मर्यादा का ले नाम मत अपना पल्ला झाड़ पुरुष !
स्त्री के विरुद्ध किये जाने वाले अपराधों के लिए स्त्री को उत्तरदायी ठहराने का चलन युगों युगों से रहा है .दिल्ली गैग रेप [१६ दिसंबर २०१२ ] की दुर्घटना के बाद से जहाँ आम भारतीय जनता की सोच इस ओर भी मुड़ी है कि-' हमें अपने पुत्रों को भी चरित्रवान बनाने की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है न कि केवल पुत्रियों पर मर्यादा के नाम पर प्रतिबन्ध लगाने की' वही संस्कृति के रक्षक बनने वाले कई पुरुष पुन: जनता को उसी लिंग-भेदी मानसिकता की ओर लौटा ले जाना चाहते हैं .जिसने मानव के सम मानवी को दोयम दर्जे का प्राणी मात्र बनाकर छोड़ दिया है .वास्तविकता तो ये है कि बलात्कार व् स्त्री हरण जैसी दुर्घटनाओं के लिए सृष्टि के आरम्भ से ही स्त्री द्वारा मर्यादा उल्लंघन उत्तरदायी नहीं है बल्कि पुरुष द्वारा स्त्री के साथ किया जाने वाला छल व् बल प्रयोग उत्तरदायी है .एक अन्य तथ्य भी यहाँ उल्लेखनीय है कि इतिहास से लेकर वर्तमान तक बलात्कार व् इसके प्रयास की दुर्घटनाएं मर्यादित नारी के साथ ही घटित हुई हैं .
दम्भी व् अल्पज्ञानी पुरुष जब माता सीता द्वारा मर्यादा -उल्लंघन करने का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं तब वे विस्मृत कर देते हैं कि माता सीता ने '' 'अतिथि देवो भव:' के आर्य संस्कार का पालन करते हुए ही ब्राह्मण वेश धारी रावण का अतिथि-सत्कार किया था .देखें -
'' द्विजतिवेशेन.................तथागतं ''[श्लोक३५ ,अरण्य कांड ,सप्तचत्वारिंश :-श्रीमद वाल्मीकीय रामायण '']
अर्थात-वह[रावण]ब्राहमण वेश में आया था ,कमण्डलु और गेरुआ वस्त्र धारण किये हुए था .ब्राह्मण-वेश में आये हुए अतिथि की उपेक्षा असंभव थी}
इस प्रसंग में यह भी विचारणीय है कि रावण आर्य-संस्कृति से भली-भांति परिचित था और जानता था कि आर्य-नारी द्वार पर आये ब्राह्मण अतिथि की उपेक्षा कदापि नहीं कर सकती इसी कारण रावण ने छद्म ब्राह्मण-रूप धरकर छल से माता सीता का हरण किया यहाँ लक्ष्मण -रेखा को पार करने अथवा मर्यादा उल्लंघन का कोई उल्लेख ''श्रीमद वाल्मीकिरामायण '' '' श्री रामचरितमानस '' ''श्री अध्यात्मरामायण '' -में नहीं आता .[सीता-हरण प्रसंग पढ़ें ]
''श्रीरामचरितमानस''के 'लंका कांड ''में ''लक्ष्मण-रेखा'' का उल्लेख आता है जहाँ मंदोदरी रावण को श्री राम से युद्ध न करने की सलाह देते हुए कहती हैं कि -
''रामानुज लघु रेख खिचाई ,सोउ नहि नाघेउ असि मनुसाई ''
[अर्थात आपकी (रावण)ऐसी तो बहादुरी है कि लक्षमण जी ने धनुष की रेखा खींच दी थी ;वह आपसे लांघी न गयी ]
यहाँ भी यह स्पष्ट नहीं है कि वह रेखा लक्ष्मण जी ने सीता-हरण प्रसंग से पूर्व माता सीता को पार न करने की सलाह देते हुए खीची थी अथवा अन्य किसी प्रयोजन से , सीता हरण से पूर्व अथवा पश्चात .किस उद्देश्य से ,कब व् कहाँ ये रेखा खींची गयी -यह एक अलग शोध का विषय है पर माता सीता ने किसी लक्ष्मण रेखा को पार किया इसका कोई प्रमाण नहीं है . इसके अतिरिक्त पुरुष-वर्ग का ये दावा भी निराधार है कि माता सीता को मर्यादा-उल्लंघन का दंड भुगतना पड़ा .वास्तव में माता सीता को उसी पितृ सत्तात्मक समाज की भेदभाव पूर्ण मानसिकता का दंड भोगना पड़ा जो अग्नि-परीक्षा द्वारा अपनी शुचिता प्रमाणित करने वाली स्त्री को भी पवित्र नहीं मानता और इसी के परिणामस्वरूप अहिल्या -उद्धार करने वाले उदार पुरुष श्रीराम को भी आर्य-कुल श्रेष्ठ माता सीता के त्याग के लिए विवश होना .
पुरुष के छल-बल के उदाहरण यत्र-तत्र-सर्वत्र साक्ष्य-रूप में बिखरे पड़ें हैं .इंद्र द्वारा महर्षि गौतम का छद्म रूप धरकर देवी अहिल्या से बलात्कार छली पुरुष के छल का उदाहरण है अथवा स्त्री के मर्यादा -उल्लंघन का ? प्रह्लाद -माता साध्वी कयाधू का इंद्र द्वारा हरण को किस श्रेणी में रखगें आप ? आकाश -मार्ग से ब्रह्मा जी के पास जाती अप्सरा पुञ्जक्स्थला [वाल्मीकि रामायण ,युद्धकाण्ड सर्ग-१३ ] व् अपने प्रिय नलकूबर से मिलन को लालायित हो उसके समीप जाती रम्भा से रावण का बलपूर्वक बलात्कार[वाल्मीकि रामायण ,उत्तर कांड सर्ग-२६ ] इन दोनों अप्सराओं की कौन सी मर्यादा उल्लंघन को प्रमाणित करता है ?कदापि नहीं ! ये सब मर्यादाहीन पुरुष के दुराचरण के परिणाम हैं .दिल्ली गैग रेप की शिकार युवती को भी छह दरिंदों में से एक तथाकथित नाबालिग राजू ने ''बहन जी '' कहकर छल से बस में चढ़ाया था .पुरुष का छल-बल पुरातन काल से वर्तमान तक स्त्री विरुद्ध अपराधों का कारण रहा है जो आज समाज में उभरकर सामने आ रहा है .''शादी का झांसा देकर '' ''नौकरी का लालच देकर '' युवतियों को फँसाना अथवा प्रेम-जाल में फँसाकर यौन-शोषण कर नरकतुल्य जीवन भोगने के लिए छोड़ देना- जैसा दुराचरण आज के छली पुरुष की पहचान बन चुका है . छली पुरुष के लिए मर्यादित आचरण की मांग क्यों जोर नहीं पकड़ पाती ?क्यों मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के बाद कोई पुरुष इस उपाधि को प्राप्त करने हेतु लालायित नहीं दिखाई पड़ता ? इन सवालों में है जड़ स्त्री विरुद्ध अपराध की .हर बलात्कार के बाद पुत्रियों पर मर्यादित आचरण का फंदा और भी ज्यादा कस दिया जाता है और दुराचारी पुरुष और भी उद्दंडता के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है .यदि स्त्री विरुद्ध अपराधों में कमी लानी है तो अब पुत्रियों से ज्यादा पुत्रों को मर्यादित करने की आवश्यकता है तभी श्रीराम जैसे पुत्र भारतीय समाज को मिल पायेंगें जो रावण ,बालि जैसे दुराचारियों का अंत करने में सक्षम होंगे और भारतीय समाज में नारी को प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त हो पायेगा .
डॉ.शिखा कौशिक 'नूतन'
स्त्री के विरुद्ध किये जाने वाले अपराधों के लिए स्त्री को उत्तरदायी ठहराने का चलन युगों युगों से रहा है .दिल्ली गैग रेप [१६ दिसंबर २०१२ ] की दुर्घटना के बाद से जहाँ आम भारतीय जनता की सोच इस ओर भी मुड़ी है कि-' हमें अपने पुत्रों को भी चरित्रवान बनाने की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है न कि केवल पुत्रियों पर मर्यादा के नाम पर प्रतिबन्ध लगाने की' वही संस्कृति के रक्षक बनने वाले कई पुरुष पुन: जनता को उसी लिंग-भेदी मानसिकता की ओर लौटा ले जाना चाहते हैं .जिसने मानव के सम मानवी को दोयम दर्जे का प्राणी मात्र बनाकर छोड़ दिया है .वास्तविकता तो ये है कि बलात्कार व् स्त्री हरण जैसी दुर्घटनाओं के लिए सृष्टि के आरम्भ से ही स्त्री द्वारा मर्यादा उल्लंघन उत्तरदायी नहीं है बल्कि पुरुष द्वारा स्त्री के साथ किया जाने वाला छल व् बल प्रयोग उत्तरदायी है .एक अन्य तथ्य भी यहाँ उल्लेखनीय है कि इतिहास से लेकर वर्तमान तक बलात्कार व् इसके प्रयास की दुर्घटनाएं मर्यादित नारी के साथ ही घटित हुई हैं .
दम्भी व् अल्पज्ञानी पुरुष जब माता सीता द्वारा मर्यादा -उल्लंघन करने का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं तब वे विस्मृत कर देते हैं कि माता सीता ने '' 'अतिथि देवो भव:' के आर्य संस्कार का पालन करते हुए ही ब्राह्मण वेश धारी रावण का अतिथि-सत्कार किया था .देखें -
'' द्विजतिवेशेन.................तथागतं ''[श्लोक३५ ,अरण्य कांड ,सप्तचत्वारिंश :-श्रीमद वाल्मीकीय रामायण '']
अर्थात-वह[रावण]ब्राहमण वेश में आया था ,कमण्डलु और गेरुआ वस्त्र धारण किये हुए था .ब्राह्मण-वेश में आये हुए अतिथि की उपेक्षा असंभव थी}
इस प्रसंग में यह भी विचारणीय है कि रावण आर्य-संस्कृति से भली-भांति परिचित था और जानता था कि आर्य-नारी द्वार पर आये ब्राह्मण अतिथि की उपेक्षा कदापि नहीं कर सकती इसी कारण रावण ने छद्म ब्राह्मण-रूप धरकर छल से माता सीता का हरण किया यहाँ लक्ष्मण -रेखा को पार करने अथवा मर्यादा उल्लंघन का कोई उल्लेख ''श्रीमद वाल्मीकिरामायण '' '' श्री रामचरितमानस '' ''श्री अध्यात्मरामायण '' -में नहीं आता .[सीता-हरण प्रसंग पढ़ें ]
''श्रीरामचरितमानस''के 'लंका कांड ''में ''लक्ष्मण-रेखा'' का उल्लेख आता है जहाँ मंदोदरी रावण को श्री राम से युद्ध न करने की सलाह देते हुए कहती हैं कि -
''रामानुज लघु रेख खिचाई ,सोउ नहि नाघेउ असि मनुसाई ''
[अर्थात आपकी (रावण)ऐसी तो बहादुरी है कि लक्षमण जी ने धनुष की रेखा खींच दी थी ;वह आपसे लांघी न गयी ]
यहाँ भी यह स्पष्ट नहीं है कि वह रेखा लक्ष्मण जी ने सीता-हरण प्रसंग से पूर्व माता सीता को पार न करने की सलाह देते हुए खीची थी अथवा अन्य किसी प्रयोजन से , सीता हरण से पूर्व अथवा पश्चात .किस उद्देश्य से ,कब व् कहाँ ये रेखा खींची गयी -यह एक अलग शोध का विषय है पर माता सीता ने किसी लक्ष्मण रेखा को पार किया इसका कोई प्रमाण नहीं है . इसके अतिरिक्त पुरुष-वर्ग का ये दावा भी निराधार है कि माता सीता को मर्यादा-उल्लंघन का दंड भुगतना पड़ा .वास्तव में माता सीता को उसी पितृ सत्तात्मक समाज की भेदभाव पूर्ण मानसिकता का दंड भोगना पड़ा जो अग्नि-परीक्षा द्वारा अपनी शुचिता प्रमाणित करने वाली स्त्री को भी पवित्र नहीं मानता और इसी के परिणामस्वरूप अहिल्या -उद्धार करने वाले उदार पुरुष श्रीराम को भी आर्य-कुल श्रेष्ठ माता सीता के त्याग के लिए विवश होना .
पुरुष के छल-बल के उदाहरण यत्र-तत्र-सर्वत्र साक्ष्य-रूप में बिखरे पड़ें हैं .इंद्र द्वारा महर्षि गौतम का छद्म रूप धरकर देवी अहिल्या से बलात्कार छली पुरुष के छल का उदाहरण है अथवा स्त्री के मर्यादा -उल्लंघन का ? प्रह्लाद -माता साध्वी कयाधू का इंद्र द्वारा हरण को किस श्रेणी में रखगें आप ? आकाश -मार्ग से ब्रह्मा जी के पास जाती अप्सरा पुञ्जक्स्थला [वाल्मीकि रामायण ,युद्धकाण्ड सर्ग-१३ ] व् अपने प्रिय नलकूबर से मिलन को लालायित हो उसके समीप जाती रम्भा से रावण का बलपूर्वक बलात्कार[वाल्मीकि रामायण ,उत्तर कांड सर्ग-२६ ] इन दोनों अप्सराओं की कौन सी मर्यादा उल्लंघन को प्रमाणित करता है ?कदापि नहीं ! ये सब मर्यादाहीन पुरुष के दुराचरण के परिणाम हैं .दिल्ली गैग रेप की शिकार युवती को भी छह दरिंदों में से एक तथाकथित नाबालिग राजू ने ''बहन जी '' कहकर छल से बस में चढ़ाया था .पुरुष का छल-बल पुरातन काल से वर्तमान तक स्त्री विरुद्ध अपराधों का कारण रहा है जो आज समाज में उभरकर सामने आ रहा है .''शादी का झांसा देकर '' ''नौकरी का लालच देकर '' युवतियों को फँसाना अथवा प्रेम-जाल में फँसाकर यौन-शोषण कर नरकतुल्य जीवन भोगने के लिए छोड़ देना- जैसा दुराचरण आज के छली पुरुष की पहचान बन चुका है . छली पुरुष के लिए मर्यादित आचरण की मांग क्यों जोर नहीं पकड़ पाती ?क्यों मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के बाद कोई पुरुष इस उपाधि को प्राप्त करने हेतु लालायित नहीं दिखाई पड़ता ? इन सवालों में है जड़ स्त्री विरुद्ध अपराध की .हर बलात्कार के बाद पुत्रियों पर मर्यादित आचरण का फंदा और भी ज्यादा कस दिया जाता है और दुराचारी पुरुष और भी उद्दंडता के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है .यदि स्त्री विरुद्ध अपराधों में कमी लानी है तो अब पुत्रियों से ज्यादा पुत्रों को मर्यादित करने की आवश्यकता है तभी श्रीराम जैसे पुत्र भारतीय समाज को मिल पायेंगें जो रावण ,बालि जैसे दुराचारियों का अंत करने में सक्षम होंगे और भारतीय समाज में नारी को प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त हो पायेगा .
डॉ.शिखा कौशिक 'नूतन'
पुत्रों पर दिखला रहीं, माताएं जब लाड़ |
जवाब देंहटाएंपुत्री पर प्रतिबन्ध से, करती क्यों खिलवाड़ |
करती क्यों खिलवाड़, हमें है सोच बदलनी |
भेदभाव यह छोड़, पुत्र सम पुत्री करनी |
होकर के गंभीर, ध्यान देना है मित्रों |
अपनी चाल सुधार, बाप बनना है पुत्रों |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ..
हाँ , इतिहास इसी बात के लिए सबसे अधिक याद की जाती है की अगर कुछ भी समाज में लड़कियों के साथ गलत हो जाता है तो फिर से कैद कर दो। लेकिन उन समाज में जीने वाले मानसिक विकृति के शिकार लोगों पर अंकुश लगाने या फिर घर में उनके आचरण पर नजर रख कर सुधारने के बारे में कोई भी सुझाव किसी के पास नहीं है।
जवाब देंहटाएंकह सकते हैं --
हम आसमान की
बुलंदियां छू रहे हैं
देखा नहीं गया
फिर बंदिशों के ताले में
कैद करने की
साजिशें रच रहे हैं।
sarthak post.....
जवाब देंहटाएंsarthak post.....
जवाब देंहटाएंसदियों से चली आ रही भेदपूर्ण मानसिकता जाने कब जायेगी ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सार्थक चिंतन ...
मैं इसमें एक बात और कहना चाहती हूँ -पत्नी कितनी भी अनुकूल क्यों हो उस पर हमेशा संदेह करना और सत्य का प्रमाण माँगना,कहाँ तक उचित है .
जवाब देंहटाएंसबसे बड़े मर्यादावान का एक और उदाहरण -
मान्यता है कि जब राम, लक्ष्मण और सीता के साथ गया में श्राद्ध-कर्म के लिए आए, वे दोनो सामान लेने चले गए। इतने में राजा दशरथ प्रकट हो गए और सीता को ही पिंडदान करने के लिए कहकर मोक्ष दिलाने का निर्देश दिया। सीता ने,उनके कहने पर जो कुछ प्राप्त था उसी से फल्गु नदी, गाय, वटवृक्ष और केतकी के फूल को साक्षी बना कर पिंड-दान कर दिया। जब राम आए तो उन्हें पूरी कहानी सुनाई, परंतु उन्हें विश्वास नहीं हुआ।
तब जिन्हें साक्षी मानकर पिंडदान किया था, उन सबको सामने लाया गया। पंडा, फल्गु नदी, गाय और केतकी फूल ने झूठ बोल दिया परंतु अक्षयवट ने सत्य कथन किया.वे तीनों सीता द्वारा अभिशप्त हुए.
सीता जैसी समर्पित पत्नी भी,हर कदम पर) संदेह के घेरे में रही - यह कैसा आदर्श है?
बड़ा मजेदार हमारा हिंदू समाज है !
जवाब देंहटाएंबातें तो बड़ी बड़ी करता है और मान्यताएं देने के समय पीछे हट जाता है...! गीता,महाभारत,रामचरितमानस सबके घर में हैं...और सब पढ़ते भी होंगे शायद...न भी पढ़ते हों तो भी इन की कहानियों से अनभिग्य तो नहीं ही होंगे...देवी,शक्ति या माँ की पूजा सब करते हैं लेकिन अपने घर की देवी को वो सम्मान नहीं दे पाते..!
बड़ा विस्तृत विषय है और बड़ी लंबी विवेचना हो सकती है...लेकिन फिर भी समाज वहीँ का वहीँ रहेगा...! थोड़े बहुत परिवर्तन होते रहे हैं और होते रहेंगे बस.....!
प्रतिभा जी... आजकल टीवी पर देवों के देव महादेव सीरियल का गणेश जी को प्रथम पूज्य घोषित करने पर कार्तिकेय की प्रतिक्रया ...देखिये समझिये ...सब समझ में आजायगा कि इन पौराणिक तथ्यों में कितनी गहराई व अर्थवत्ता होती है ....
जवाब देंहटाएंमर्यादा का पालन स्त्री-पुरुष दोनों के लिए समान है... दोनों को ही उसका पालन करना चाहिए ! तभी एक सुखी व संतुलित जीवन जी पाएँगें हम सब....
जवाब देंहटाएं~सादर!!!