दो पल--
राह में दो पल साथ तुम्हारे,
बीते उनको ढूढ रहा हूँ |
पल में सारा जीवन जीकर,
फिर वो जीवन ढूंढ रहा हूँ |
उन दो पल के साथ ने मेरा,
सारा जीवन बदल दिया था |
नाम पता कुछ पास नहीं पर,
हर पल तुमको ढूंढ रहा हूँ |
तेरी चपल सुहानी बातें,
मेरे मन की रीति बन गयीं |
तेरे सुमधुर स्वर की सरगम,
जीवन का संगीत बन गयीं |
तुम दो पल जो साथ चल लिए,
जीवन की इस कठिन डगर में ।
मूक साक्षी बनीं जो
राहें ,
उन राहों को ढूंढ
रहा हूँ |
पल दो पल में जाने कितनी,
जीवन-जग की बात होगई |
हम तो चुप-चुप ही बैठे थे,
बात बात में बात होगई |
कैसे पहचानूंगा तुमको,
मुलाक़ात यदि कभी होगई |
तिरछी चितवन और तेरा,
मुस्काता आनन् ढूंढ रहा हूँ |
मेरे गीतों को सुनकर, वो-
तेरा वंदन
ढूंढ रहा हूँ |
चलते -चलते तेरा वो,
प्यारा अभिनन्दन ढूंढ रहा हूँ |
मेने पहले भी कहां हैं आज फिर कह रहा हूँ। जहां प्रेम(श्रृंगार) पर लिखना जितना कठिन हैं उतना ही सहज भी। श्याम जी इस कला के माहिर न सहीं फिर भी अच्छा लिख रहे हैं....आपको बधाई
जवाब देंहटाएं---क्या बात है ..सावन कुमार
जवाब देंहटाएंकभी खुद पे कभी हालात पे हंसना आया,
बात निकली तो मौसमे सावन पे जीना आया|
माहिर कौन हुआ है इस जग में मेरे दोस्त,
सबको अपनी ही रीति-नीति से लिखना आया ||
इस शेर के लिए एक बार फिर आपका...आभार
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