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शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

धिक् ! मात्र पुरुष की गन्दी सोच

NCP woman leader nirbhaya was responsible for her rape
दामिनी गैंगरेप कांड और इसके पहले हुए बलात्कार और इसके बाद निरंतर हो रहे बलात्कारों ने देश में एक बहस सी छेड़ दी है और अधिकांशतया ये बहस एक ही कोण पर जाकर ठहर जाती है और वह कोण है नारी विरोध ,नारी से सम्बंधित जितने भी अपराध हैं उन सबमे एक ही परंपरा रही है नारी को ही जिम्मेदार ठहराने की .ये पहली और आखिरी पीड़ित होती है जो स्वयं ही अपराधी भी होती है .ऐसा नहीं है कि मात्र पुरुष ही नारी पर दोषरोपण करते हैं नारी भी स्वयं नारी पर ही दोष मढ़ती है और इसी कड़ी में एक नया नाम जुड़ा है महाराष्ट्र महिला आयोग की सदस्य और एन.सी.पी. नेता डॉ.आशा मिर्गी का ,जो कहती हैं कि नारी के साथ हो रहे इस अपराध के तीन ही कारण हैं -१-उसके अनुचित कपडे ,२-उसका अनुचित व्यवहार और ३- उसका अनुचित जगहों पर जाना ,बहुत गहराई से शोध किया गया है बलात्कार के कारणों का डॉ.आशा मिर्गी के कथन से तो यही लगता है और आश्चर्य है कि ऐसा वे तब कह रही हैं जब वे महाराष्ट्र जैसे राज्य की निवासी हैं जहाँ इस तरह के अपराधों की संख्या देश में सबसे ज्यादा होनी चाहिए क्योंकि उनके हिसाब से अनुचित कपडे ,अनुचित व्यव्हार व् अनुचित जगहों पर जाना इस अपराध का मूल कारण है तो महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई ,मुम्बई में बॉलीवुड और बॉलीवुड की हीरोइन जो इन सभी कार्यों में लिप्त हैं तब तो बलात्कार की संख्या सर्वाधिक भारत में यहीं होनी चाहिए जबकि आंकड़े तो कुछ और ही कहते हैं -

[Maximum rapes in India recorded in this state

Maximum rapes in India recorded in this state
Madhya Pradesh reported the highest number of rape cases (3,406) accounting for 14.1 per cent of total such cases reported in the country.
Rape cases have been further categorised as incest rape and other. Incest rape cases have decreased by 7.3 per cent from 288 cases in 2010 to 267 cases in 2011 as compared to 9.2 per cent increase in overall rape cases.
Maharashtra (44 cases) has accounted for the highest (15.3 per cent) incest rape cases.][एन.डी.टी.वी .से साभार ]
उपरोक्त आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में ये संख्या सर्वाधिक है महाराष्ट्र में नहीं ,फिर क्या डॉ.आशा मिर्गी ने उन्हें अपने शोध में सम्मिलित करते हुए ये विचार व्यक्त किये हैं या उन्हें भी यहाँ वैसे ही दरकिनार कर दिया है जैसे अपने सतही शोध में वास्तविक कारणों को .
बलात्कार आज हमारे देश ही क्या विश्व की समस्या बन चूका है ,न केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण विश्व की नारी इस अपराध को झेल रही है .जब मिस वर्ल्ड की प्रतियोगिता में शामिल होने जा रही प्रतिभागी तक को ये झेलना पड़ता है तब इस अपराध के विश्वव्यापी होने को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता ,अंतर सिर्फ ये है कि वह प्रतिभागी तब भी उस प्रतियोगिता में भाग लेती है और विजयी होती है और भारत भारत में बलात्कार की शिकार नारी का तो मानो जीवन ही समाप्त हो जाता है क्योंकि भारत के बाहर यह एक अपराध है इसमें नारी का दोष नहीं ढूँढा जाता किन्तु भारत में ये अपराध होने पर सर्वप्रथम नारी को ही कलंकित करना शुरू कर दिया जाता है अपराधी बना दिया जाता है .
सभी ये मानते हैं कि लड़कियों को सही कपडे पहनने चाहियें ,सही व्यवहार रखना चाहिए ,सही जगहों पर जाना चाहिए किन्तु क्या कोई भी यह कह सकता है कि आज बलात्कार हर तरह से गलत लड़की के साथ हो रहे हैं यदि ऐसा है तो बॉलीवुड की कोई हेरोइन ,डैली सोप की अभिनेत्री ,मॉडल आदि तो इस अपराध से बच ही नहीं सकती क्योंकि वे तो हर तरह से गलत कपडे पहनती हैं ,गलत व्यवहार के रूप में हर तरह के गलत हाव-भाव का प्रयोग करती हैं और ऐसी गलत जगहों पर जाती हैं जहाँ यौन शोषण एक आम बात है ,जब दूरदर्शन जैसे राष्ट्रीय चैनल पर खुलेआम नगनता, उत्तेजक दृश्यों व् अश्लील व्यवहार सबके सामने हो रहा है -

आलोचना -सामाजिक -दूरदर्शन पर खुलेआम महिला शोषण [contest]

तब अन्य चैनल्स की स्थिति तो सोची भी नहीं जा सकती ऐसे में इस अपराध के मूल कारणों से ध्यान हटाकर नारी पर ही इसका दोषारोपण किया जाना निंदनीय है .
इस अपराध का करने वाला पुरुष है और मात्र एक शरीर नहीं वरन उसकी सोच भी इस अपराध का मूल कारण है .न केवल नारी शरीर से पुरुष अपनी हवस मिटाता है वरन वह मिटाता है इससे सम्बंधित नारी के पिता ,भाई, पति से अपनी रंजिश की प्यास ,वह लेता है बदला उस नारी से अपनी उपेक्षा का ,वह सिखाता है उसे सबक कि उसे नहीं अधिकार पुरुष के एकतरफा प्यार को ठुकराने का और वह दिखाता है उसे उसकी वास्तविक स्थिति कि उसमे नहीं दम इस समाज में अपना प्रतिष्ठापूर्ण स्थान बनाने का और यदि ऐसा नहीं है तो गाँव में चारा काटने गयी ,खेत में पति के लिए भोजन लेकर गयी ,शहरों -कस्बों में स्कूल में पढने-पढ़ाने गयी ,बस में सफ़र कर रही कपड़ों से ढकी छिपी डरी डरी सी लड़कियां क्यूँ खुलेआम बलात्कार का शिकार हो रही अं ?क्यूँ शिकार हो रही हैं वे ज़रा सी बच्चियां जिन्होंने अभी चलना -फिरना बाते करना सीखा ही है ?क्यूँ इनके साथ हो रहे हैं गैंगरेप ?क्या एक लड़की के अनुचित कपडे ,अनुचित व्यवहार ,अनुचित जगह पर जाने मात्र से ५ से ७ लोगों की हवस की भावना या कहूँ वासना इस कदर उबल सकती है कि वे ऐसी घटना को अंजाम दे दें ?
क्यूँ नहीं ऐसे विषयों पर बोलते वक़्त ये हमारे देश समाज के कर्णधार गहराई से अवलोकन करते हैं इन तथ्यों का जो चीख-चीखकर कहते हैं कि ये सब पुरुषों के द्वारा पूर्व नियोजित होता है .यह अचानक से नहीं होता और नारी केवल इसी करना इसका शिकार होती है क्योंकि नारी को प्रकृति ने कमज़ोर बनाया है और उसे इस अपराध से उत्पन्न बीज को ढोने का श्राप दिया है[जो कार्य समाज की मर्यादाओं के अनुसार होने पर नारी के लिए वरदान कहा जाता है वही कार्य ऐसी परिस्थितियों में नारी के लिए श्राप बन जाता है क्योंकि ये साबित करना कि ये बच्चा धर्म युक्त है या धर्म विरुद्ध नारी की ही जिम्मेदारी होती है और ये कार्य उसके लिए ऐसी परिस्थितियों में मुश्किल नहीं तो कठिन अवश्य होता है और उसकी इसी मजबूरी का लाभ पुरुष वर्ग द्वारा एक खेल की तरह उठाया जाता है .]
और बाकी सब ऐसी सोच रखने वाले लोग कर रहे हैं जो पुरुषों की गन्दी सोच का कारण भी नारी को ही बना रहे हैं जबकि इस अपराध का केवल और केवल एक ही कारण है ''पुरुष की गन्दी सोच'' और ये ही वजह भी है बहुत सी जगह नारी के अनुचित कपड़ों,अनुचित व्यवहार व् अनुचित जगहों पर जाने की क्योंकि वह इसी सोच का फायदा उठाने को कभी मजबूरी वश तो कभी तरक्की की चाह में ऐसा करने को आगे बढ़ जाती है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

कोई खास बात नहीं -लघु कथा

''अरे जाग गए आप ...आज के अखबार में तो आप छाये हुए हैं ...आपको पार्टी ने इस लोकसभा से अपना उम्मीदवार जो बनाया है ..अखबार में पूरे पन्ने पर आपसे सम्बंधित खबरे छपी हैं और ...आपका फोटो भी प्रकाशित हुआ है ...अब उठिए भी ..'' नेहा ने अपने पतिदेव से उत्साहित होते हुए कहा .पतिदेव ऊंघते हुए बोले -''अरे भाई पहले एक कप चाय तो पिलाओ ...दिन बना दिया तुमने तो मेरा !'' पतिदेव के ये कहते ही नेहा दोगुने उत्साह के साथ अख़बार बैड पर पतिदेव के सिरहाने रख चाय बनाने चली गयी . इधर पतिदेव ने लेटे-लेटे ही अखबार उठाया और अपनी खबर व् फोटो देखकर हर्षित हो उठे तभी उन्हें याद आया कि पिछले वर्ष जब नेहा को सर्वश्रेष्ठ साहित्य्कार का सम्मान मिलने की खबर अख़बार में छपी थी तब अख़बार पहले उनके ही हाथ में आया था और वे अपनी पत्नी की बढ़ती लोकप्रियता व् सामाजिक सम्मान से चिढ गए थे .उन्होंने पूरा अखबार देखकर ये कहते हुए एक ओर रख दिया था कि ''आज अखबार में कुछ भी खास नहीं है !''
शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

लिबास-कहानी


मंजू ने लम्बी साँस लेते हुए मन में सोचा -''आज सासू माँ की तेरहवीं भी निपट गयी .माँ ने तो केवल इक्कीस साल संभाल कर रखा मुझे पर सासू माँ ने अपने मरते दम तक मेरे सम्मान ,मेरी गरिमा और सबसे बढ़कर मेरी इस देह की पवित्रता की रक्षा की . ससुराल आते ही जब ससुर जी के पांव छूने को झुकी तब आशीर्वाद देते हुए सिर पर से ससुर जी का हाथ पीछे पीठ पर पहुँचते ही सासू माँ ने टोका था उन्हें -'' बिटिया ही समझो ...बहू नहीं हम बिटिया ही लाये हैं जी !''सासू माँ की कड़कती चेतावनी सुनते ही घूंघट में से ही ससुर जी का खिसियाया हुआ चेहरा दिख गया था मुझे . .उस दिन के बाद से जब भी ससुर जी के पांव छुए दूर से ही आशीर्वाद मिलता रहा मुझे .
पतिदेव के खानदानी बड़े भाई जब किसी काम से आकर कुछ दिन हमारे घर में रहे थे तब एक बेटे की माँ बन चुकी थी थी मैं ...पर उस पापी पुरुष की निगाहें मेरी पूरी देह पर ही सरकती रहती .एक दिन सासू माँ ने आखिर चाय का कप पकड़ाते समय मेरी मेरी उँगलियों को छूने का कुप्रयास करते उस पापी को देख ही लिया और आगे बढ़ चाय का कप उससे लेते हुए कहा था -''लल्ला अब चाय खुद के घर जाकर ही पीना ...मेरी बहू सीता है द्रौपदी नहीं जिसे भाई आपस में बाँट लें .'' सासू माँ की फटकार सुन वो पापी पुरुष बोरिया-बिस्तर बांधकर ऐसा भागा कि ससुर जी की तेरहवी तक में नहीं आया और न अब सासू माँ की . चचेरी ननद का ऑपरेशन हुआ तो तीमारदारी को उसके ससुराल जाकर रहना पड़ा कुछ दिन ...अच्छी तरह याद है वहाँ सासू माँ के निर्देश कान में गूंजते रहे -'' ...बचकर रहना बहू ..यूँ तेरा ननदोई संयम वाला है पर है तो मर्द ना ऊपर से उनके अब तक कोई बाल-बच्चा नहीं ...''
आखिरी दिनों में जब सासू माँ ने बिस्तर पकड़ लिया था तब एक दिन बोली थी हौले से -'' बहू जैसे मैंने सहेजा है तुझे तू भी अपनी बहू की छाया बनकर रक्षा करना ..जो मेरी सास मेरी फिकर रखती तो मेरा जेठ मुझे कलंक न लगा पाता .जब मैंने अपनी सास से इस ज्यादती के बारे में कहा था तब वे हाथ जोड़कर बोली थी मेरे आगे कि इज्जत रख ले घर की ..बहू ..चुप रह जा बहू ...तेरी गृहस्थी के साथ साथ जेठ की भी उजड़ जावेगी ..पी जा बहू जहर ..भाई को भाई का दुश्मन न बना ....और मैं पी गयी थी वो जहर ..आज उगला है तेरे सामने बहू !!'' ये कहकर चुप हो गयी थी वे और मैंने उनकी हथेली कसकर पकड़ ली थी मानों वचन दे रही थी उन्हें ''चिंता न करो सासू माँ आपके पोते की बहू मेरे संरक्षण में रहेगी .'' सासू माँ तो आज इस दुनिया में न रही पर सोचती हूँ कि शादी से पहले जो सहेलियां रिश्ता पक्का होने पर मुझे चिढ़ाया करती थी कि -'' जा सासू माँ की सेवा कर ..तेरे पिता जी पर ऐसा घर न ढूँढा गया जहाँ सास न हो '' उन्हें जाकर बताऊँ कि ''सासू माँ तो मेरी देह के लिबास जैसी थी जिसने मेरी देह को ढ़ककर मुझे शर्मिंदा होने से बचाये रखा न केवल दुनिया के सामने बल्कि मेरी खुद की नज़रों में भी .'

शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

गीत ..डा श्याम गुप्त.....



                            गीत का स्वर--
मेरे गीतों में आकर के तुम क्या बसे,गीत का स्वर मधुर- माधुरी होगया ,
अक्षर अक्षर सरस आम्र मन्ज़रि हुआ , शब्द मधु की भरी गागरी होगया॥
 
तुम जो ख्यालों में आकर समाने लगे, गीत मेरे कमल दल से खिलने लगे।
मन के भावों में तुमने जो नर्तन किया,गीत ब्रज की भगति-बावरी होगया॥

प्रेम की भक्ति सरिता में होके मगन मेरे मन की गली तुम समाने लगे।
पन्ना पन्ना सजा प्रेम रसधार में , गीत पावन हो मीरा का पद होगया॥

भाव चितवन के मन की पहेली बने,गीत कविरा का निर्गुण सबद होगया।
तुमने छंदों में सजके सराहा इन्हें , मधुपुरी की चतुर नागरी होगया॥

तुम जो हँस-हँस के मुझको बुलाते रहे,दूर से छलना बन के लुभातीं रहीं।
गीत इठलाके तुम को बुलाने लगे ,मन लजीली कुसुम वल्लरी होगया॥

मस्त में तो यूँही गीत गाता रहा, तुम सजाते रहे, मुस्कुराते रहे।
भाव भंवरा बने गुनगुनाने लगे,गीत का स्वर नवल पांखुरी होगया॥

तुमने कलियों से जो लीं चुरा शोखियाँ,बन के गज़रा कली खिलखिलातीं रहीं।
पुष्प चुनकर जो आँचल में भरने चलीं, गीत पल्लव सुमन आंजुरी होगया॥

तेरे स्वर की मधुर-माधुरी मिल गयी,गीत राधा की प्रिय बांसुरी होगया।
भक्ति के भाव तुमने जो अर्चन किया,गीत कान्हा की प्रिय सांवरी होगया ॥

अरब की स्त्री और फेकी

-प्रेम प्रकाश  
 भारत बाजार के लिए भले पिछले दो दशकों में ज्यादा उदार हुआ हो पर विचार के क्षेत्र में उसकी उदारता काफी पहले से रही है। भारतीय चिंतन का चरित्र समन्वयवादी इसलिए है क्योंकि नए विचारों का हमने हमेशा खुले हाथों से स्वागत किया है। बहरहाल, ये बातें यहां इसलिए क्योंकि हम चर्चा करने जा रहे हैं एक ऐसी लेखिका की जो भारतीय नहीं हैंऔर न ही भारतीय जीवन और समाज को लेकर उन्होंने कोई उल्लेखनीय कार्य किया है। पर उन्हें पढ़ने-सुनने के लिए यहां के प्रबुद्ध लोगों में गजब का आकर्षण है।
दरअसल, हम बात कर रहे हैं ब्रितानी लेखिका और पत्रकार शिरीन एल फेकी की। शिरीन का अरब की महिलओं को लेकर अध्ययन काफी चर्चित रहा है। उनकी किताब है 'सेक्स एंड दी सिटेडेल : इंटीमेट लाइफ इन ए चेंजिग अरब वर्ल्ड’। इसमें उन्होंने अरब की महिलाओं के जीवन के अंतरंग अनुभवों को बेबाकी से सामने रखा है। दिलचस्प है कि महिलाओं को लेकर अरब का समाज आज भी बहुत खुला नहीं है। वहां पर्दा प्रथा जैसी तमाम मध्यकालीन परंपराएं और मान्यताएं आज भी प्रचलन में हैं, जो वहां की महिलाओं को बाहरी दुनिया में खुलकर सांस लेने से रोकती हैं।
शिरीन पिछले दिनों जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शिरकत करने आई थीं। वहां एक संवाद सत्र में उन्होंने कहा कि लोगों को उनका काम इसलिए आकर्षक लगता है क्योंकि इसका केंद्रीय विषय सेक्स है। पर यह उनके काम को महत्वहीन करने वाला नजरिया है। इस तरह के नजरिए के कारण महिलाओं के जीवन से जुड़ी कई समस्याओं और उनके उत्पीड़न के मुद्दों को सही तरीके से समझने की कोशिश अनावश्यक रूप से प्रभावित होती है।
फेकी ने कहा कि सेक्स पर बातें करते हुए मैंने अरब दुनिया में पांच वर्ष बिताए हैं। कई लोग यह सोच सकते हैं कि यह दुनिया का बेहतरीन काम है। पर ऐसा नहीं है क्योंकि वे अरब की महिलाओं की जिंदगी के उन पन्नों को खोलना चाहती थीं, जिसके बारे में आमतौर पर बात नहीं होती है।
अपने बारे में फेकी बताती हैं कि वे ब्रितानी जरूर हैं पर उनकी परवरिश वहां नहीं हुई। उनके पिता वेल्स के और मां मिस्त्र की हैं। मां-पिता के कनाडा चले जाने के कारण उनकी पढ़ाई भी बाहर ही हुई। सितंबर 2००1 में अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकवादी हमला होने तक उन्होंने अरब दुनिया के साथ कभी कोई जुड़ाव महसूस नहीं किया था। पर इसके बाद इस्लामी मुल्कों, खासतौर पर अरब की महिलाओं के जीवन को लेकर उनके मन में कई तरह की जिज्ञासा और सवाल पैदा हुए।
फेकी को जब 'द इकोनामिस्ट’ अखबार के लिए स्वास्थ्य संवाददाता के रूप में काम करने का मौका मिला तो उन्होंने एचआईवी पर एक महत्वपूर्ण स्टोरी की। इसी क्रम में पुरातनपंथी मूल्यों वाले अरब मुल्कों की महिलाओं के साथ उन्हें बातचीत का मौका मिला।
फेकी का मानना है कि समाज का व्यवहार शयनकक्ष के बंद दरवाजे के पीछे जो कुछ घटित होता है, उससे गहरे तौर पर जुड़ा होता है। पर लोग इश बात को गहराई से नहीं समझते हैं।
अरब की महिलाएं इस लिहाज से बाकी दुनिया से कतई अलग नहीं हैं कि प्यार और संवेदना को लेकर उनका दिलो दिमाग किसी और तरह की बनावट का है। बल्कि सच तो यह है कि यहां की महिलाओं की जीवन के कुछ कोमल अनुभवों को लेकर आपबीती इतनी खुरदरी और उत्पीड़न भरी है कि उसके बारे में जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
फेकी कहती हैं कि अरब मुल्कों की महिलाओं के बारे में आमतौर पर जिस तरह की बातें की जाती हैं, वह सचाई से निहायत परे हैं। अगर आज आधी दुनिया लैंगिक समानता और देह पर अधिकार जैसे महिलावादी तकाजों पर मुट्ठी बांध रही हैं तो उसमें अरब की महिलाओं का संघर्ष अलग से रेखांकित होना चाहिए। फेकी भी इस तकाजे को ही अपना लेखकीय मिशन मानती हैं।

सोमवार, 27 जनवरी 2014

कृपया शर्माए नहीं इसे शेयर करें !

S.khan
ट्रायल रूम में लगे गोपनीय
कैमरों का पता कैसे
लगायें ?
सबसे पहले जब आप ट्रायल रूम के सामने पहुचे
तो इस अपने मोबाइल फ़ोन से एक कॉल कर इस
बात का इत्मीनान कर लीजिये की आपके फ़ोन

से
कॉल हो रही है....
इसके बाद आप ट्रायल रूम में जाइये, अंदर जाते
ही apni ड्रेस के ट्रायल से पहले फिर से एक
कॉल करिए..... यदि कॉल
नहीं जा रही है......... !!!!!
इसका मतलब ट्रायल रूम में गोपनीय कैमरा है
ऐसा फाइबर ऑप्टिकल केबल के द्वारा मोबाइल
के सिंग्नल ट्रान्सफर को बाधित करने के वजह
से होता है....
कृपया इसे अपने वाल पर ज्यादा से
ज्यादा शेयर
करे और अपने महिला मित्रों, बहनों, को इस
गोपनीय कैमरे से सावधान करे.....
एक जरुरी जानकारी---- सूत्रों के अनुसार बिग
बाज़ार, शोप्पेर्स स्टॉप में पिन होल कैमरे
पाए
गए है....!!!!
कुछ दिनों पहले प्रसारित एक सन्देश के
अनुसार----
बिग बाज़ार और शोपेर्स स्टॉप में के ट्रायल
रूम
में पिन होल कैमरे लगे जिनके द्वारा यंग
गर्ल्स
के MMS बनाये जा रहे है....
कृपया शर्माए नहीं इस ज्यादा से
ज्यादा शेयर
करें....

स्त्री-पुरुष संबंधों, अंतर्संबंधों , प्रेम, अधिकार व कर्तव्यों की उचित व पुनर्व्याख्या है राधा -कृष्ण -गोपिकाओं की गाथा ---- डा श्याम गुप्त ...




          यदि राधा व गोपिकाएं श्री कृष्ण से असीम प्रेम करतीं हैं, सर्वस्व अर्पण की भावना रखती हैं तो श्रीकृष्ण भी उनका श्रृंगार करते हैंअंजन लगाते हैंमयूर नृत्य करते हैं, स्त्री का सांवरी रूप धरते हैंमुरली-गान से मनोरंजन करते हैं, उनकी सखियों का भी मान रखते हैं, यहाँ तक कि राधाजी के पैर भी छूते हैंपुरूष में 'अहं 'होता है, स्त्री में 'मान' ...परन्तु प्रेम, पति-पत्नी, स्त्री-पुरूष संबंधों में अहं नहीं होतास्त्री का मान मुख्यतया प्रेम की गहराई से उत्पन्न होता हैयदि पुरूष स्त्री को बराबरी का दर्जा दे अहं छोड़कर उसके मान की रक्षा करे, स्त्री के स्व का , स्वजनों का, इच्छा का सम्मान करे तो सामाजिक, पारिवारिक द्वंद्व नहीं रहते |
                 
उस काल में, द्वापर युग में.... भौतिक प्रगति, जनसंख्या वृद्धि के कारण आर्थिक-सामाजिक -वाणिज्यिक कारणों से पुरुषों की अति व्यस्तता स्त्री-पुरूष संबंधों में दरार व द्वंद्व बढ़ने लगे थेत्रेता में शमित आसुरी प्रवृत्तियां पुनः बढ़ने से स्त्रियों की सुरक्षा हेतु उनकी स्वतन्त्रता पर अंकुश भी बढ़ने लगा था |   पुरूष श्रेष्ठता व स्त्री आधीनता को महिमा मंडित किया जाने लगा थाश्रीकृष्ण के रूप में स्त्रियों को उनकी की स्वतन्त्रता, बराबरी, श्रेष्ठता का प्रतीक मिलावे सर्व-सुलभ, सहजस्त्रियों का मान रखने वालेसम्पूर्ण तुष्टि देने वाले थे जो वस्तुतः स्त्रियों की सहज आशा व चाह होती हैराधा... श्रीकृष्ण की चिर संगिनीप्रेमिका, कार्य-संपादिका एवं इस नारी-उत्थान व समाजोत्थान में पूर्ण सहायिका थी।
             
श्री कृष्ण-राधा के कार्यों के कारण गोपिकाए ( ब्रज-बनिताएं) पुरुषों के अन्याय, निरर्थक अंकुश तोड़ कर बंधनों से बाहर आने लगींकठोर कर्मकांडी ब्राह्मणों की स्त्रियाँ भी पतियों के अनावश्यक रोक-टोक को तोड़कर श्रीकृष्ण के दर्शन को बाहर जाती हैं। यह स्त्री स्वतन्त्रता, सम्मान, अधिकारों की पुनर्व्याख्या थी। वैदिक काल से त्रेता तक के लंबे काल-खंड में कालगत्यानुसार पश्चत्रेता काल में जो सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक शून्यता समाज में आई  उसी की पुनर्स्थापना करना कृष्ण-राधा का उद्देश्य था |