बेग़म पलट कर वार करती हो बड़ी तकलीफ होती है !
ना देखूं तुमको पर्दे में बड़ी तकलीफ होती है ,
तुम्हारी हर तरक्की से बड़ी तकलीफ होती है !
उठाकर आँख मुझसे बात जब करती हो बेग़म तुम ,
हदें यूँ पार करने से बड़ी तकलीफ होती है !
खुशामद की जगह करने लगी हो अब बगावत तुम ,
हकों की बात करने से बड़ी तकलीफ होती !
मेरा खिल्ली उड़ाना अब बुरा लगने लगा तुमको ,
पलट कर वार करती हो बड़ी तकलीफ होती है !
मेरा हर ज़ुल्म सह जाना रही आदत तेरी 'नूतन' ,
नहीं सिर अब झुकाने से बड़ी तकलीफ होती है !
शिखा कौशिक 'नूतन'
ना देखूं तुमको पर्दे में बड़ी तकलीफ होती है ,
तुम्हारी हर तरक्की से बड़ी तकलीफ होती है !
उठाकर आँख मुझसे बात जब करती हो बेग़म तुम ,
हदें यूँ पार करने से बड़ी तकलीफ होती है !
खुशामद की जगह करने लगी हो अब बगावत तुम ,
हकों की बात करने से बड़ी तकलीफ होती !
मेरा खिल्ली उड़ाना अब बुरा लगने लगा तुमको ,
पलट कर वार करती हो बड़ी तकलीफ होती है !
मेरा हर ज़ुल्म सह जाना रही आदत तेरी 'नूतन' ,
नहीं सिर अब झुकाने से बड़ी तकलीफ होती है !
शिखा कौशिक 'नूतन'
विचारणीय प्रस्तुति बहुत सुन्दर .आभार . संस्कृति रक्षण में महिला सहभाग
जवाब देंहटाएंसाथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
तकलीफ़ तो होगी ही -आदतें जो बिगड़ गई हैं !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(1-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
बात तो सही है
जवाब देंहटाएंबढिया
बढिया
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