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रविवार, 2 मार्च 2014

एक विवाह ऐसा भी -कहानी



पड़ोस की नीरू दीदी का विवाह -उत्सव आज होने जा रहा था . पूर्व-निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार लड़के वालों के शहर जाकर ही विवाह का आयोजन होना था क्योंकि लड़के वालों की यही इच्छा थी .पुरानी सोच की महिलाएं व् पुरुष इस तरह अपना घर सूना कर लड़केवालों के यहाँ जाकर विवाह करने की पद्धति से असहमत थे .उनका मत था कि ''देहरी तो कुवारी ही रह जायेगी और लड़की की विदाई उसके घर से ही होनी चाहिए '' पर कुछ आधुनिक सोच के प्रगतिशील प्रौढ़ उनकी सोच को दकियानूसी कहकर इन सब बातों को ढकोसला करार दे रहे थे .उनका तर्क था -'' अजी छोड़िये ..काम निपटाना है ..यहाँ कर दो वहाँ कर दो ..क्या फर्क पड़ता है !'' एक दुकानदार साहब ने लड़केवालों के यहाँ जाकर ही विवाह करने के पक्ष में जबर्दस्त तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा -'' भाई अब तो इसी में फायदा है ..दुकान का हर्ज़ा भी नहीं और बस नोट पकड़ाओ ...लड़के वाले अपनी पसंद का इतजाम कर लेते हैं ..यही अच्छा वरना लड़की वाले कर-कर के मर ले तब भी मीन-मेख निकालने से लड़के वाले बाज नहीं आते .''
नीरू दीदी को लेकर एक कार ;जिसमे उनके साथ उनकी दादी-दादा जी और मम्मी व छोटा भाई भी थे , रवाना होते ही भिन्न भिन्न मत वाले इन तमाम घरातियों से भरकर दोपहर के ढाई बजे जब नीरू दीदी की बारात की बस चली तब किसी धार्मिक शख्स ने जोर से जयकारा लगवाया -'' बोलो जय माता दी !'' सबने एक स्वर में जयकारा लगाया तो एक बार को लगा जैसे हम विवाह करने नहीं बल्कि ''माँ शाकुंभरीदेवी '' के दर्शन को जा रहे हैं . बस ने रफ़्तार पकड़ी .पिछली सीट से किसी ने मेरे कंधें पर हाथ रखते हुए पूछा '' बीनू सुप्रिया नहीं जा रही ?'' ये नीरू दीदी की चाची जी थी .मैंने पीछे मुड़कर कहा -'' नहीं आंटी उनकी तबियत ठीक नहीं है ..इसी कारण माँ भी नहीं जा रही ..बस मैं और पिता जी ही जा रहे हैं .'' चाची जी थोडा उदास हुई क्योंकि उनकी मेरी सुप्रिया दीदी से अच्छी छनती है .छनेगी क्यों नहीं ..मेकअप -एक्सपर्ट जो हैं सुप्रिया दीदी .सबसे अच्छी तरह साड़ी पहनना और पहनाना भी जानती हैं वे .पूरे मौहल्ले में विवाह के सीजन में उनकी डिमांड उतनी ही रहती है जैसी दिल्ली में प्याज की .नीरू दीदी की मेहँदी के दिन से ही सुप्रिया दीदी की तबियत गड़बड़ा गयी थी और आज ..आज तो उनके बस का बिस्तर तक से उठना न था .
इधर बस में बैठे पुरुषों की चुहलबाजी जोरों पर थी .फलाना की बीवी तो अब बूढी हो गयी और वो ..वो तो बूढी घोड़ी लाल लगाम है है .बस में बैठ महिलाएं पुरुषों के कटाक्ष सुन-सुनकर एक-दुसरे से नज़रे मिलकर मंद-मंद मुस्कुरा थी . तभी पड़ोस के छोटू चाचा से किसी ने पूछा -भाई तेरा सन्नी कहाँ है ?'' छोटू चाचा उखड़े स्वर में बोले -'' साला अलग कार से आ रहा है अपने दोस्तों के साथ ..शराबी पार्टी है सालों की !'' तभी नीरू दीदी के पिता जी का मोबाइल बजा .बाएं हाथ से उन्होंने मुश्किल से मोबाइल जेब से निकाला क्योंकि दायें हाथ में उनके एक छोटा सा बैग था जो ''टीके '' के रूप में प्राप्त हो रहे रुपयों के रखने के काम का था .ये कॉल नीरू दीदी की मम्मी का ही था .वे उन्हें कुछ निर्देश दे रही थी .बस में आगे मिठाई के डिब्बे भरे पड़े थे जो विवाह के पश्चात् बारातियों व घरातियों को '' भाजी'' के रूप में हाथ के हाथ पकड़ा दिए जाने थे .
बस में सबसे पीछे बैठी नीरू दीदी की बुआ जी धड़ाके के साथ एलान कर रही थी -'' म्हारी नीरू तो खुद ब्याहने जा रही है दुल्हे को ...घोड़ी न सही बस ही सही !'' ये कहकर उन्होंने जो ठहाका लगाया उससे सारी बस ऐसे झनझना गयी जैसे हाई वॉल्यूम में डी.जे . बजा दिया गया हो .
चार घंटे का सफ़र पूरा कर जब विवाह के लिए निर्धारित ''बारात घर '' पर हमारी बस पहुंची तो लड़के वाले हमारा स्वागत ऐसे करने लगे जैसे वास्तव में हम ही बाराती हो .तीन मंजिला इस बारात घर की हर मंजिल पर विवाह आयोजित हो रहे थे .हमें ग्राउंड फलोर आवंटित था .एक विवाह जो दिन का था अब पूर्णता की ओर था .नीरू दीदी की कार पहले ही पहुँच चुकी थी और वे एक कमरे में तैयार हो रही थी .बारातियों से पहले ही घराती नाश्ते पर टूट पड़े .सुषमा आंटी ने कोहनी मार कर मेरे कान में कहा -'' पहले नीच जात में होता था ये ..ऊँची जाति में तो बाराती ही पहले खाते थे ..घराती तो लड़की की शादी में केवल काम करते थे ..खाते नहीं थे...अब सब ढंग बिगड़ गए बीनू !'' सुषमा आंटी ने ये कहकर अजीब सा मुंह बनाया और जयमाल के स्टेज के सामने पड़ी कुर्सियों में से एक कुर्सी पर जाकर धम्म से बैठ गयी .मैंने पिता जी के साथ नाश्ते में कुछ लिया और सुषमा आंटी के पास ही जाकर मैं भी बैठ गयी .
हम घरातियों के साथ गए कुछ नए नए जवान लड़कों की रुचि नाश्ते में न होकर बारातियों की ओर से आई लड़कियों में ज्यादा थी .उनके लिए वे ही आइसक्रीम थी और वे ही पेप्सी-कोला थी .बिना किसी बैड-बाजे के जब दूल्हे -राजा ने बारातियों के साथ वेंकेट हॉल में प्रवेश किया तब वहीं सेवल के रस्म अदायगी कर दी गयी .कुछ बारातियों ने मोबाइल पर गाने बजाकर डांस कर लिया क्योंकि वेंकेट हॉल में संगीत के नाम पर डी.जे.जैसे विध्वंसक इंस्ट्रूमेंट्स पर रोक थी .दूल्हे राजा के जयमाल के लिए स्टेज पर आते ही नीरू दीदी को भी उनकी चाची जी व् अन्य कई युवतियां स्टेज पर ले आयी . नीरू दीदी को ब्यूटीशियन ने ऐसा तैयार किया था कि वे पहचान में भी नहीं आ रही थी .सच कहूं तो रामलीला में नाचने वाले नचनिये की तरह उनका चेहरा पोत डाला था ब्यूटीशियन ने .मेरे बराबर में आकर बैठी हमारी किरायेदार सुभद्रा भाभी मुंह बिचकाते हुए बोली -'' लो कर लो बात ...पांच हज़ार लिए हैं ब्यूटीशियन ने और ये नास पीटा है ..इससे अच्छा तो नीरू खुद तैयार हो लेती .गोद-भराई पर सुप्रिया के साथ मिलकर खुद तैयार हुई थी ..क्या रूप उतरा था नीरू पर ...अब देखो कठपुतली थी बनी बैठी है .'' मैंने भी सहमति में सिर हिला दिया .जयमाल शुरू हुआ ही था कि दूल्हे के कुछ शराबी दोस्त स्टेज पर चढ़ आये और उनमे से एक ने नीरू दीदी को गोद में उठा लिया .कुछ जिम्मेदार लोगो ने आकर स्थिति को सम्भाला और नीरू दीदी बेहोश होते होते बच गयी .इस घटना के बाद जयमाल जल्दी से निपटा दी गयी पर पैसा दिखाने का मौका नहीं छोड़ा गया .लड़के वालों के पास फूलों के हार थे पर नीरू दीदी के चाचा जी महंगे हार लेकर आये जो काफी भारी थे .नीरू दीदी की गर्दन उस हार के बोझ से टेढ़ी ही हुई रही .
प्रीती-भोज शुरू हो चूका था तभी दूल्हे के फूफा जी का शराब पीकर हंगामा करना आरम्भ हो गया था . वे शराब की हर घूँट के साथ अपने सालों को गाली दे रहे थे .दूल्हे के पिताजी हर पांच भाई व् एक बहन थे इसीलिए ये एकलौते दूल्हे के फूफा जी अपनी अहमियत का अहसास करा रहे थे .आपसी बातचीत से पता चला कि फूफा जी घर के हर विवाह में इसी तरह अपने सालों का बैंड बजाते रहते हैं . दूल्हे के एक चाचा जी इस हंगामे के कारण अपना दिल पकड़ कर बैठ गए जिन्हें कुछ नवयुवक डॉक्टर के यहाँ ले गए . इधर दूल्हे की माता जी को भी इस हंगामे के कारण चक्कर आ गए .सुषमा आंटी ने इशारा कर मुझे अपने पास बुलाया और बोली - लो जी दूल्हे की माँ भी घर पर ताला ठोक कर यहाँ चली आई ..घर पर खोड़ की रस्म कौन करेगा ...इनका रहना तो वही जरूरी था !'' इन सब तमाशों के कारण मेरा एक पवित्र-संस्कार का साक्षी होने का आनंद छू-मंतर हो चुका था .हर ओर कपड़ों-जेवरों को दिखाने की होड़ मची हुई थी .
फेरे शुरू हुए तो ज्यादातर बाराती अपने गंतव्यों के लिए रवाना हो लिए . अब कुछ ही बाराती व् घराती जाग रहे थे दूल्हे-दुल्हन के घरवालों के अलावा . पंडित जी हर फेरे का भावार्थ बताते जा रहे थे पर इसमें किसी की कोई रुचि नहीं थी .एक आश्चर्य अब भी घट ही गया .दूल्हे के जो चाचा जी दिल के दर्द के कारण डॉक्टर के यहाँ गए थे अब वे पूर्ण स्वस्थ होकर यही मंडप में बैठे थे .
अन्य रस्में पूरी होते होते विदाई की बेला भी आ पहुंची . विदाई गीत गाते हुए नीरू दीदी के माता-पिता जी की आँखें भर आयी थी पर मेरे मन में कोई भाव ऐसा पैदा नहीं हो पाया जो घर से विदा होती बिटियाँ को देखकर होना चाहिए था .होता भी कैसे ये वेंकेट हॉल था ..हमारी गली नहीं जहाँ हम नीरू दीदी के साथ खेलते थे .उनकी साइकिल पर घुमते थे और खूब धूम मचाते थे .
नीरू दीदी के विदा होते ही वेंकेट हॉल के कर्मचारी वहाँ की सफाई में जुट गए .टैंट वाले अपना सामान समेटने लगे .मंडप में झिलमिला रहे दीपों को उन्होंने निर्ममता से एक ओर खिसका दिया .उनके लिए इसमें कोई शुभ-अशुभ नहीं था .
सूरज की पहली किरण के साथ ही हम सब बस से वापस अपने घर को लौट चले .ऐसा लग रहा था जैसे हम विवाह-संस्कार का नहीं बल्कि एक तमाशे का हिस्सा होकर लौट रहे हैं .तभी किसी ने धीरे से कहा -अपना घर सूना कर लड़के वालों के यहाँ आकर विवाह करना तो ऐसा लगता है जैसे हम खुद अपनी बिटियाँ को धक्का देने आये थे !!''

शिखा कौशिक 'नूतन


6 टिप्‍पणियां:

  1. ab to ye hi shadi ka tareeka sab apanane lage hain aur ladaki vale isa ke liye sahmat isa liye ho jate hain kyonki aaj bhi ladake valon kee marji ka samman kiya jata hai. aisi shadi koi anokhi na hui kyonki aise paridrashya aksar dekhane ko mil jate hain.

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  2. अब तो इसी तरह के विवाह अक्सर देखने को मिलते रहते हैं....

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