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रविवार, 29 सितंबर 2013

प्रभु दे मारक शक्ति, नारि क्यूँ सदा कराहे-रविकर

हे अबलाबल भगवती, त्रसित नारि-संसार। 
सृजन संग संहार बल, देकर कर उपकार।

देकर कर उपकार, निरंकुश दुष्ट हो रहे । 
करते अत्याचार, नोच लें श्वान बौरहे।

समझ भोग की वस्तु, लूट लें घर चौराहे । 
प्रभु दे मारक शक्ति, नारि क्यूँ सदा कराहे ॥

4 टिप्‍पणियां:

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  2. सृजन संग संहार बल, सदा नारि के संग |
    करें नहीं उपयोग पर,सुख-सेवित जब अंग |
    सुख सेवित जब अंग,अन्य क्यों बनें सहायक|
    अपनी करनी सदा स्वयं फल की परिचायक |
    अपना स्वयं सहाय, बने रख दृढ़ता तन मन ,
    अनुपम बल है नारि,हो विनाश या नवसृजन||

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