हे अबलाबल भगवती, त्रसित नारि-संसार।
सृजन संग संहार बल, देकर कर उपकार।
देकर कर उपकार, निरंकुश दुष्ट हो रहे ।
करते अत्याचार, नोच लें श्वान बौरहे।
समझ भोग की वस्तु, लूट लें घर चौराहे ।
प्रभु दे मारक शक्ति, नारि क्यूँ सदा कराहे ॥
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4 टिप्पणियां:
bilkul sahi .aabhar
सृजन संग संहार बल, सदा नारि के संग |
करें नहीं उपयोग पर,सुख-सेवित जब अंग |
सुख सेवित जब अंग,अन्य क्यों बनें सहायक|
अपनी करनी सदा स्वयं फल की परिचायक |
अपना स्वयं सहाय, बने रख दृढ़ता तन मन ,
अनुपम बल है नारि,हो विनाश या नवसृजन||
आभार आदरणीया-
आभार आदरणीय-
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