब भी करते दोषारोपण तुम,
कैसा तेरा प्यार था ?

क्या करुँ अब इस जीवन का,
कोई मुझको जवाब तो दे,
या फिर सब पहले सा होगा,
कोई इतना सा ख्वाब तो दे ।

जी रही हूँ एक एक पल,
जो नहीं नियति का आधार था,
करती हूँ धिक्कार तेरा मैं,
कैसा तेरा प्यार था ?

-प्रदीप कुमार साहनी

गुरुवार, 14 जनवरी 2016

मेरे गीत अमर तुम करदो.... मेरे ..श्रृंगार व प्रेम गीतों की शीघ्र प्रकाश्य कृति ......"तुम तुम और तुम". के गीत--डा श्याम गुप्त ...

मेरे गीत अमर तुम करदो.... मेरे ..श्रृंगार व प्रेम गीतों की शीघ्र प्रकाश्य कृति ......"तुम तुम और तुम". के गीत--डा श्याम गुप्त ...

                                
     

Drshyam Gupta's photo.



                नूतन वर्ष में .मेरे ..श्रृंगार व प्रेम गीतों की शीघ्र प्रकाश्य कृति ......"तुम तुम और तुम". के गीतों को यहाँ पोस्ट किया जा रहा है -----
                                           --प्रस्तुत है गीत - ५...

..Drshyam Gupta's photo.


मेरे गीत अमर तुम करदो....

मेरे गीतों की तुम यदि बनो भूमिका,
काव्य मेरा अमर जग में होजायगा |
मेरे छंदों के भावों में बस कर रहो,
गीत मेरा अमर-प्रीति बन जायगा |



गीत गाकर जो माथे पे बिंदिया धरो ,
अक्षर-अक्षर कनक वर्ण होजायगा |
तुम रचो ओठ, गीतों को गाते हुए,
गीत जन-जन के तन-मन में बस जायगा |



रूप दर्पण में जब तुम संवारा करो,
गीत मेरे ही तुम गुनगुनाया करो |
गुनगुनाते हुए मांग अपनी भरो,
गीत का रंग सिंदूरी हो जायगा |



शब्दों -शब्दों में तुम ही समाया करो,
मैं रचूँ गीत, तुम गीत गाया करो |
गीत तुम अपने स्वर में सजाने लगो ,
गीत जीवन का संगीत बन जायगा ||



                           

शनिवार, 2 जनवरी 2016

नयी भोर ...२०१६ प्रथम भोर पर एक उद्बोधन गीत...डा श्याम गुप्त

२०१६ प्रथम भोर पर एक उद्बोधन गीत प्रस्तुत है -----

नयी भोर ...


नयी भोर की इक नयी हो कहानी
जगे फिर मेरे देश की नव जवानी |
ये उत्तर ये दक्षिण पूरव औ पश्चिम,
मिलकर लिखें इक नई ही कहानी | 


नयी भोर लाये नयी ज़िन्दगानी ||


युवा-शक्ति का बल, अनुभव का संबल,
मिलकर चलें इक नवल राह पर हम |
नए जोश के स्वर, नए सुर-तराने,
रचें गीत-सरगम, नई इक कहानी |

नयी भोर की नव-कथा इक सुहानी ||


पहले ये जानें, सोचें और मानें,
कि इस राष्ट्र की है जो संस्कृति सनातन |
वही विश्ववारा संस्कृति मनुज की,
सकल विश्व में फ़ैली जिसकी निशानी |...

सनातन कथा की लिखें नव कहानी ||


पुरा ज्ञान, विज्ञान का हो समन्वय,
हो इतिहास एवं पुराणों का अन्वय |
नए ज्ञान कौशल पर सोचें विचारें ,
न यूंही नकारें ऋषियों की वाणी |

नवल-स्वर नए सुर नयी प्रीति-वाणी||


सहजता सरलता सहिष्णुता संग,
प्रीति की रीति जग देखले इक सुहानी|
न मज़हब की दीवार का अर्थ कोइ,
पलें धर्म और नीति-राहें सुजानी |...

राहें सुजानी नई इक कहानी ||


विचारों के जग पर न अंकुश कहीं है,
सदा राष्ट्र का यह गौरव रही है |
जग देखकर नीति-नय का समां यह,
लगे लिखने खुद की नयी इक कहानी|

नया भोर जग की नई ही कहानी ||


बनें नर स्वयं नारी गरिमा के रक्षक,
न शोषण कुपोषण अनाचार कोई |
औ नारी बने राष्ट्र-संस्कृति की गरिमा,
दोनों लिखें मिलके जीवन कहानी |...

बने नीति की एक सुन्दर कहानी |
बने राष्ट्र गरिमा की दृड़ता निशानी ||