श्याम स्मृति.....स्त्री -पुरुष समानता का अर्थ.....
अपने कर्तव्यों और मर्यादाओं की सीमा में रहते हुए, स्त्री-पुरुष एक दूसरे का आदर करें । यदि पुरुषों का एक अलग संसार है तो नारी का भी एक 'स्व' का संसार है । कला, साहित्य,
संगीत,
गृहकार्य,
सामाजिक-सांस्कृतिक सुरक्षा दायित्व में तो स्त्रियाँ प्रायः पुरुषों से आगे रहती ही हैं ।
स्त्री स्वतन्त्रता होनी ही चाहिए, पर क्या पुरुष से स्वतंत्रता ?
या अपने सहज कार्यों से ?...नहीं न
।
तो स्त्री-जागरण व स्वतंत्रता का क्या अर्थ हो ? पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर समाज, देश व धर्म-संस्कृति के कार्यों में समान रूप से भाग लेना ।
स्त्री स्वतन्त्रता सिर्फ पुरुषों के साथ कार्य करना, पुरुषों की नक़ल करना, पुरुषों की भाँति पेंट-शर्ट पहन लेना भर नहीं है । क्या कभी पुरुष..पायल,
बिछुआ, कंकण,
ब्रा आदि पहनते हैं ? सिन्दूर लगाते हैं । क्या कोई महिला पुरुषों के साथ नहाने-धोने, कपडे बदलने में सहज रह सकती है ? तो स्त्रियाँ क्यों पुरुषों की नक़ल करें ? समानता होनी चाहिए, अधिकारों व कर्तव्यों के पालन में । एक व्यक्तित्व को दूसरे व्यक्तित्व को सहज रूप से आदर व समानता देनी चाहिए |
.गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
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