भारतीय नारी ब्लॉग प्रतियोगिता-2 [ प्रविष्टि -3 ]-डा. सारिका मुकेश
बचपन हमारे जीवन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है! बचपन
में घटी कोई घटना हो या सुनी कहानियाँ; उनका
असर कभी-कभी हमारे मस्तिष्क पर ऐसा पड़ता है कि हमारे जीवन की दिशा ही बदल जाती है!
मुझे याद आता है कि बचपन में दादी जी रात को सोते वक़्त मुझे खूब किस्से-कहानी सुनाती
थीं! पर उन सभी में मेरे मन-मस्तिष्क पर अपना प्रभाव जमा देने वाली इन्दिरा गाँधी
की बातें थीं! मैं धीरे-धीरे उनसे प्रभावित होती चली गई और उनके बारे में अधिक से
अधिक जानने कि उत्कंठा मन में प्रबल हो उठी!
मुझे याद आता है कि उस समय हमारे घर में तमाम पत्र-पत्रिकाएं
आती थीं और एक दिन मुझे एक पत्रिका (शायद’धर्मयुग’) में दिए लेख में एक फोटो छपा था जिसमें सिर्फ़ इन्दिरा जी
कुर्सी पर बैठी हुई कागज़ों को देखने/पढने में व्यस्त हैं और उनके चारों ओर पुरुष
नेता खड़े हुए हैं! इतने सारे पुरूषों के बीच नारी का वर्चस्व स्थापित करती हुई
इन्दिरा जी की वो तस्वीर मेरे दिलो-दिमाग पर छा गई थी और मुझमें तभी यह
आत्मविश्वाश जाग गया था कि महिला को कमजोर कहना/समझना लोगों की भूल है! महिला किसी
भी क्षेत्र में पुरूषों के संग कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती है!
डा. सारिका मुकेश
बिल्कुल सही कहा है आपने अक्षय तृतीया की शुभकामनायें!.अख़बारों के अड्डे ही ये अश्लील हो गए हैं .
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रयास.आभार . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
जवाब देंहटाएंएक अच्छा संस्मरण है |
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