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शनिवार, 9 मार्च 2013

वरदान देदो....डा श्याम गुप्त का गीत ....

                           अंतर्राष्ट्रीय स्त्री सशक्तीकरण दिवस पर एक कोमल-कान्त स्वरों युक्त रचना ....



सुमुखि !अब तो प्रणय का वरदान देदो ॥

जल उठें मन दीप , ऐसी-
मदिर , मधु मुसकान देदो |
अधखुली पलकें झुकाकर,
प्रीति का अनुमान देदो |
सुमुखि ! अब तो प्रणय का वरदान देदो ||

दीप बनकर मैं, तेरे-
दर पर जलूँगा |
पथ के कांटे दूर , सब-
करता चलूँगा |

मानिनी !कुछ मुस्कुराकर,
मिलन का सुख सार देदो|
सिर झुका कर , कुछ हिलाकर,
मान  का प्रतिमान देदो ||
सजनि अब तो प्रणय का वरदान देदो ||

तुम कहो तो मैं ,
प्रणय की याचिका का |
प्रार्थना स्वर-पत्र ,
तेरे नाम भर दूं |
तुम को हो स्वीकार, अर्पित-
एक नूतन पुष्प करदूं |

भामिनी ! कुछ गुनगुनाकर ,
गीत का उनमान देदो |
सुमुखि अब तो प्रणय का वरदान देदो ||

पास आओ, मुस्कुराओ-
गुनगुनाओ |
कुछ कहो, कुछ सुनो-
कुछ पूछो-बताओ |
तुम रुको तो , मैं-
मिलन के स्वर सजाऊँ |
तुम कहो तो मैं-
प्रणय-गीता सुनाऊँ |

कामिनी ! इस मिलन पल को 
इक सुखद सा नाम देदो |

सुमुखि ! अब तो प्रणय का वरदान देदो ||

7 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉगिस्तान में बड़ी बड़ी बातें करने वालों की भीड़ है। बात हमेशा बड़ी ही करनी चाहिए। बड़ी बात करने का फ़ायदा यह है कि उसे कभी पूरा करना नहीं पड़ता और पूरा करो तो वह पूरी भी नहीं होती।
    अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भी यही देखने में आया। किसी ने उम्मीद जताई और किसी ने अफ़सोस जता दिया। गुन्डे बदमाश उनकी बात पढ़ते नहीं और पढ़ने वाले मानते नहीं। औरतों को गुन्डों से ज़्यादा उसके अपने घर वाले सताते हैं। औरत को मर्दों से ज़्यादा औरतें सताती हैं। घर में और समाज में औरतें मर्दों से ज़्यादा औरतों के साथ रहती हैं। औरतें अपने जैसी औरतों को अपना हमदर्द न बना सकीं। घरों मे दिल को छीलने वाली बातें औरतें ही करती हैं। दहेज न लाने पर बहू को जली कटी कौन सुनाता है ?

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  2. धन्यवाद प्रतिभाजी, शालिनी व दिनेश जी...

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