अहसान नहीं मानती हैं अहसानफरामोश !
बेगमें तो होती हैं अहसानफरामोश !
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करती नहीं शौहर की थोड़ी सी भी तारीफ ,
सिल जाते लब हैं इनके हो जाती हैं खामोश !
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कहती हैं दो आज़ादी गुलाम नहीं हम ,
घर कौन संभालेगा इसका नहीं है होश !
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शौहर करे हिफाज़त वो पालता इन्हें ,
इज्जत से रहे बेगम हो जाता है सरफ़रोश !
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ज़ालिम हमारा शौहर बेकार है ऐलान ,
'नूतन' ज़माना जानता हम हैं सफेदपोश !
शिखा कौशिक 'नूतन'
आपकी लिखी रचना बुधवार 08/01/2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
THANKS
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व् सार्थक अभिव्यक्ति .नव वर्ष २०१४ की हार्दिक शुभकामनायें .
जवाब देंहटाएंक्या कहना चाहती हैं ...स्पष्ट नहीं है.....
जवाब देंहटाएंक्या बात है .....
जवाब देंहटाएंसमझ से परे.
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