'भारतीय नारी'-क्या होना चाहिए यहाँ जो इस ब्लॉग को सार्थकता प्रदान करे ? आप साझा करें अपने विचार हमारे साथ .यदि आप बनना चाहते हैं 'भारतीय नारी ' ब्लॉग पर योगदानकर्ता तो अपनाE.MAIL ID प्रेषित करें इस E.MAIL ID PAR-shikhakaushik666@hotmail.com
पेज
▼
गुरुवार, 23 जनवरी 2014
बैडलक या गुडलक -लघु कथा
किशोर वय सागर ने माँ की गोद में सिर रखते हुए कहा -'' माँ कभी -कभी मैं सोचता हूँ कि मैं कितना बद्नसीब हूँ .मेरे जन्म लेने से एक माह पहले ही डैडी की हत्या हो गयी ...हो ना हो मेरे बैडलक के कारण ही ऐसा हुआ !'' विभा सागर के सिर को स्नेह से सहलाते हुए बोली -''नहीं तुम बदनसीब नहीं हो .तुम तो मेरे जीवन की पूँजी हो और अपने डैडी का नवीन छोटा रूप जिसने उनके बाद भी मुझे जीने का लक्ष्य दिया .जिस समय तुम्हारे डैडी माफिआओं से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे यदि तुम उनका अंश मेरी कोख में न होते तो शायद मैं भी आत्म-हत्या कर लेती पर ...तुम ही थे जिसने मुझे इस कायरता से रोक लिया .तुम अपने डैडी की मौत का नहीं मेरे ज़िंदा रहने का कारण हो सागर .तुम मेरा गुडलक हो ...समझे !!'' विभा की आँखें ये कहते कहते भर आयी और सागर भी भावुक हो उठा .
प्रेरणास्पद....गुणात्मक सोच प्रदर्शित करती कथा.....
जवाब देंहटाएं