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सोमवार, 14 जुलाई 2014

कज़री.....बदरिया घिरि घिरि आये ...डा श्याम गुप्त....



 आजकल धूम-धूम के युग में हम कज़री एवं आल्हा के बोल भूलते जा रहे हैं ..सावन का मास है ...प्रस्तुत है एक कज़री ....

 बदरिया घिरि घिरि आये

आई सावन की बहार
बदरिया घिर घिर आये  |
गूंजें कज़री और मल्हार
बदरिया घिर घिर आये  |

रिमझिम रिमझिम पडत फुहारें
मुरिला पपिहा पीउ पुकारें |
चतुर टिटहरी निसि रस घोले
चकवा चकवी चाँद निहारें |

आये सजना नाहिं हमार
बदरिया घिर घिर आये  ||

घनन घनन घन जिय डरपाए
झनन झनन झन जल बरसाए |
प्यासी बिरहन बिरहा गाये
पावस तन मन को तरसाए |

दहके पावक बनी बयार
बदरिया घिर घिर आये |

पिया गए परदेश न आये
बैरी चातक टेर लगाए |
कागा बैठ मुंडेर न बोले
श्यामा शुभ सन्देश न लाये |

री अलि! कैसे पायल झनके
घुँघरू छनके, कंगना खनके |
सखि! कैसे करूँ श्रृंगार
बदरिया घिर घिर आये ||

आई सावन की बहार
बदरिया घिर घिर आये ||




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