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शुक्रवार, 22 मई 2015

''माँ'


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कोई बला जब हम पर आई ,
माँ को खुद पर लेते देखा !
हुआ हादसा साथ हमारे ,
माँ को बहुत तड़पते देखा !
......................................
हो तकलीफ हमें न कोई ,
साँझ-सवेरे खटते देखा !
कभी नहीं संकट के आगे ,
हमनें माँ को झुकते देखा !
.......................................
ऊपर-नीचे अंदर-बाहर ,
माँ को फिरकी बनते देखा !
नहीं आखिरी दिन तक हमने ,
माँ को थककर सोते देखा !
....................................
जब जब ठोकर खाई हमने ,
माँ को हमें उठाते देखा !
माँ से बढ़कर इस सृष्टि में ,
हमनें नहीं किसी को देखा !
....................................
साँस थामकर हमने माँ को ,
दूर बहुत है जाते देखा !
पूजे जाते भगवानों में ,
माँ का रूप समाते देखा !
शिखा कौशिक 'नूतन'

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को शनिवार, २३ मई, २०१५ की बुलेटिन - "दी रिटर्न ऑफ़ ब्लॉग बुलेटिन" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद ।

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  2. बहुत सुन्दर मनोभावों की खूबसूरत शब्दों से सजी कृति।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-05-2015) को "माँगकर सम्मान पाने का चलन देखा यहाँ" {चर्चा - 1985} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  4. हो तकलीफ हमें न कोई ,
    साँझ-सवेरे खटते देखा !
    कभी नहीं संकट के आगे ,
    हमनें माँ को झुकते देखा !

    क्या खूब कहा है........वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह

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  5. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें. हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार भावसंयोजन .आपको बधाई
    आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. maa shabd me poora sansaar samaya hai .. bahut sunder rachana

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