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बुधवार, 10 जुलाई 2013

कथनी और करनी....डा श्याम गुप्त ....



कथनी और करनी....
कह रहे हैं हम सभी विविध बातें,
हाँ हाँ भी कह रहे हैं,
और ..
भोग भी करते जारहे हैं हम सभी इसका|
कौन नहीं कर रहा उपयोग -
मार्बल, ग्रेनाईट, बहुमूल्य लकड़ी का
घर सजाने हेतु,
भूजल का दोहन, कार धोने हेतु ;
और कौन नहीं कर रहा उपयोग-
पर्यटन की सुख-सुविधाओं का ,
प्रकृति के विनाश के कारखानों, कृतित्वों में
सेवा करके धन कमाने का|
कौन नहीं कर रहा उपयोग-
प्लास्टिक, इलेक्ट्रोनिक उपकरण का
जो कारण हैं अंधाधुंध प्रकृति-दोहन के |  
इसे कहते हैं
कथनी और
करनी और ......
मैं तो करूं,पर-
तू यह न कर |
             

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सार्थक प्रस्तुति...हम सभी अपने अपने स्तर प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं...

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  2. सही , कहा सब अपने स्वार्थ में जी रहे हैं। फिर भी तनिक ध्यान दिया जाये तो इतना मुश्किल भी नहीं है।

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  3. सभी स्वार्थी हैं आज ... अपने से ऊपर उठ के देखना नहीं चाहते ...

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  4. धन्यवाद---शर्माजी, शिखाजी, नीलिमाजी,नासवा जी,रंजना जी एवं डा दराल साहब ...सही कहा मुश्किल कुछ भी नहीं ..संकल्प होना चाहिए...

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  5. बहुत सार्थक प्रस्तुति

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  6. बहुत सही कविता . हमें अपनी प्रकृति का ख्याल रखना है .. बस यही मंगलकामना हो .

    दिल से बधाई स्वीकार करे.

    विजय कुमार
    मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com

    मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com

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