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शुक्रवार, 10 जनवरी 2014
विवाह के उद्देश्य -लघु कथा
दिसंबर का महीना था .रविवार के दिन अरुण अपने बगीचे में धूप सेंक रहा था . उससे मिलने उसका मित्र अनिल आया तो उसने खड़े होकर उसे गले लगा लिया . स्थानीय विषयों से अंतराष्ट्रीय मुद्दों तक बात करते करते दोनों अपने अपने दादा-परदादा के विषय में बताने लगे .अरुण बोला -'' पता है अनिल ..मेरे दादा जी ने तीन विवाह किये .तीनों बार अलग-अलग उद्देश्य ! पहला विवाह उनका इक्कीस वर्ष की आयु में हुआ जिसका उद्देश्य था वंश -वृद्धि .इस विवाह से उनके मेरे पिता जी समेत पांच पुत्र हुए पर दुर्भाग्यवश पांचवी संतान के प्रसव के समय पहली दादी चल बसी .अब दुधमुहे बच्चे व् अन्य बच्चों की परवरिश कैसे हो इसीलिए घर-बार सँभालने हेतु बत्तीस वर्ष की आयु में दादा जी का दूसरा विवाह हुआ .ये विवाह पैंतीस वर्ष चला .दूसरी दादी से और कोई संतान नहीं हुई पर उन्होंने पिता जी समेत सभी बच्चों को पाल-पोसकर काबिल बनाया और पोते-पोतियों से भरे घर-बार को देखकर आँखें मूँद ली . दूसरी दादी के आँख मूँदते ही दादा जी को पानी का गिलास तक पकड़ाने वाला न रहा कोई . इस बार चिंता घर-बार न होकर दादा जी को खुद को सँभालने की थी .अड़सठ वर्ष की आयु में उन्होंने बेटों के प्रबल विरोध के बावजूद एक नि:संतान पचास वर्षीय विधवा स्त्री से विवाह किया . दोनों का साथ बहुत अच्छा रहा . नब्बे की आयु में चल बसे और कुछ महीने के अंतर पर तीसरी दादी जी भी ....मैं सोचता हूँ अनिल कि क्या पुरुष की तरह किसी महिला को भी अपने पति के मरने पर भिन्न-भिन्न उद्देश्यों के लिए विवाह का अवसर हमारा समाज इसी तरह प्रदान कर देता ? '' अनिल ने ''ना' में गर्दन हिलाई तो अरुण के अधरों पर व्यंग्यमयी मुस्कान तैर गयी ! शिखा कौशिक 'नूतन'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...! -- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (11-01-2014) को "रोना-धोना ठीक नहीं" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1489 में "मयंक का कोना" पर भी है! -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वतर्मान के सामाजिक परिदृश्य में एक विधवा अथवा एक विधुर, का पुनर विवाह एक निश्चित आयु तक ही शोभनीय होगा । अन्यथा यह सम्बन्ध परिवार एवं समाज में विकृतियों को जन्म देगा,क्योंकि विवाह का उद्देश्य स्वयं तक सिमित न होकर सर्वव्यापित है.....
----हाँ क्यों नहीं ..तमाम विधवा विवाह विशिष्ट कारणों व उद्देश्यों से होते हैं...हाँ पुरुष परिवार का चलाने वाला होता है अतः विधुर विवाह के तात्कालिक कारण व उद्देश्य अधिक होते हैं ....महिला को सहारा देने वाले तमाम होते हैं परन्तु पुरुष को सहारा देने वाले कम होते हैं ....तथा बाद के विवाह तो प्राय:अधिक उम्र की महिलाओं से ही होते हैं जहां दोनों ओर की आवश्यकता होती है ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (11-01-2014) को "रोना-धोना ठीक नहीं" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1489
में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
एक ज्वलंत प्रश्न छोडती कहानी ..........
जवाब देंहटाएंवतर्मान के सामाजिक परिदृश्य में एक विधवा अथवा एक विधुर, का पुनर विवाह एक निश्चित आयु तक ही शोभनीय होगा । अन्यथा यह सम्बन्ध परिवार एवं समाज में विकृतियों को जन्म देगा,क्योंकि विवाह का उद्देश्य स्वयं तक सिमित न होकर सर्वव्यापित है.....
जवाब देंहटाएंकहानी एक अच्छा संदेश दिया हैं आपने...
जवाब देंहटाएंअच्छा सन्देश दिया कहानी के माध्यम से
जवाब देंहटाएंatiutam-***
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जवाब देंहटाएं----हाँ क्यों नहीं ..तमाम विधवा विवाह विशिष्ट कारणों व उद्देश्यों से होते हैं...हाँ पुरुष परिवार का चलाने वाला होता है अतः विधुर विवाह के तात्कालिक कारण व उद्देश्य अधिक होते हैं ....महिला को सहारा देने वाले तमाम होते हैं परन्तु पुरुष को सहारा देने वाले कम होते हैं ....तथा बाद के विवाह तो प्राय:अधिक उम्र की महिलाओं से ही होते हैं जहां दोनों ओर की आवश्यकता होती है ...
thanks everyone to give your precious comment on my post .
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