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बुधवार, 9 जनवरी 2013

शिशिर ...डा श्याम गुप्त ....

 








                    प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | 
         --शिशिर में मन का एक विहंगम भाव-----
                      
                     
 
                  शिशिर
 मैंने ही  भूलें की होंगी , स्वीकृतपाती भेज रहा हूँ
तेरी याद पुरानी हे प्रिय! मन में अभी सहेज रहा हूँ ||

शुष्क पात जब एक टूटकर, गिरा सामने, यह सच पाया |
देखी अपनी जीवन छाया, मैं समझा तब पतझड़ आया ||

तेरे बासंती तन मन से, मैं क्यों इतना दूर होगया |
समझ न पाया क्यों तेरा मन, अहंकार में चूर होगया ||

तेरी नेक वफाओं को मैं, अब तक कहाँ भुला पाया हूँ |
तेरे पावन मन की बातें, मन से कहाँ मिटा पाया हूँ ||

तेरी बातें  सच का सपना,  मैं  भूलों की भंवर पड़ा था |
अपनेपन में मस्त रहा मैं,पुरुष अहं में जकड खडा था ||

सूखे हुए गुलाब रखे जो , पन्नों बीच, सहेज रहा हूँ |
मैंने ही भूलें की होंगी , स्वीकृति पाती भेज रहा हूँ ||

तुमने भी यदि रखे सहेजे,  कुछ सूखे गुलाव पुस्तक में |
तुमको जो कुछ सत्य सा लगे,मेरी इस स्वीकृति दस्तक में|

खत  रूपी इक शुष्क पात ही, आशा, क्षमा रूप मिल जाए |
अपने जीवन के पतझड़ में , शायद फिर बसंत मुस्काए ||

पाती पढ़ बेचैन होगये,झर झर झर निर्झर नैन होगये |
मैंने क्यों न पुकारा तुमको,क्यों मेरे सुख चैन खोगये ||

अहं भाव तो मुझ में ही था,शायद समय चक्र यह ही  था |
सोचा ही क्यों ऐसा हमने , कौन गलत था कौन सही था !

सही गलत अनुबंध शर्त सब, भला प्यार में कब होती  हैं |
मेरे गीत नहीं अब बनते,  आँखें झर झर झर रोती  हैं ||

क्षमा मुझे अब तुम ही करदो, स्वीकृति पाती भेज रही हूँ |
आशा रूपी नूतन किसलय, पत्र सजाकर भेज रही हूँ ||

                                                                        ----चित्र गूगल साभार ....
                         

7 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद शिखा जी एवं गेरोला जी.....

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  2. बहुत ही सुंदर भाव स्वीकारोक्ति के आंसू और क्षमा के भाव से ही पवित्रता का भाव मुखरित होता ,आत्मविवेचन से ही अपनी गलतियों का भान होता है , प्राश्चित का यही सर्वोत्तम उपाय है ,अच्छी भावयुक्त कविताई के लिए साधुवाद

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