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शनिवार, 28 मार्च 2015

ख़राब लड़की



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 ख़राब लड़की -story
इक्कीस वर्षीय सांवली -सलोनी रेखा को उसी लड़के ने कानपुर बुलाकर क़त्ल कर दिया जिसने उससे शादी का वादा किया था . लड़के के प्रेम-जाल में फँसी रेखा न केवल क़त्ल की गयी बल्कि अपने शहर में बदनाम भी हो गयी कि वो एक ख़राब लड़की थी .कातिल लड़के के प्रति लोगों की बड़ी सहानुभूति थी कि 'रेखा ने पहले मर्यादाओं का उल्लंघन कर विवाह से पूर्व उस बेचारे से शारीरिक सम्बन्ध बनाये और अब उस पर शादी का दबाव डाल रही थी .इसी कारण वो 'बेचारा' मेरठ छोड़कर 'कानपुर' में जाकर कोचिंग इंस्टीट्यूट चलाने लगा था .क़त्ल न करता तो क्या करता ?ऐसी ख़राब लड़की से शादी के लिए उसके घर वाले तैयार नहीं थे .'' घिन्न आती है मुझे ऐसी सामाजिक सोच से जो अपराधी से सहानुभूति केवल इसलिए रखती है क्योंकि वो स्त्री-पुरुष संबंधों में होने वाले किसी भी अपराध के लिए पूर्ण रूप से स्त्री को ही दोषी ठहरा देती है .
रेखा ,मुझसे व् मेरी सहपाठिनी राधा से तीन क्लास जूनियर थी .अब जब स्नातकोत्तर किये हुए हमें कई वर्ष बीत चुके हैं तब रेखा के क़त्ल के बारे में इंटर कॉलिज में अध्यापन कर रही राधा ने ही मुझे ,एक दिन मेरे घर की बैठक में पड़े  दीवान पर बैठे-बैठे ,बताया था कि -'' रेखा की इस दुर्गति का असल जिम्मेदार उसका नकारा पिता ही है .बचपन से ही रेखा के पिता ने रेखा ,रेखा की माता जी व् उसके दो छोटे भाइयों के पालन-पोषण से अपने हाथ झाड़ लिए थे .रेखा की माता जी ने सिलाई-कढ़ाई का काम कर बच्चों के पालन-पोषण का भार  खुद पर ले लिया .रेखा का पिता ऊपर से उन पर दबाव बनाता कि वे मेरठ में लिया गया मकान बेचकर गांव जाकर उसके बड़े भाई-भाभी की सेवा करें .जब रेखा की माता जी ने बच्चों की पढ़ाई का वास्ता देकर इंकार किया तो उसने उन्हें मारा-पीटा जिससे क्षुब्ध होकर रेखा के बारह वर्षीय भाई ने एक बार अपने इस नकारा पिता पर चाकू से प्रहार भी कर दिया था .'' राधा ने मेरी हथेली अपनी हथेली से कसते हुए प्रश्न किया -'' रेखा ऐसे हालातों में पली-बढ़ी थी . तू ही बता नंदी क्या ख़राब लड़की किशोरावस्था से ही घर की जिम्मेदारी उठाने का साहस कर सकती है ?'' मैंने राधा के प्रश्न पर इस समाज की सोच पर बिफरते हुए कहा -'' रेखा को ख़राब लड़की कहना हर उस लड़की का अपमान है जो मेहनत  कर के अपने परिवार के पालन-पोषण में सहयोग करती है .क्या खराबी थी उसमे ? जिसे जीवन साथी चुना उसे विवाह पूर्व अपना सब कुछ समर्पित करने की भूल कर बैठी ? इसमें वो कातिल लड़का भी तो बराबर का जिम्मेदार है .जब उसे विवाह नहीं करना था तो उसने रेखा से शारीरिक-सम्बन्ध क्यों बनाये ? और जब इस सब में उसे कोई आपत्ति नहीं थी तो विवाह करने में क्यों घर वालो की मर्जी का बहाना बनाने लगा ? रेखा की भूल यही थी ना कि उसने किसी लड़के से प्रेम किया , उस पर विश्वास कर अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया और उस पर विवाह का दबाव बनाया ...ये न करती तो क्या करती !!!'' रेखा ने पिता के रूप में ऐसा नकारा पुरुष पाया जो केवल वासना-पूर्ति के लिए किसी स्त्री के गर्भ में अपना बीज छोड़ देता है और जब वो बीज एक पौधा बनकर गर्भ से बाहर आता है औलाद के रूप में तब वो नकारा पुरुष उसकी जड़ें सींचने से इंकार कर देता है . राधा मैं तो कहती हूँ ऐसे इंसान को तो चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए !'' राधा मेरी इस भावुक टिप्पणी पर गंभीर होते हुए बोली -''नंदी क्या कहूँ ...ऐसा लगता है जैसे हम लड़कियां पुरुष प्रधान समाज की फौलादी जंजीरों से जकड़ी हुई हैं .पिछले वर्ष जब मैं रेखा से मिली थी तब उसने बताया था कि सारे रिश्तेदार उसके पिता पर उसके विवाह के लिए दबाव डाल रहे हैं पर वो ये कहकर टाल देता है कि रेखा अभी विवाह करना ही नहीं चाहती .उस ज़लील को ये दिख गया था कि रेखा ही कमा कर लाती है .यदि उसका विवाह कर दिया तो कैसे काम चलेगा ? फिर वो क्यों रेखा के विवाह के ..उसके भविष्य के बारे में सोचता ! रेखा ने ऐसी परिस्थितयों में जब स्वयं वर ढूढ़ लिया तब यही नकारा पिता पूरे समाज में उसे बदनाम करने में जुट गया .''रेखा ख़राब लड़की है '' ये ठप्पा सबसे पहले उस नीच -मक्कार पिता ने ही रेखा पर लगाया .जिस पिता का कर्तव्य था कि यदि बेटी को बहकते देखे तो उसे समझा-बुझाकर सही मार्ग पर लाये ..वही उसका बैरी बन बैठा . रेखा का दुर्भाग्य तो देखो नंदी ....पिता के रूप में भी पुरुष से धोखा खाया और जीवन-साथी के रूप में भी जिस पुरुष को चुना उससे भी धोखा ही खाया .ऐसा लगता है नंदी कि पुरुष का स्वभाव धोखा देना ही है .'' मैं राधा के कंधे से सरकते हुए दुपट्टे को ठीक करते हुए बोली थी -'' ठीक कहती हो राधा ! अच्छी लड़की ,ख़राब लड़की -कितनी श्रेणियों में बाँट दी जाती है लड़की . उसकी विवशता ,अल्हड़पन का फायदा उठाने वाला पुरुष ही उसे पतिता ,नीच ,छिनाल की संज्ञा देकर गर्व की अनुभूति करता है . कई बार तो आश्चर्य होता है कि इतने युगों से समाज की इतनी स्त्री-विरोधी सोच के बीच भी स्त्री आज तक ज़िंदा कैसे है ? '' राधा दीवार पर लगी घडी में समय देखते हुए दीवार पर से खड़े होते हुए बोली - '' नंदी इस पर तो स्त्रियों से ज्यादा पुरुषों को आश्चर्य होना चाहिए कि आखिर गर्भ में निपटाया , पैदा हुई कन्या को ज़िंदा जमीन में गड़वाया , दहेज़ की आग में जलाया , तंदूर में भुनवाया , बदनामी की फाँसी पर चढ़ाया , बलात्कार का अस्त्र चलाया ...फिर भी स्त्री ज़िंदा कैसे है ? खैर ...चलने से पहले तुम्हें एक बात और बता दूँ ...रेखा के क़त्ल से भी उसका पिता लाभान्वित ही हुआ है .क़त्ल होकर भी वो ख़राब लड़की अपने पिता को लखपति बना गयी .रेखा के ज़लील पिता ने रेखा के कातिल को फाँसी पर न चढ़वाकर उससे सौदा कर लिया है बीस लाख में . रेखा का पिता कातिल लड़के के खिलाफ किया गया अपना केस वापस ले रहा है . नंदी तुम नहीं जानती रेखा अक्सर कहती थी कि वो घर में पालतू जानवर नहीं पालती  क्योंकि उनके मरने पर बहुत दुःख होता है पर रेखा के पिता के लिए पालतू ख़राब लड़की का मर जाना भी बहुत सुखदायी रहा ना नंदी !'' ये कहते हुए राधा ने अपने घर जाने के लिए कदम बढ़ा लिए और भारी मन से मैं राधा को जाते हुए देखती हुई सोचने लगी -'' हे ईश्वर जिस घर में बेटी की ऐसी दुर्गति हो उस घर में बिटिया कभी न हो ........'' मन से तभी एक और आवाज़ आई -'' तब तो एक घर क्या इस धरती पर ही कोई बिटिया न हो !!!''



शिखा कौशिक ''नूतन'

मंगलवार, 24 मार्च 2015

नहीं कोई भी माँ से बढ़कर दुनिया में ;


[google से sabhar ]
कभी आंसू नहीं मेरी आँख में आने देती ;
मुझे माँ में खुदा की खुदाई दिखती है .

लगी जो चोट मुझे आह उसकी निकली ;
मेरे इस जिस्म में रूह माँ की ही बसती है .

देखकर खौफ जरा सा भी  मेरी आँखों में ;
मेरी माँ मुझसे दो कदम आगे चलती है .

मेरे चेहरे से मेरे दिल का हाल पढ़ लेती ;
मुझे माँ कुदरत का  एक करिश्मा लगती है .

नहीं कोई भी  माँ से बढ़कर दुनिया में ;
इसीलिए तो माँ दिल पर  राज़ करती  है .

                        शिखा कौशिक  'नूतन '





रविवार, 22 मार्च 2015

महामानवों के निर्माण व सामाजिक श्रेष्ठता संवर्धन में नारी का योगदान .. डा श्याम गुप्त



महामानवों के निर्माण व सामाजिक श्रेष्ठता संवर्धन में नारी का योगदान 


              
यदि मानव प्रकृति की संरचनात्मक कृति की सबसे उत्कृष्ट, समृद्ध व आधुनिकतम रूप है तो नारी प्रकृति की सृजनात्मक शक्ति का सर्वश्रेष्ठ व उच्चतम रूप है। इस संसार रूपी ईश्वरीय उद्यान को सुरम्य , सुन्दर व श्रेष्ठ बनाने में इसी नारी शक्ति का विभिन्न रूपों में योगदान रहा है। समय समय पर तत्कालीन राष्ट्रीय, सामाजिक व व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप एवं विकृतियों के उन्मूलन हेतु, महामानवों के जन्म व निर्माण की प्रक्रिया भी इसी नारी शक्ति की देन है।
माँ -दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती के रूप में आदिशक्ति, माँ के दूध के रूप में अपनी  भावनात्मक  संकल्प शक्तिपत्नी के रूप में पुरुष की सहयोगिनी शक्ति एवं भगिनी, पुत्री, मित्र, सखी के रूप में स्नेहसंवेदनाओं एवं पवित्र भावनाओं को सींचने में युक्त नारी शक्ति, सत्य में ही पुरुष के निर्माण , विकास की एवं समाज के सृजन, अभिवर्धन व श्रेष्ठ व्यक्तित्व निर्माण की धुरी रही है। भारत में पुरा काल से ही नारी समाजका शिखर रूप व राष्ट्र की धुरी रही है।शास्त्रों में कहागया है--"दश पुत्र समां कन्यायस्या शीलवतीसुता तथा ---

सम्राज्ञी श्वसुरे भव , सम्राज्ञी श्वसुरामं भव। 
सम्राज्ञी ननन्दारिं ,सम्राज्ञी अधिदेव्रषु ॥ "

             सृष्टि की सारी सुव्यवस्था व सुन्दरता नारी शक्ति की ही अभिव्यक्ति है। विश्व भर की संस्कृति व सभ्यता का वर्त्तमान रूप नारी के अथक त्याग व बलिदान की ही कहानी है।
यह समय का अभिशाप ही है कि आज , मध्य युग की सामयिक परिस्थितियों के प्रभाव व तनाव के कारण नारी अन्तःकरण की ऊर्जा व कोमलता को व्यक्तियों व बस्तुओं में आबद्ध करके उसे उसके सिद्धांतों, आदर्शों से विमुख करदिया गया | जब उसे चूल्हा व चौका तक सीमाबद्ध करदिया गया तो उसके प्रखरता नष्ट होने लगी | पारिवारिक शालीनता --मोह, अति संग्रह व व्यक्तिगत उपभोग में परिवर्तित होगई | पति नामक पुरुष द्वारा मनमानी ,उच्छृंखलता , अनीति एवं नारी उत्प्रीणन का मार्ग प्रशस्त हुआ। बच्चों में भी वही भाव घर करने लगे। प्रतिक्रया स्वरुप नए युग में नारी में भी आज़ादी की चाह, ,उच्छृंखलता,पुरुष उत्प्रीणन आदि भाव घर कर गए। आज नारी- पुरुष टकराव इसी प्रतिक्रया का परिणाम है। और यहीं से सामाजिक जीवन में भ्रष्टाचार का प्रारम्भ होता है; जो समाज व आगे की पीढी के लिए अभिशाप ही सिद्ध होरहा है व होंगे।
                    
आज आवश्यकता है कि नारी व पुरुष दोनों ही विचारों की संकीर्णता से बाहर निकलें। पुरुष नारी को सम्पूर्ण सम्मान, वैचारिक व सामाजिक समानता प्रदान करे | आदि -मातृशक्ति को अपनी भूमिका निभाने योग्य स्तर पर पहुंचाना हम सबका पुनीत कर्तव्य है। नारी ने पुरुष के सामने आत्मसमर्पण का जो आदर्श रखा है इसका यह अर्थ नहीं कि पुरुष उसका मूल्य ही न समझे। स्वामीविवेकानंद ने कहा था--"भारतीयों ! भूलना नहीं, तुम्हारी संस्कृति का आदर्श सुशिक्षित नारी है।     तुम्हारा समाज विराट महामाया की छाया मात्र है। "
                          
इस कार्य में पहल नारी को ही करनी होगी। नारी अपने उत्प्रीणन की कथा अपनी सखियों,सम्बन्धियों व पुरुष-मित्रों से कह कर बोझ हलका कर लेती हैं ; परन्तु पुरुष अहं व संकोच के कारण नारी द्वारा अपने उत्प्रीणन की बात वे मित्रों से भी नहीं कह पाते व घुटते रहते हैं , जो नारी के प्रति असम्मान के रूप में व्यक्त होती है।
                          
सुसंस्कृत पत्नी अपने पति को ईमानदार बनाने में पहल कर सकती है। सम्पन्नता कहीं अनैतिक कर्म से तो नहीं आरही, इस पर ध्यान रखना चाहिए। घर का संचालन मितव्ययिता पूर्वक हो कि सिर्फ ईमानदारी की कमाई ही पर्याप्त हो। इस प्रकार वह योग्य, ईमानदार , मितव्ययी व्यक्तियों व संतान का निर्माण करके, राष्ट्र व समाज की श्रेष्ठता संवर्धन में अपना योगदान करके, आदि काल से महामानवों के निर्माण व सामाजिक आदर्श की प्रतिष्ठा में अपने योगदान को पुनः स्थापित कर अपनी खोई हुई गरिमा को पुनः बहाल कर सकती है।
पढी-लिखी नारी अपने वर्ग को सुसंस्कृत तथा सुशिक्षित बनाने व ऊंचा उठाने में संकोच व भय को त्यागकर आगे आये तो पुरुष भी स्वयं भी सहयोग की भावना से आगे आयेंगे । तब कहीं भी द्वंद्व की स्थिति नहीं रहेगी। यही युग की पुकार है।

शनिवार, 21 मार्च 2015

माँ का आवाहन..डा श्याम गुप्त ..



माँ का आवाहन

परम-शक्ति माँ से बढकर तो, तीन लोक में कुछ भी नहीं,
अतुलनीय माँ महिमा तेरी, वर्णन की मेरी शक्ति नहीं 

परम-ब्रह्म के साथ युक्त हो, सृष्टि की रचना करती हो, 
रक्षक, पालक तुम हो जग की, जग को धारण करती हो।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश माँ तेरी इच्छा से तन धारण करते,
महा-शक्ति तेरी स्तुति की, जग में क्षमता-शक्ति नहीं।
                                 ----परम शक्ति मां……..
तुच्छ बुद्धि तुझ पराशक्ति के ओर-छोर को क्या जाने,
ममतामयी रूप तेरा ही,  माता वह तो  पहचाने ।

तेरे नव-रूपों के भावों पर,  अगाध श्रद्धा से भर ,
करें अनुसरण और कीर्तन, इससे बढकर भक्ति नहीं ।
                                 -----परम शक्ति मां……
माँ आगमन करो इस घर में, हम पूजन, गुण-गान करें,
धूप, दीप, नैवैध्य समर्पण कर, तेरा  आह्वान  करें ।

इन नवरात्रों में माँ आकर, हम सबका कल्याण करो,
धरें शीश तेरे चरणों पर, इससे बढकर मुक्ति नहीं ॥
                                ----परम शक्ति मां……