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शनिवार, 16 मार्च 2013




मैं जननी हूँ

अपना सब कुछ
उड़ेल दिया
तुम पर
पर मैं
रिक्त नहीं हुई
बल्कि
मैं खुद को
भरा-भरा सा
महसूस करती हूँ
क्या करूँ
मेरी प्रकृति ही
ऐसी है
कि खाली को
भरकर ही
मैं तृप्त होती हूँ
मैं जननी हूँ
मैं देवों से भी
बड़ी होती हूँ ∙ 

11 टिप्‍पणियां:

  1. आप सभी का हार्दिक आभार!
    होली पर अग्रिम शुभकामनाएँ!
    सप्रेम,
    सारिका मुकेश

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आदरेया-

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  4. बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति सुन्दर भाव लिए,सादर आभार.

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  5. मेरी प्रकृति ही
    ऐसी है
    कि खाली को
    भरकर ही
    मै तृप्त होती हूँ
    -------------------
    सुन्दर शब्द ...अनहद भाव ....

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  6. सार्थक है ...पर वो कभी अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करती .....
    --- इसे अन्य बचन में लिखें ...और सार्थक हो...

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