वह बैठी थी और वह हंस रहा था,
दोनों के बीच दूरियां ज्यादा नहीं थी,
शायद जानते भी न हों एक दूसरे को,
लेकिन वह लगातार हंस रहा था,
बस अड्डे के एक कोने से,
वह देख रही थी उसे/या नहीं/पता नहीं,
शायद न देखने का ही प्रयत्न कर रही थी,
कुछ लोग और खड़े थे,
शायद बस के इंतज़ार में,
वह अभी भी हंस रहा था,
कुछ लोग शायद बहरे थे,
या बन गए थे/या बहरे होने का नाटक कर रहे थे,
उसने कुछ बोला,
कुछ लोगों ने देखा(सुना या नहीं पता नहीं लेकिन उसकी ओर देखा),
उसने फिर कुछ बोला,
वह अब भी उसे नहीं देख रही थी,
बैठी हुई थी,
बस आई,
कुछ लोग उठे,
वह भी उठी,
वह आगे बढ़ा,
उसका दुपट्टा उसके हाथ में आया,
लेकिन वह बस में अन्दर आ चुकी थी,
उसका दुपट्टा बहार ही रह गया,
कुछ लोगों ने फिर देखा,
लेकिन वे चुप थे अब भी,
शायद मौन व्रत था उनका आज।
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वह उड़ने आई थी,
एक लम्बी उड़ान,
दौड़ना चाहती थी,
एक लम्बी दौड़,
कई जिंदगियां जीना चाहती थी,
इस एक ज़िन्दगी में,
उसका दुपट्टा भी उसकी ज़िन्दगी का,
एक हिस्सा था।
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कुछ लोग बस में पहले से थे,
उसे कहीं जाना था,
टिकट ले लिया उसने,
कंडक्टर ने टिकट देते समय,
उसे गौर से देखा,
हंसा भी( शायद कुटिल मुस्कान),
उसने कुछ नहीं बोला,
वह एक सीट पर चुपचाप बैठ गयी,
कुछ लोग उसे अब भी देख रहे थे,
वो बहरे नहीं थे,
बातें कर रहे थे,
उसे देखते हुए,
फिर वह उतर गयी,
लोग अब भी देख रहे थे,
कुछ लोग बाहर भी थे,
वे भी उसे देख रहे थे,
लेकिन उसने कुछ नहीं बोला,
चुपचाप अपने घर चली आई,
दरवाज़ा बंद कर एक लम्बी साँस ली,
कुछेक आंसू धुलक गए थे,
उसके गालों पर,
यह आंसू भी,
उसकी ज़िन्दगी का एक हिस्सा थे,
वह बी एक हिस्सा था उसकी ज़िदगी का,
और वो बहरे कुछ लोग भी।
नीरज
आभार शिखा जी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
जवाब देंहटाएंनारी का वस्त्र-हरण चुपचाप देखनेवाले मर्द नहीं हिजड़े हैं!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति आदरेया |
जवाब देंहटाएंआपकी कथा कल्पना शील न होकर सच को ही प्रतिस्थापित करती है यह वि्लकुल सच है जब कोई लज्जा शील कन्या कहीँ जाती है तो उसे शायद इस प्रकार की घटनाओं से दो चार होना पड़ता है।यही दशा है हमारे समाज की कुछ 10 -20 गलत लड़कियों के कारण समस्त नारी समाज को समाज गलत नजर से देखता है और उनके साथ होते हादशे को देखता रहता है कि यह भी एसी ही होगी मैने कुछ पक्तियाँ लिखी हैं गौर फरमाइये
जवाब देंहटाएंएक नही दो दो मात्राऐं नर से भारी नारी
फिर भी है निर्दयी मानव तैने कर दी ख्वारी
नारी माता नारी बहिना,वेटी पत्नी नारी
नारी लक्ष्मी, नारी काली सरस्वती भी नारी
जन्म दिया नारी ने तुझको फिर भी नारी हारी
तेरी वेशर्मी रे मानव नारी पर है भारी
औ निर्दयी छोड़ अब पीछा क्यों करता है ख्वारी
नारी की इज्जत को छेड़े वो पापी है भारी