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रविवार, 27 जुलाई 2014

बना न ले कहीं अपना वजूद औरत


ये औरत ही है !


पाल कर कोख में जो जन्म देकर बनती  है जननी 
औलाद की खातिर मौत से भी खेल जाती है .

बना न ले कहीं अपना वजूद औरत 
कायदों की कस दी  नकेल जाती है .

मजबूत दरख्त बनने नहीं देते  
इसीलिए कोमल सी एक बेल बन रह जाती है .

हक़ की  आवाज जब भी  बुलंद करती है 
नरक की आग में धकेल दी जाती है 


फिर भी सितम  सहकर  वो   मुस्कुराती  है 
ये औरत ही है जो हर  ज़लालत  झेल  जाती  है .

                                          शिखा कौशिक 
                           [vikhyaat  ]







4 टिप्‍पणियां:

  1. कोमल भावो की और अभिवयक्ति .....

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  2. कोमल भावो की और अभिवयक्ति .....

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  3. सहना उसे आता हैं वो महान होता हैं एक औरत दर्द सह कर एक बच्चे को जन्म देती हैं और माँ कहलाती हैं। सहनशिलता कभी कायरता की पहचान नहीं रही।

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