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सोमवार, 23 दिसंबर 2013

बदचलन कहने को ये मुंह खुल जाते हैं .

 
Farooq Abdullah scared of women!
अबला समझके नारियों पे बला टलवाते हैं,
चिड़िया समझके लड़कियों के पंख कटवाते हैं ,
बेशर्मी खुल के कर सकें वे इसलिए मिलकर
पैरों में उसे शर्म की बेड़ियां पहनाते हैं .
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आवारगी पे अपनी न लगाम कस पाते हैं ,
वहशी पने को अपने न ये काबू कर पाते हैं ,
दब कर न इनसे रहने का दिखाती हैं जो हौसला
बदचलन कहने को ये मुंह खुल जाते हैं .
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बुज़ुर्गी की उम्र में ये युवक बन जाते हैं ,
बेटी समान नारी को ये जोश दिखलाते हैं ,
दिल का बहकना दुनिया में बदनामी न फैले कहीं
कुबूल कर खता बना भगवान बन जाते हैं .
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खुद को नहीं समझके ये सुधार कर पाते हैं ,
गफलतें नारी की अक्ल में गिनवाते हैं ,
कानून की मदद को जब लड़कियां बढ़ाएं हाथ
उनसे बात करने से जनाब डर जाते हैं .
…………………………………………………
नारी पे ज़ुल्म करने से न ये कतराते हैं,
बर्बरता के तरीके नए रोज़ अपनाते हैं ,
अतीत के खिलाफ वो आज खड़ी हो रही
साथ देने ”शालिनी ”के कदम बढ़ जाते हैं .
………………………………….
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (24-12-13) को मंगलवारीय चर्चा 1471 --"सुधरेंगे बिगड़े हुए हाल" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. तहलका करने वालों ,गांगुलियों और परदे के पीछे सब कुछ करने वालों को आइना दिखलाती

    बढ़िया रचना। यही लोग हैं जो शाहबानो का हक़ छीन लेते हैं।

    जवाब देंहटाएं