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शुक्रवार, 31 मई 2013

कहानी मानव की ...डा श्याम गुप्त....




                                  कहानी मानव की
         जब मानव एकाकी था, सिर्फ़ एक अकेला मानव शायद मनु या आदम ( मनुष्य,आदमी ,मैन) हाथ में एक हथौडानुमा हथियार लिए घूमता रहता था, एक अकेला । एक दिन अचानक घूमते-घूमते उसने एक अपने जैसे ही अन्य आकृति के जानवर ( व्यक्ति) को जाते हुए देखा। उसने छिप कर उसका पीछा किया। चलते-चलते वह आकृति एक गुफा के अन्दर चली गयी। उस मानव ने चुपके से गुफा के अन्दर प्रवेश किया तो देखा की एक उसके जैसा ही मानव बैठा फल आदि खा रहा है। उसकी आहट जानकर अचानक वह आकृति उठी और अपने हाथ के हथौडेनुमा हथियार को उठालिया। अपने जैसे ही आकृति को वह आश्चर्य से देख कर बोली-तुम कौन ? अचानक क्यों घुसे यहाँ, अगर में हथौडा चलादेता तो ! पहला मानव चारों और देख कर बोला, अच्छा तुम यहाँ रहते हो। मैं तुमसे अधिक बलशाली हूँ। मैं भी तुम्हें मार सकता था। यह स्थान भी अधिक सुरक्षित नहीं है। तुम्हारे पास फल भी कम हें,इसीलिये तुम कम जोर हो, अच्छा अब हम मित्र हैं मैं तुम्हें अपनी गुफा दिखाता हूँ।
      दूसरा मानव उसकी गुफा देख कर प्रभावित हुआ। उसने उसे प्रशंसापूर्ण निगाहों से देखा| पहले मानंव ने कहा तुम यहाँ ही क्यों नही  आजाते, मिलकर फल एकत्रित करेंगे और भोजन करेगे | उसने उसे ध्यान से देखा, उसका हथौडा भी बहुत बड़ा है, उसकी गुफा भी अधिक बड़ी है, उसके पास फल आदि भी अधिक मात्रा में एकत्रित हैं| उसने उसकी बाहों की पेशियाँ छू कर देखी वो अधिक मांसल कठोर थीं| उसका शरीर भी उससे अधिक बड़ा था। दूसरे मानव ने कुछ सोचा और वह अपने फल आदि उठाकर पहले मानव की गुफा में आगया।
         और यह वही प्रथम दिन था जव नारी ( शायद -शतरूपा या कामायिनी की श्रद्धा ) ने स्वेक्षा से पुरूष के साथ सहजीवन स्वीकार किया। यह प्रथम परिवार था। यह सहजीवन था कोई किसी के आधीन नहीं। नर-नारी स्वयं में स्वच्छंद थे जीने, रहने, किसी के भी साथ रहने आदि के लिए। अन्य जीवों,पशु-पक्षियों की तरह । यद्यपि सिंहों, हंसों आदि उच्च जातियों की भांति प्रायः जीवन पर्यंत एक साथी के साथ ही रहने की मूल प्रवृत्ति तब भी थी अब की तरह (निम्न जातियाँ कुत्ते,बिल्ली आदि की भांति कभी भी किसी के भी साथ नहीं) और यह युगों तक चलता रहा।
       जब संतानोत्पत्ति हुई, यह देखा गया की दोनों साथियों के भोजन इकट्ठा करने जाने पर अन्य जानवरों आदि की भांति उनके बच्चे भी असुरक्षित रह जाते हें। तो किसी एक को घर रहने की आवश्यकता हुई। फल इकट्ठा करने वाली जीवन पद्धति की सभ्यता में शारीरिक बल अधिक महत्वपूर्ण होने से अपेक्षाकृत अधिक बलशाली पुरूष ने बाहर का कार्य सम्भाला। क्योंकि नारी स्वभावतः अधिक तीक्ष्ण बुद्धि, सामयिक बुद्धि व त्वरित निर्णय क्षमता में कुशल थी अतः वह घर का, परिवार का प्रबंधन करने लगी। यह नारी-सत्तात्मक समाज की स्थापना थी। पुरूष का कार्य सिर्फ़ भोजन एकत्रित करना, सुरक्षा व श्रम का कार्य था। यह भी सहजीवन की ही परिपाटी थीस्त्री-पुरूष कोई किसी के बंधन में नहीं था, सब अपना जीवन जीने के लिए स्वतंत्र थे। युगों तक यह प्रबंधन चलता रहा, आज भी कहीं कहीं दिखता है।
जब मानव कृषि आदि कार्यों से उन्नत हुघुमक्कड़घुमंतू समाज स्थिर हुआ, भौतिक उन्नति, मकान, घर, कपडे, मुद्रा आदि का प्रचलन हुआ तो तो पुरूष व्यवसायिक कर्मों में अधिक समर्थ होने लगा, स्त्री का दायरा घर रहा, पुरूष के अधिकार बढ़ने लगे, राजनीति, धर्म, शास्त्र आदि पर पुरुषों ने आवश्यक खोजें कीं| अबंधित शारीरिक व यौन संबंधों के रोगों द्वंदों आदि रूप में विकार सम्मुख आने लगे तो नैतिक आचरण, शुचिता, मर्यादाओं का बिकास हुआ। नारी-मर्यादा व बंधन प्रारंभ हुए। और समाज पुरूष-सत्तात्मक होगया। परन्तु सहजीवन अभी भी था। नारी मंत्री,सलाहकार,सहकार,विदुषी के रूप में घर में रहते हुए भी स्वतंत्र व्यक्तित्व थीयस्तु नार्यस्तु पूज्यन्ते ..का भाव रहा। महाकाव्य-काल तक यह व्यवस्था चलती रही।
        पश्च-पौराणिक काल में अत्यधिक भौतिक उन्नति, मानवों के नैतिकता से गिरने के कारण, धन की महत्ता के कारण सामाजिक-चारित्रिक पतन हुआ| पुरूष-अहं द्वारा महिलाओं से उनका अधिकार छीना गया ( मुख्यतया, घर, ज़मीन, जायदाद ही कारण थे ) और पुरूष नारी का मालिक बन बैठा आगे की व्यवस्था सब देख ही रहे हैं। इस सब के साथ साथ प्रत्येक युग में-अनाचारी होते ही रहते हैं। हर युग में अच्छाई-बुराई का युद्ध चलता रहता है। तभी राम व कृष्ण जन्म लेते हैं। और ---यदा यदा धर्मस्य --का क्रम होता है। नैतिक लोग नारी का सदै आदर  करते हैं, बुरे नहीं --अतः बात वही है कि समाज व सिस्टम नहीं व्यक्ति ही खराव होकर समाज को ख़राब व बदनाम करता है।

LEAVE SMOKING- पापा तुम सिगरेट क्यों पीते हो ?









पापा  तुम  सिगरेट क्यों पीते  हो ?
LEAVE SMOKING BEFORE YOUR CHILDREN ASK YOU -



कश लेकर  धुँआ छोड़ देते हो 
सांसों  में  हमारी  जहर  घोल  देते हो ;
पापा  तुम  सिगरेट क्यों पीते  हो ?

सिगरेट  से हो जाता  कैंसर  
है  ये  बीमारी  भयंकर  
सेहत  से क्यों अपनी  खिलवाड़  करते  हो ?
पापा  तुम  सिगरेट क्यों पीते  हो ?

मेहनत  से पैसा कमाते हो 
क्यों धुएं  पर उड़ाते   हो ?
समझाने  पर ना  समझते हो .
पापा  तुम  सिगरेट क्यों पीते  हो ?

अब  तो रखो ख्याल 
छोड़ दो  धूम्रपान 
टोकने पर ऐसे क्यों बिगड़ते हो?
पापा  तुम  सिगरेट क्यों पीते  हो ?
                                                       SHIKHA KAUSHIK 

गुरुवार, 30 मई 2013

बेग़म पलट कर वार करती हो बड़ी तकलीफ होती है !

बेग़म पलट कर वार करती हो बड़ी तकलीफ होती है !

Indian_bride : Beautiful asian girl with black veil on face  Stock PhotoIndian_bride : Series. young beautiful brunette in the indian national dress  


ना देखूं तुमको पर्दे में बड़ी तकलीफ होती है ,

तुम्हारी हर तरक्की से बड़ी तकलीफ होती है !

उठाकर आँख मुझसे बात जब करती हो बेग़म तुम ,

हदें यूँ पार करने से बड़ी तकलीफ होती है !

खुशामद की जगह करने लगी हो अब बगावत तुम ,

हकों की बात करने से बड़ी तकलीफ होती !

मेरा खिल्ली उड़ाना अब  बुरा लगने लगा तुमको ,

पलट कर वार करती हो बड़ी तकलीफ होती है !

मेरा हर ज़ुल्म सह जाना रही आदत तेरी 'नूतन' ,

नहीं सिर अब झुकाने से बड़ी तकलीफ होती है !

शिखा कौशिक  'नूतन'


मंगलवार, 28 मई 2013

जातिवाद का ढोंग -एक लघु कथा

जातिवाद का ढोंग -एक लघु कथा



''शटअप ...अर्णव ...तुम ऐसा कैसे कर सकते हो .तुम जानते हो न हम ब्राह्मण हैं और ...विभा कास्ट से चमार है बेटा ....समझा करो ..'' अर्णव असहमति में सिर हिलाता हुआ बोला -''...पर डैडी .....आप जातिवाद के खिलाफ हैं ...माँ भी तो खटीक जाति से हैं ...आपने क्यूँ की थी माँ से शादी ?'' अर्णव के पिताजी अर्णव के कंधें पर हाथ रखते हुए बोले -'' बेटा वो और परिस्थिति थी ....मैं गरीब परिवार का मामूली सा क्लर्क और तुम्हारी माँ डी.एम्. की एकलौती बेटी ...तब कहाँ जातिवाद आड़े आता है ....समझा करो !'' आँखों से ज्यादा बहस न करने की धमकी देते हुए अर्णव के पिताजी वहां से चल दिए और अर्णव सोचने लगा काश विभा भी किसी अमीर घर की एकलौती बेटी होती !!

शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 27 मई 2013

श्याम स्मृति-२० ....यदि पति माना हैं तो ....डा श्याम गुप्त



श्याम स्मृति-२०  ....यदि पति माना हैं तो ...
               यदि पति माना है तो पति-सेवा धर्म निभाना पत्नी का कर्तव्य है चाहे वह लूला हो, लंगडा हो, अंधा-कोडी हो | जैसा अनुसूया सीता से कहती हैं | शैव्या के कोढी पति अंधे च्यवन ऋषि की पत्नी राजा शर्याति की राजकुमारी सुकन्या की पतिसेवा की कथाएं प्रसिद्द हैं | सीता भी राम को जंगल में छोड़कर नहीं भागी | परन्तु गंगा, उर्वशी जैसी तमाम बुद्धिमती स्त्रियों ने विवाह संस्था को नहीं माना, किसी को पति नहीं माना | वैदिक काल में सरस्वती ने भी नहीं |
               इसीलिये तो शादी में गुण मिलाये जाते हैं, जन्म पत्री देखी जाती है सारा परिवार, कुटुम, खानदान सम्मिलित होता है | तब किसी को पति स्वीकारा जाता है | आजकल लड़की भी देखती है बात करती है |
               पुरुष ब्रह्म है नारी प्रकृति, वह शक्ति है ब्रह्म की | ब्रह्म उसके द्वारा ही कार्य करता है परन्तु फिर भी प्रकृति स्वतंत्र नहीं है, ब्रह्म की इच्छा से ही कार्य करती है | अतः नारी इच्छानुसार ही चले वही उचित रहता है | यदि पति माना है तो निभाना ही चाहिए चाहे कैसा भी हो|  इसीलिये तो पति की उम्र अधिक रखी गयी है ताकि अनुभव-ज्ञान के आधार पर नारी आदर करे पुरुष का और अनुभवी पुरुष सदा मान रखे अपने साथी का, बड़ों द्वारा छोटों के समादर करने वाले भावानुशासन के अनुसार |