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शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

नारी खड़ी बाज़ार में -बेच रही है देह !


 अभी अभी  जब मैं चाय बनाने चली तो पहले उसके लिए मुझे चाय के डिब्बे में भरने को चाय का पैकिट खोलना पड़ा वह तो मैंने खोल लिया और जैसे ही मैं डिब्बे में चाय भरने लगी कि क्या देखती हूँ पैकिट के पीछे चाय पीने को प्रेरित करती एक मॉडल का फोटो जिसे  देखकर मन ने कहा क्या ज़रुरत थी इसके लिए ऐसे विज्ञापन की 
यही नहीं आज से कुछ दिन पहले समाचार पत्र की मैगजीन में भी एक ऐसा ही विज्ञापन था जिसके लिए उस अंगप्रदर्शन की कोई आवश्यकता नहीं थी जो उसके लिए किया गया था .
                                            
 ये तो मात्र ज़रा सी झलक है आज की महिला सशक्तिकरण और उसके आधुनिकता में ढलने की जिसे आज के कथित आधुनिक लोगों का समर्थन भी मिल रहा है और ये कहकर की सुविधा की दृष्टि से ये सब हो रहा है मात्र चप्पल बेचने को ,चाय बेचने को ही नहीं बाज़ार की बहुत सी अन्य चीज़ों को बेचने के लिए नारी देह का इस्तेमाल किया जा रहा है जैसे कि अगर नारी ने कपडे कम नहीं पहने  तो चाय तो बिकेगी ही नहीं या भारत में चाय बिकनी ही बंद हो जाएगी वैसे ही चप्पल जो कि पैरों में पहनी जाती है यदि वह कैटरिना कैफ ने न पहनी और पहनते वक़्त उनके सुन्दर अंगों का प्रदर्शन नहीं हुआ तो चप्पल की कंपनी बंद हो जाएगी और यही नहीं कि इसके लिए मात्र ये कम्पनियाँ ही जिम्मेदार हैं जिम्मेदार है आज की आधुनिकता के लिए पागल नारी भी जो अपने शरीर के वस्त्रों को उतारने में ही अपनी प्रगति मान बैठी है और यही कारण है कि सिल्क स्मिता जैसी मॉडल आत्महत्या की और बढती है क्योंकि वे देह आधारित जीवन जीती हैं और सभी जानते हैं कि इस शरीर की एक निश्चित अवधि ही होती है उस तरह का सुन्दर व् आकर्षक दिखने की जो बाज़ार में बिकता है और जिसके लिए इन मॉडल्स को पैसा मिलता है धीरे धीर जब उनकी देह का आकर्षण कम होता है तब उनकी देह के लिए पैसा लुटाने वाले और मॉडल्स को देखने लगते हैं और आरंभ होता है अवसाद का दौर जो उन्हें धकेलता है आत्महत्या की ओर इसके साथ ही वे लोग जो इस तरह की ड्रेसेस  को नारी के आधुनिक होने का पैमाना मानते हैं और ये कहते हैं कि आज तेज़ी का ज़माना है और दौड़  धूप के इस ज़माने में इस तरह की ड्रेसेस से ही भागीदार हुआ जा सकता है तो उनकी जानकारी के लिए बता दूं कि एक समय साडी  पर भी शाल ओढ़ा जाता था सुविधा के लिए वह शाल उतर गया साडी की जगह सलवार सूट भी सुविधा के नाम पर पहन जाने लगा अब उसमे भी दिक्कत आखिर ये सुविधा नारी के ही कपड़ों का हरण क्यों करती जा रही है पुरुषों के क्यों नहीं वे तो आज भी पेंट कमीज पहनते हैं सूट पहनते हैं न उन्हें सर्दी लगती है न गर्मी ,न उन्हें बस में चढ़ने में कोई परेशानी  न घर में रहने में ये सब नारी को ही क्यों होती हैं क्यों नारी अपने शरीर पर आधारित जीवन जीती है  क्यों वह एक वस्तु बनकर रहती है कि किसी विशेष समारोह में अगर उसे शामिल होना है तो उसके लम्बे बाल खुल जायेंगे तभी वह खूबसूरत लगेगी ,किसी विवाह समारोह में शामिल होगी तो चाहे हड्डी कंपाने वाली ठण्ड हो तब भी उसके शरीर पर कोई गरम कपडा नहीं होगा आखिर कब समझेगी नारी ?अपनी सही पहचान के लिए इस तरह शरीर का प्रदर्शन वह कब त्यागेगी ?क्यों नहीं समझती वह कि मानव शरीर भगवान ने हमें इस दुनिया में कुछ सकारात्मक कार्य करने  के लिए दिया है अगर इस तरह वस्त्रविहीन होने के लिए ही देना होता तो जानवर शरीर ही दे देता उनसे ज्यादा वस्त्रविहीन तो नहीं रह सकती न नारी . इसलिए नारी को अगर वास्तव में सशक्त होना है तो दिमाग के बल पर होना होगा शरीर के बल पर नहीं और शरीर के बल पर और दिमाग के बल पर आधारित नारी की प्रगति के स्थायित्व के अंतर  को वे बखूबी देख सकती है राखी सावंत आज कहाँ है और इंदिरा नुई आज कहाँ हैं .पूनम पांडे आज कहाँ हैं और सुनीता विलियम्स आज कहाँ हैं .इसलिए विचार करें नारी अपने व्यक्तित्व पर  न कि  शरीर की  बिक्री पर .
                            शालिनी कौशिक 
                                 [कौशल ]
   

7 टिप्‍पणियां:

  1. नेह देह प्रोडक्ट को, कांस्टेंट इक मान ।

    नेह घटे घटती रहे, बड़े देह धन-मान ।

    बड़े देह धन-मान, कहाँ कल्पना हमारी ।

    पूनम का वह चाँद, ग्रहण से होती हारी ।

    लेकिन अघ-व्यापार, जरूरत विज्ञापन की ।

    गिरते नैतिक मूल्य, मांग बढ जाए तन की ।

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  2. तर्क संगत सुंदर आलेख ,वैचारिक सशक्तता के श्रेयकर उदेश्य की सार्थकता का द्योतक ।रुचिकर शैली ,कृपया अर्धविराम और पूर्ण विराम का ध्यान रखें ।बहुत -बहुत साधुवाद

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  3. सही व तर्क सांगत...

    साबुन क्रीम औ तेल को, बेचि रहीं इतरायं,
    झूठे विज्ञापन करें, हीरोइन कहलायं |

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  4. हम जब महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों कि बात करते हैं तो महिलाओं के यह भी देखना चाहिये कि इस प्रकार कि नुमाईश को रोका जाये। क्या कोई महिला संस्था इसे रोकने में पहल करेगी। क्या ख़ुद महिलाएं अपनी पोस्टर बिक्री से ख़ुद को अलग करेंगी। मुझे लगता है पुरुष समाज को बोलने या कोसने कि बजाय महिलाओं को ही अपना दु:प्रचार रोकना ज़रुरी है। बहोत अच्छी पोस्ट।

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